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Mamta Singh

औरत तभी तक कमजाेर समझी जाती है जब तक वह पिता के सम्मान आैर पति के प्रेम का मान रखती है ।फिर चाहे वह सीता हाे या सती। दुर्गा और काली काे कभी किसी ने कमजाेर कहा !! क्या उन्हें काेई अग्नि परीक्षा देनी पड़ी!! या फिर हवन कुंड मे समाहित हाेना पड़ा!! नहीं क्याेकिं वह स्वयसिंद्दा थी ।उन्हें किसी सहारे कि जरूरत नहीं थी। #ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी ..कभी कभी ..औरत अब भी बस सजावट की वस्तु समझी जाती है.. **आलम-ए-वजूद--world of existence #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine #yqsahitya

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आलम -ए-वजूद औरत का खुदा तराशेगा क्या??
वाे ताे खुद हीं माेहताज है ,खुदा हाेने के लिये-
औरत के काेख का..... औरत तभी तक कमजाेर समझी जाती है जब तक वह पिता के सम्मान आैर पति के प्रेम का मान रखती है ।फिर चाहे वह सीता हाे या सती।
दुर्गा और काली काे कभी किसी ने कमजाेर कहा !! 
क्या उन्हें काेई अग्नि परीक्षा देनी पड़ी!!
या फिर हवन कुंड मे समाहित हाेना पड़ा!!
नहीं क्याेकिं वह स्वयसिंद्दा थी ।उन्हें किसी सहारे कि जरूरत नहीं थी।
 #ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी ..कभी कभी ..औरत अब भी बस सजावट की वस्तु समझी जाती है..
**आलम-ए-वजूद--world of existence

AK__Alfaaz..

सोच की सुराही मे,
​इक स्वार्थ का सुराख हो गया,
​संवेदना का जल रिसकर,
लोभ की तपती ​भूमि पर,
​प्यासा ही तड़प कर मृत हो गया,
​और....
​ईर्ष्या, क्रोध, कपट व लालच के कांधे पर,
​विश्वास की अर्थी के संग,
​क्षुधा के शमशान जा पहुँचा,
​क्षुधा भी मौन निहारती रही उसको,
​कातर नैनों की जीह्वा पर,
​प्रेम का अंगार रख बुलाती रही उसको,
​देखते ही देखते देह,
​तृष्णा की अग्नि में,
​भावनाओं की चिता पर,
​अपने बेटे दया के हाथों से,
​मुखाग्नि पाकर...चिर अनंत मे विलीन हो गयी..।।
​ #ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी

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AK__Alfaaz..

आशियाना वो मेरा शमशान हो गया है ।
आँगन ये उसका क़ब्रिस्तान हो गया है ।।

वो चौराहों पर लेकर खड़ा अपनी लाज़ ।
बेफिक्र बिकने को अब तैयार हो गया है ।।

कैसे कहें कौन ज़िन्दा है रूहों में अपनी ।
अब तो ये इंसान दर्द मे तबाह हो गया है ।।

इक साँस के बाद, दूसरी साँस लेना यहाँ ।
हर किसी का ज़िंदगी में मुहाल हो गया है ।।

वो लम्हा भी यूँ साथ चलने को राज़ी नही ।
क्या कहें उसे भी खुद पे गुमान हो गया है ।।

सौदे का बड़ा कच्चा निकला 'अल्फाज़' तू ।
देकर ज़ान अपनी तू भी कंगाल हो गया है ।। #ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी 

**Pic credit --pinterest

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AK__Alfaaz..

हम तो हमीं थें तुम भी तुम्ही रहे बस फर्क इतना था हम राहें बदलते रह गये ।
मिली न मंजिल दोनों को फिर कभी हम इस छोर तुम उस छोर खड़े रह गये ।।

खुशियाँ गिरवी रख खरीदी थी हमने दो पल की जान-ओ-ज़िन्दगी अपनी ।
क्या कहें ​ग़म के ब्याज और बढ़ चले हम दर्द का असल ही चुकाते रह गये ।।

जो करते थें ईमान-ओ-धरम की इबादत अपने सजदे मे हर पल शामों-सहर ।
नसीब क्या फिरा उनका जो वो इबादत लिए गली-चौराहों में बिककर रह गयें ।।

रात आँधी आयी थी जरा जोरों की,खड़े वो नौजवां दरख्त भी यूँ ऐसे उखड़ गये ।
स़हर-ए-आलम ये हुआ कि थमा जो ज़लज़ला ये मौसम का बाकी निशाँ रह गये ।।

ऐ 'अल्फाज़' तू क्यों फिरता रहा सवाल बनके यहाँ खुद ही जवाब के इंतजार में ।
बड़े बेरहम निकले ये दुनियाँ वाले,जो तुझसे तेरे ही दर्द-ए-सवाल दोहराते रह गये ।।  #ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी 

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AK__Alfaaz..

इक हमारा इक तुम्हारा हमसे जुड़ा हर वो एहसास मर रहा है ।
कल तक था जो ज़िन्दा मकां मे अपने वो भी तन्हा मर रहा है ।।

चैन से जलते देखा था हमने शमशानों मे मरकर ज़िस्मों को यहाँ ।
क्या दौर है ये दुनियाँ का, जो ज़िन्दा इंसान ज़िन्दा ही मर रहा है ।।

इक शज़र था लगा आँगन में मेरे जिस पर झूला था बचपन मेरा ।
मेरी जहान-ए-रूखसती पर मेरे बाद वो भी तड़पकर मर रहा है ।।

दम तोड़ जाते थें ये काले बादल जिन बेखौफ पहाड़ों से टकराकर ।
आज जरा तेज हवायें क्या चलीं वो भी अब टूट-टूट कर मर रहा है ।।

कर्ज की साँसें लिए ज़िन्दगी के धागों से पिरोए हर इंसान जी रहा है ।
क्या कहें किसी से कुछ वो तो ज़िन्दा है पर उसका वज़ूद मर रहा है ।।

ऐ ''अल्फाज़'' अब रहने दे कुछ कहने को थम जाने दे कलम अपनी ।
कि साँसों का यूँ शोर तू क्यों करता है तेरा भी तो ज़िस्म ये मर रहा है ।। #ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी ...


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AK__Alfaaz..

#ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी **ज़ब्त--सहन,सहनशीलता **ज़रर--नुकसान **हमनवां--दोस्त **ग़म-ए-आब--दुःखों के बादल #yqdidi #yqquotes #yqthoughts #yq

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मुझे तन्हा करने से पहले अपना बना लेते तो अच्छा था ।
दूर जाने से पहले मुझे बाँहों मे समेट लेते तो अच्छा था ।।

सुनो तो सही सफ़र पर जा रहे हो क्या यूँ छोड़कर हमें । 
दो पल हमें भी अपना हमराही बना लेते तो अच्छा था ।।

ना ज़ब्त कर दर्द-ए-अश्कों को अपनी इन बेनूर आँखों में ।
ये ग़म-ए-आब फिर ज़रर देगा बरसा लेते तो अच्छा था ।।

यूँ कब्रों पर जाकर सुबहो-शाम दीये जलाने से क्या फायदा ।
माँ-बाप के पैरों मे ही जन्नत पहले बना लेते तो अच्छा था ।।

तेरी बहुत सी शिकायतें हैं 'अल्फाज़' तुझसे इस जमाने को ।
काश तुम भी दर्द को अपना हमनवां बना लेते तो अच्छा था ।। #ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी 

**ज़ब्त--सहन,सहनशीलता
**ज़रर--नुकसान
**हमनवां--दोस्त
**ग़म-ए-आब--दुःखों के बादल

#yqdidi #yqquotes #yqthoughts #yq

AK__Alfaaz..

#ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी 😐😐😐😐😐😐😐😐 **ख़ल्वत-- एकान्त #yqdidi #yqbaba #yqquotes #yqthoughts #yqshayari #yq #yqlove

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महफिलें सजा रखीं हैं सबने,खामोश बैठे हैं फिर भी सब एक-दूसरे से अपने ।
अजब है रिश्तों की दूरी भी,जो अपनी तन्हाई के साथ ख़ल्वत भी रो रही है ।। #ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी 
😐😐😐😐😐😐😐😐
**ख़ल्वत-- एकान्त

#yqdidi #yqbaba #yqquotes #yqthoughts #yqshayari #yq #yqlove

AK__Alfaaz..

#ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी हमारी यह रचना.. मशहूर शायर और पत्रकार "अब्दुल मजिद सालिक"(1894-1959) के अद्भुत व सुंदरतम् उर्दू शब्दों पर आधारित है... यह अपने समय के एक बहुत ही ख्याति प्राप्त व उम्दा रचनाकार रहें हैं..🙏🙏 **चराग़-ए-ज़िंदगी--Lamp of life **फ़स्ल-ए-बहाराँ-- spring season **फ़रोज़ाँ-- shinning, luminous **तक़्दीर-ए-आलम--destiny of word #yqbaba #yqdidi #yqquotes #hindiurdupoetry #yqthoughts #yqsahitya

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चराग़-ए-ज़िन्दगी तो होगी पर फ़रोंज़ाँ अपनी ये रूठी ज़िन्दगानी न होगी ।
आयेंगी फ़स्ल-ए-बहाराँ साल भी मुबारक होंगे पर अब कोई कहानी न होगी ।।

ये तक़्दीर-ए-आलम भी मेरे बाद तुम्हारे हवाले मेरे हमसफर हमनशीं साथियों ।
फ़रोग़-ए-बज़्म-ए-इम्काँ तुम्ही से है साथियों अब तो ये साँस भी कल मेरी न होगी ।।

जिओ मेरे मुल्क के नौ-जवानों देखो तुम्हीं ये हसीं आतिशें ज़ुल्फ़-ए-जानाँ की ।
हम तो अपने आखिरी सफर पर हैं इन सँवरते गेसू-ए-दौरान अब ये रूह न होगी ।।

टूटकर जब तक बिखरेगी हस्ती नहीं ये हमारी निकलेगा कल वो आफ़ताब कैसे ।
जबीन-ए-दहर पर पिघलेंगी अफ़्शाँ तूलू-ए-मेहर होगी हरतरफ बस ये जाँ न होगी ।।

सुन ऐ 'अल्फाज' माज़ी तेरा मुस्तक़बिल वज़ूद बन के बैठा है अब तेरे सामने यहाँ ।
कि जिस दिन जगमगाएगा शबिस्ताँ तेरी मुनव्वर से यहाँ सब तो होंगे पर धड़कन न होगी ।।

 #ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी 
हमारी यह रचना.. मशहूर शायर और पत्रकार "अब्दुल मजिद सालिक"(1894-1959) के अद्भुत व सुंदरतम् उर्दू शब्दों पर आधारित है...
यह अपने समय के एक बहुत ही ख्याति प्राप्त व उम्दा रचनाकार रहें हैं..🙏🙏

**चराग़-ए-ज़िंदगी--Lamp of life
**फ़स्ल-ए-बहाराँ-- spring season
**फ़रोज़ाँ-- shinning, luminous
**तक़्दीर-ए-आलम--destiny of word

AK__Alfaaz..

#ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी **सर्फ़ा-- फायदा **अबस--व्यर्थ,बेकार **मीज़ान--तराजू,Balance **ख़ून-ए-ज़िगर--blood of heart **पैराया-ए-बयाँ--style of narrative, description, ornament, manner **सागर-ए-हसरत--goblet of desire **चश्म-ए-सहर-- eyes of morning #yqbaba #yqdidi #yqquotes #yqthoughts #urduhindi_poetry #yqsahitya

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इजहार-ए-ग़म मै कौन से पैराया-ए-बयाँ में करुँ..,
मिला है जहां से जो दर्द उसे किस जबां में लिखूँ ।।

खाक़ कर दिया जो ज़माने ने दिल-ए-ख्वाबों को मेरे..,
कि गिरता है अब भी सागर-ए-हसरत मे आँखों से खूँ ।।

चश्म-ए-सहर से ही खौंफ में हैं दीदा-ए-शब मेरे..,
जो इक ना-मरहमों के डर से शहर मे मै क्या करुँ ।।

रिवायत ये कैसी है मजबूरों के नसीब मे क्यों नही रोटी है..,
अमीरों की मीज़ान पर तोली ये बेरहम गुरबत मै क्यों सहूँ ।।

ऐ 'अल्फाज' क्यों करता है सर्फ़ा-अबस खून-ए-ज़िगर का..,
हँसी कहती हैं तेरी बेरहम यादों की तस्वीरों में मै क्यों रहूँ ।।


 #ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी 
**सर्फ़ा-- फायदा
**अबस--व्यर्थ,बेकार
**मीज़ान--तराजू,Balance
**ख़ून-ए-ज़िगर--blood of heart
**पैराया-ए-बयाँ--style of narrative, description, ornament, manner
**सागर-ए-हसरत--goblet of desire
**चश्म-ए-सहर-- eyes of morning

AK__Alfaaz..

चलता है इक तमाशा शब-ओ-रोज़ मेरे आगे..,
ये दुनियाँ कुछ और नही बस महफिलें-अदाकारों की है.., #ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी 
**शब-ओ-रोज़--रात दिन

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