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Arshad_sks

रुपहला आसमां 😘 Santosh Kumar Sharma #शायरी

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बेख्याली मे भी तेरा ख्याल आये .... क्यू बिछडना है जरुरी ये सवाल आये रुपहला आसमां 😘 Santosh Kumar Sharma

Arshad_sks

सुनहरी सरजमी मेरी रुपहला आस्माँ मेरा.... #pm_sks #शायरी

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सुनहरी सरजमीं मेरी रुपहला आस्माँ मेरा
मगर अब तक नही समझा 
ठिकाना है कहाँ मेरा
किसी बस्ती को जब जलते हुये देख
तो ये सोचा मै खुद ही जल रहा हूँ
और फैला है धुआं मेरा😢 सुनहरी सरजमी मेरी रुपहला आस्माँ मेरा....
#pm_sks

ख़ाकसार

जब रात के इन सन्नाटों में कुछ जुगनू टहला करते हैं मुझको ऐसा क्यूँ लगता है कि तुम हो बस अब यहीं कहीं जब तारे कुछ शरमा कर के, जिस्म रुपहला करत #Poetry

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जब रात के इन सन्नाटों में कुछ जुगनू टहला करते हैं
मुझको ऐसा क्यूँ लगता है कि तुम हो बस अब यहीं कहीं
जब तारे कुछ शरमा कर के, जिस्म रुपहला करते हैं
मुझको ऐसा क्यूँ लगता है कि तुम हो बस अब यहीं कहीं

छूटा जब से शहर तेरा और छूटी तेरी वो महफ़िल
सपने आते हैं टुकड़ो में और टुकड़ों में रहता है दिल
जब किस्सों से और यादों से ये टुकड़े बहला करते हैं
मुझको ऐसा क्यूँ लगता है कि तुम हो बस अब यहीं कहीं जब रात के इन सन्नाटों में कुछ जुगनू टहला करते हैं
मुझको ऐसा क्यूँ लगता है कि तुम हो बस अब यहीं कहीं
जब तारे कुछ शरमा कर के, जिस्म रुपहला करत

AK__Alfaaz..

#ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी हमारी यह रचना.. मशहूर शायर और पत्रकार "अब्दुल मजिद सालिक"(1894-1959) के अद्भुत व सुंदरतम् उर्दू शब्दों पर आधारित ह #yqbaba #yqdidi #yqquotes #hindiurdupoetry #yqthoughts #yqsahitya

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चराग़-ए-ज़िन्दगी तो होगी पर फ़रोंज़ाँ अपनी ये रूठी ज़िन्दगानी न होगी ।
आयेंगी फ़स्ल-ए-बहाराँ साल भी मुबारक होंगे पर अब कोई कहानी न होगी ।।

ये तक़्दीर-ए-आलम भी मेरे बाद तुम्हारे हवाले मेरे हमसफर हमनशीं साथियों ।
फ़रोग़-ए-बज़्म-ए-इम्काँ तुम्ही से है साथियों अब तो ये साँस भी कल मेरी न होगी ।।

जिओ मेरे मुल्क के नौ-जवानों देखो तुम्हीं ये हसीं आतिशें ज़ुल्फ़-ए-जानाँ की ।
हम तो अपने आखिरी सफर पर हैं इन सँवरते गेसू-ए-दौरान अब ये रूह न होगी ।।

टूटकर जब तक बिखरेगी हस्ती नहीं ये हमारी निकलेगा कल वो आफ़ताब कैसे ।
जबीन-ए-दहर पर पिघलेंगी अफ़्शाँ तूलू-ए-मेहर होगी हरतरफ बस ये जाँ न होगी ।।

सुन ऐ 'अल्फाज' माज़ी तेरा मुस्तक़बिल वज़ूद बन के बैठा है अब तेरे सामने यहाँ ।
कि जिस दिन जगमगाएगा शबिस्ताँ तेरी मुनव्वर से यहाँ सब तो होंगे पर धड़कन न होगी ।।

 #ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी 
हमारी यह रचना.. मशहूर शायर और पत्रकार "अब्दुल मजिद सालिक"(1894-1959) के अद्भुत व सुंदरतम् उर्दू शब्दों पर आधारित ह
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