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Deepak Mubarakpuri
follow me nojoto pratilipi sharechait fecebook Instagram ©D.K. Sayar Multiple articles #गुनाहों_की_सजा भाग 13 #dk_sayar_multiple_articles
#गुनाहों_की_सजा भाग 13 #dk_sayar_multiple_articles #कविता
read moreSukhdev Panday
गुमनाम मुहब्बत भाग.13 रूपेश और दीक्षा दोनो ही एक दूसरे को चाहते थे इसीलिए तो चोरी चोरी एक दूसरे को देखने का बहाना बनाते थे।रूपेश सोचता था की कल वो दीक्षा से पूछेगा की क्या वो सच में उसे प्यार करती है,लेकिन हर कल पिछले वाले कल की तरह चला जाता था।रूपेश के मन में कुछ डर था शायद या वो ये चाहता था की दीक्षा ही उससे प्यार का इजहार करे।दोनो ही इसी चक्कर में एक शाल बिता दिए।एक शाल हो गया लेकिन दोनो आपस में एक शब्द भी नही बोल पाए। ©Sukhdev Panday गुमनाम मुहब्बत भाग.13 #Love
गुमनाम मुहब्बत भाग.13 #Love
read moredilip khan anpadh
हमरी प्रेम कहानी भाग 13 ******************** सुबह सूर्योदय के साथ ही असंख्य संख्या में डोंगी नदी में उतर जाता है। एक बड़े नाव पे अपने घोड़े के साथ स्वयं महाराज नदी में दिखते हैं। कुछ नाव पे आग के गोले बरसाने वाले यंत्र दिखते हैं। धनुष,बरछे,साज सज्जा से सुशोभित पैर में मोटे चमड़े के जूते पहने अन्य सैनिक दिखते हैं। एक बड़े से बेड़े पे सस्त्र और अन्य सामग्री ढोया जा रहा होता है। उधर टीले पे खड़े दो श्रवण उन्हें देख चिंतित होते नजर आते है। बूढ़े भील के चेहरे पे बीरता भरी मुस्कान दिखती है। अन्य युवक दाल यथा स्जम छिपे होते हैं। एकाएक सारे डोंगी और नाव को नदी के किनारे से कुछ दूर पहले रुकने का आदेश मिलता है। आग बरसाने वाले नाव को आगे कर कुछ संकेत दिए जाते हैं। कई आग के गोले हवा में उड़ता हुआ जंगल मे आ गिरते है। देखते देखते आग की लपटें फैलने लगती है। छिपे सारे नवयुवक पेड़ों से कूद टीले के तरफ भागते हैं। तभी नाव से तीरंदाजों की टीम हमला करते है। ....जंगल मे चीत्कार गूंजने लगता है। पैदल सैनिक तट पे आ आगे बढ़ने की हुंकार भरते है।उन्हें रोकने का कोई उपाय नही दिखता। ऊपर टीले से गुलेलों और बड़े-बड़े पत्थरों को नीचे फेकने का काम शुरू होता है।सैनिकों में खलबली है।पर आगे बढ़ते नजर आते है। एकाएक जंगलों के झाड़ियों के पीछे से जंगली सांडों को पथरीले पथ पे छोड़ दिया जाता है। कुछ मुगल सैनिक उसके चपेट में आते है पर आग फैल जाने से ये सांढ़ भी पीछे भागने लगते हैं। मुगलों की संख्या इतनी होती है कि वो फिर भी आगे बढ़ते रहते है। दलदल और अन्य व्यवस्था के बाद भी सैनिक टीले की और बढ़ते दिखते हैं। ***************************** टीले पर सैनिक आमने सामने हो जंग छेड़ देते हैं। कम संख्या और अस्त्र की कमी से भील और अन्य पिछड़ते चले जाते है। मुगलों की फौज नीचे से ऊपर संख्या में बढ़ते चले जाते है। जोश और चीत्कार से जंगल गूंज उठता है। एक पल को भीलों की बीरता और जज्बे को देख मुगल सेना भी सिहर जाता है। भीलों के तलवार और तीर से टीले के तरफ आने वाला कोई मुगल सैनिक सशरीर टीले पर चढ़ नही पाता है। नवरोज और मोहन अंतिम बार शिव पे जलारोहन करते है। मोहन नवरोज को बांहों में भर कपाल को चूम लेता है। मिट्टी का तिलक लगा एका-एक दोनों तांडव नृत्य आरंभ करते है। दो श्रवण ढोल पे थाप देता है। मोहन और नवरोज के हाथों में नग्न तलवारें होती है। भीलों का कत्लेआम कर कुछ सैनिक टीले के ऊपर चढ़ जाते है। वो हतप्रभ सा नृत्य देखने लगते हैं.... जटाटवी गलहजलह प्रवाह पावितस्थले गलेवलब्यलंबितांग भुजंगतुंग मालिकाम डमहःङम..डमह ....डमः......... ढोलक पे थाप बढ़ता जाता है....नृत्य और तेज हो जाता है। सैनिक आगे बढ़ते है.....सर धर से अलग हो जाता है। बादल घिर आते हैं।मूसलाधार बारिश होने लगती है। कोई भी मुगल सैनिक शिवलिंग तक नही पहुंच पाते है। तभी घोड़े के टाप संग 10 सैनिकों के साथ महाराज का आगमन होता है। एक कटार हवा में नाचता हुआ एक श्रवण के सीने में समा जाता है। ढोलक पे थाप बन्द हो जाता है......अट्ठहास गूंजता है और दोनों को बंदी बनाने का निर्देश मिलता है। इससे पहिले सैनिक आगे बढ़ते मंदिर के पीछे से एक तीर एक सैनिक को भेदता घोड़े को आ लगता है। महाराज धम्म से नीचे आ गिरते है। उनका टोप लुढ़क के नवरोज के पैरों के पास आ गिरता है जिसे नवरोज पैरों से मसल देती है। महाराज तलवार खींच खड़े होते हैं।तभी मंदिर के पीछे से बूढ़ा भील निकलता है। अपने धनुष को साध कहता है"तुम सब पापी हो।भले हम मिट जाएं पर ये शिव नगरी रहेगी। ये अमर प्रेम रहेगा। मेरे जीते जी तुम शिवलिंग को छू भी नही सकते। एक सैनिक हरकत में आता है। भील का तीर उसके गले को फाड़ता पेड़ से जा लगता है। कई और सैनिक आगे बढ़ते हैं मोहन और नवरोज उसे धूल में मिला देते है। टीले पे और अधिक सैनिक आ जाते है। तलवार और कटार से घमसान छिड़ जाता है। महाराज की आंखे राजकुमारी और मोहन के चपलता को देख हतप्रभ होती दिखती है। तभी एक भाला बूढ़े भील को चिड़ता आगे बढ़ जाता है। मोहन उसे थाम धम्म से जमीन पे बैठ जाता है। नवरोज लड़ते हुए बेहोश हो जाती है। ************************** नवरोज को होश आता है। हथकड़ियों में जकड़ा मोहन घुटने के बल बैठा नजर आता है। वो उठने की कोशिश करती है।तभी दो सैनिक उसे घसीटते हुए एक दीवार के सहारे खड़ा कर देते है। एक राजमिस्त्री ईंट जोड़ने लगता है। मोहन उसे रोते हुए देखता है। नवरोज मुस्कुराती है। महाराज का आदेश- अगर तुम इस्लाम स्वीकार कर लो तो हम तुम्हे जागीर के साथ नवरोज सौंप देंगे। मोहन- बस कंपकंपाते होठो से ना बोलता है कोड़े की आवाज आती है.....सड़ाक...सड़ाक...सड़ाक नवरोज होंठो को दांतों में दवा आंखे बंद कर लेती है। कंधे तक इंट जुड़ जाने के बाद महाराज इशारा करते है। राजमिस्त्री रुक जाता है। फिर इशारा होता है दो सैनिक हाथों में कील लिए आगे बढ़ते है। नवरोज की चीख निकल जाती है। सैनिक बेरहमी से मोहन को औंधे लिटा हाथों पे कील ठोक देते है।दर्द से बिलबिलाता मोहन जमीन पे पांव रगड़ता है। नवरोज के गर्दन तक इंट जोर दिया जाता है।अब वो बस खुली आँखों से सब नज़ारा देखने को मजबूर होती है। महाराज का इशारा होता है।दो जल्लाद गर्म सलाखें ले आगे बढ़ते है.......मोहन के दोनों आंखों में सलाखें डालकर वो अट्टहास करते है। मोहन चीखता,बिलबिलाता है,कील वाले जूते से दो सैनिक उसके जबड़े को दवा देता है। वो बेहोश हो जाता है। **************************** खुले मैदान में मोहन को हथकड़ियों से जकड़ लाया जाता है। नवरोज सामने की दीवार में लगभग चूनी जा चुकी है सिर्फ उसका गर्दन हर माजरा को देखने को छोड़ दिया गया है। महाराज हंसते हुए कहते है....इस आशिक की कोई आखिरी खुवाहिश हो तो बताए। हम मरने वाले कि इक्षा जरूर पूरी करते है। फूटी हुई आंखों से आंसू छलकते है। वो कराह कर बोलता है...अपने नवरोज को छूना चाहते हैं....महाराज क्रुद्ध होते हुए उसकी जिह्वा काट देने का आदेश देते हैं। ........सैनिक आगे बढ़ते हैं।जूते की चरमराहट सुन एकाएक मोहन चीखता है बोलने लगता है...... ......सरोज.....हम तुमरे बगैर नही जी सकते.....हम तुमसे मिलने के लिए उ पुल बनाए थे पर भोलन चाचा धोखे से अपना नाम कर गए..... मुखिया जी भी चंदा का पैसा खा उनका साथ दिए हैं......उ पट्टी का मंसुखवा गवाह है....उ पुल हमरे प्यार की निशानी है...... तुम जानती है सरोज....हमदोनो उ पुल पे गले मिल चुके हैं...हमको नहीं मरना है अभी.... हम सरोज के साथ फेरा लिया हूँ। उ हमरी धड़कन है। उ आई है हमरा नाटक देखने। सरोज....ए सरोज...हमको नहीं पता मेरा का होगा....पर मरेंगे तुमरे गोद मे सर रखकर। किसी के समझ मे कुछ नहीं आता कि एकाएक मोहन ये कौन सा डायलोग बोलने लगा। सैनिकों के द्वारा आगे बढ़ जीभ काटने का दृश्य सम्पन्न किया जाता है। .....माइक का साउंड बन्द कर दिया जाता है टी...टिं.गूंजने लगाता है....पर्दे के पीछे हलचल मच जाती है। भीड़ इकट्ठे हल्ला पे उतर आता है। अरे भाई ई नवरोज सरोज का क्या मामला है? इतने में महिला भीड़ को चीरते हुए सरोज मंच पे चढ़ जाती है.....दिलखुश को गले लगा बेतहाशा चूमने लगती है....कोई कुछ समझ पाता इससे पहिले उ पट्टी के कुछ लोग हंगामा करने लगे। अरे ई त भोगिन्दर जी के बेटी है रे.....ई हुआँ का कर रही है? तबतक भोगिन्दर जी का कोई सहयोगी भीड़ में इंटा चला देता है.....हंगामा और शोर मच जाता है।डंडा-फट्ठा ले कई, ई पट्टी और उ पट्टी के लोग भीड़ जाते हैं।DM साब सर बचा के भागते है...महिला लोग का भीड़ छितर-बितर होने लगता है। भोलन चाचा भाग के मंच पे पहुंचते हैं.....शांति बनाए रखने के अपील करने लगते हैं। तभी एगो इंटा लाइट पर लगता।धुप्प से स्टेज पे अंधेरा हो जाता है। लोकल थाना का पुलिस सब दौड़ता है। अफरा-तफरी मच जाता है। भीड़ उग्र हो जाती है पुलिस सबको घेर के धुनने लगती है।10-20 बॉक्सिंग खाके पुलिस पीछे भागती है। अंधेरे में लाठी घूमने लगता है।माय गे... बापरे ...अरे तेरी का...गूंजने लगता है हम और सरोज बेतहाशा स्टेज पे एक दूसरे को चूमते खड़े रहते हैं। ************************** झटपट कमिटी लाइट को ऑन करवाता है। हम नजर उठा के देखे त हम और सरोज ही स्टेज पे बचे थे।उ हमरा गले मे हाथ डाल हमसे लिपटी थी। महाराज को कोई इंटा मार दिया था।कपार से खून बह रहा था। दू गो सैनिक लात-मुक्का खा के बगल में कच्छा पहने बैठा था। नवरोज कपार पे हाथ देके किनारे बैठी थी,अंधेरे में कोई उसको लाफा खींच लिया था सो कान सनसना रहा था। बुड्ढा भील दांत पकड़ के बैठा था कोई उसके थुथना पे फाइट मार निकल लिया था। श्रवण सब का पीताम्बर कोई खींच लिया था सो अंडरवियर में लाज से कोना में पर्दा में लिपट के मुंडी निकाले हुए था। धनुष भाला सब इधर उधर बिखरा पड़ा था। जितना क्षति युद्ध के सीन में नही हुआ त उतना इस घमसान में हो गया था। कलुआ जिसका घोड़ा भाड़ पे लाया गया था उसको कोई कूट दिया था,गर्दन स्टेज से नीचे लटका हाथ-पैर छितराए हुए था। सरोज धीरे से बोली,चल निकल ले....दिलू.... माई स्वर्ग सिधार गई....घर मे कोई नही था....बाउजी सबके साथ कंही निकले थे...शायद मेला देखने ही....छोटकी कंहाँ से हमको ढूंढते मासी घर आ गई.....माई मेरे हाथ से अंतिम बार गंगाजल पी.....चल घर....छोड़ नाटक...हमशे सहा नहीं जाता....छोटकी का रो रो के बुरा हाल है। हमदोनो छोटकी सहित मेला से गायब हो लिए। सब शांत हुआ त मैदान का दृश्य ऐसा था जैसे हल्दीघाटी का यद्ध यंही हुआ हो। इंटा-पत्थर बिखड़ा पड़ा था। कंही किसी का गमछा कंही मूढ़ी-कचरी पसरा हुआ था। बांस-बल्ला सब उखड़ गया था। मैदान से सटे मिठाई वाला का जिलेबी,रसगुल्ला छितराया हुआ था। वो हाथ मे झझरी लिए दुकान के सामने डटा हुआ था।सजावट के लिए लगाया गया पताका सब इधर-उधर झूल रहा था। माइक पे अगले सीन के प्रस्तुति और शांति के साथ नाटक देखने के लिए गुहार होने लगा। ************************** पर्दे के पीछे गृहयुद्ध चिड़ा हुआ था।महाराज एकदम से मंच पे आने को तैयार नही थे। चारो श्रवण वेद की जगह तेरी माय... तेरी बेहन की गाली बके जा रहे थे। सैनिक सब मेला कमिटी को भाला भोकने पे बेताब थे। बुड्ढा भील कमर में गमछा बांध भोलन का कॉलर पकड़े खड़े थे। कोई किसी का सुनने को तैयार नही था। आधा भीड़ छट गया था। महिला दर्शक का कोना खाली पड़ गया था। रह-रह के उ पट्टी और ई पट्टी के लोगों का ललकार सुनाई दे रहा था। समय आने पे एक दुसरे को देख लेने की धमकी से माहौल गरम था। आखिरकार भोलन चाचा को नाटक के समाप्ति की घोषणा करनी पड़ी। बांकी के कलाकार तू-तू ,में-में करते घर को विदा हुए। मेला में सन्नाटा पसर गया। *********************************** घर आके देखा।माई का पार्थिव शरीर आंख खोले मेरी प्रतीक्षा में थी। मेरी आंखों से आंसू आ गए। मैंने माई का हाथ चुम लिया। छोटकी,सरोज के गले लग फिर से सुबकने लगी। आस पड़ोस में सन्नाटा था। आते जाते इक्के दुक्के लोगों की आवाज सुनाई दे रही थी। कोई कह रहा था"ई सब दिलखुसवा के चलते हुआ। कोई कह रहा था मेला में सुरक्षा व्यवस्था उचित तरीके से नहीं था। कोई कह रहा था DM साब को भी 3-4 फाइट लगा है,कल देखना क्या-क्या होता है। हम तीनों सहमे हुए घर मे दुबके बैठे थे। 3 बजे रात में सरोज बोली...दिलखुश मेरा यहां रुकना ठीक नही होगा। बाउजी आ गए तो अलग हंगामा होगा। तुम कुछ देर माई के पास रहो छोटकी हमको घर छोड़ देगी। हम बोले...सरोज कल क्या होगा?सब तुमको पहचान गए है। तुमरे पिताजी भी देख ही लिए होंगे। बहुत बड़ा घटना होने वाला लगता है। सरोज हमको भड़ोसा दिल छोटकी के साथ निकल गई। हम डरे सहमे हताश हो माई के छाती पे सर रख रोने लगे ************************** साढ़े तीन बजे दरवाजा का सांकल खुलने का आवाज आया। छोटकी सरोज को छोड़ आ गई थी और मेरे बगल में बैठी थी।माई के सिरहाने अगरवत्ती जल रहा था। बाबूजी गांजा सोंट आए थे लड़खड़ाते हुए अंदर आए। अंदर का सीन देख बस आंखे फाड़ खड़े रह गए। भक्क से नशा उतर गया। हमरी तरफ देख के बोले" मोहन..अरे मोहन...खा गए ना अपने माई को,अब हमेशा के लिए बेलल्ला होके नाटक खेलते फ़िरो" ****** #हमरी प्रव्म कहानी भाग 13 #teachersday2020
#हमरी प्रव्म कहानी भाग 13 #teachersday2020
read moreManku Allahabadi
लोग ज़िंदगी जीते हैं एक दिन मरने के लिए हम तो हर रोज़ मरते है बस तेरी सोहबत में एक पल जीने के लिए !! ZID 1.13 -Manku Allahabadi ज़िद (भाग-13) #Zid #Stubborn #wannabewithyou #mankuallahabadi #monkeyloveschuhiya #clouds
ज़िद (भाग-13) #Zid #Stubborn #wannabewithyou #mankuallahabadi #monkeyloveschuhiya #clouds #अनुभव
read moreMishra Miracle
मधुशाला (भाग -13)... #mishraamiracle #madhushala #viral #Trending #nojotohindi #कविता
read moreAnjali Jain
बेटी को पर्दे में रखना, पढ़ाई लिखाई, खेलकूद सब में कटौती करना, 'पराये घर जाना है।' का राग अलापना, रुखे सूखे खाने को संस्कार बताना, हंसने बतियाने, घूमने-फिरने पर लताड पिलाना, हर बात में त्याग, सहनशीलता और शांति की घुट्टी पिलाना, वह कैसी माँ? एसी संस्कारी बेटी बहू बन कर जाएगी और खुद का पाला हुआ कुसंस्कारी बेटे जैसा ही उसे पति मिल गया तो 'किस्मत का लिखा' कहकर पल्लू झाड़ लेती है, वह कैसी माँ? बेटे की बेवाजिब करतूतों में ही उसकी खुशी बताती है, अपने ही बेटे के भविष्य पर तलवार चलाती है, एसी गाँधारी कैसी माँ?बेटियों को तो सीता और द्रोपदी बनाती है बेटों को दुर्योधन और रावण बनाती है वह कैसी माँ? कुछ गिनी-चुनी कौशल्या, यशोदा होती है बाकी गाँधारी जैसी माओं, धृतराष्ट्र जैसे पिताओं को अब सिंहासन से उतारना होगा, उनको उनकी सही जगह बतानी होगी! © Anjali Jain वह कैसी माँ भाग 02 13-08-21 #stay_home_stay_safe
वह कैसी माँ भाग 02 13-08-21 #stay_home_stay_safe
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