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पं.सुधाकर शुक्ला

वह रीत गहो #bharat #कविता

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B.K.Gupta Hind

मेरी बेटी sanskriti का डांस गहोई दिवस #Memes

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i am Voiceofdehati

रहन= रहन-सहन गहन=पकड़ रहन रहो जैसे शेर की गहन गहो जैसे बाज ऐसी छवि बनाइके करिये सबपे राज। #देहाती_बाबा #गांव_और_मैं #MyThoughts #yqoneliner #मेरेआसपास #voice_of_village

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रहन रहो जैसे शेर की
गहन गहो जैसे बाज
ऐसी छवि बनाइके
करिये सबपे राज। #रहन=  रहन-सहन
#गहन=पकड़

रहन रहो जैसे शेर की
गहन गहो जैसे बाज
ऐसी छवि बनाइके
करिये सबपे राज।
#देहाती_बाबा #गांव_और_मैं

रजनीश "स्वच्छंद"

चुप हो जाऊं।। तुम आज कहो मैं चुप हो जाऊं, खुश आज रहो मैं चुप हो जाऊं। जो भड़काती आग पवन बन के, तुम आज बहो मैं चुप हो जाऊं। #Poetry #Quotes #pyaar #kavita

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चुप हो जाऊं।।

तुम आज कहो मैं चुप हो जाऊं,
खुश आज रहो मैं चुप हो जाऊं।

जो भड़काती आग पवन बन के,
तुम आज बहो मैं चुप हो जाऊं।

है दुख की बदली घनघोर बड़ी,
मत आज सहो मैं चुप हो जाऊं।

कोई यादों में रहे सिमटा मैं रहूँ,
तुम आज रहो मैं चुप हो जाऊं।

गढ़ता जो मैं सपने अकेला था,
तुम आज गढ़ो मैं चुप हो जाऊं।

यादों के जो गहने संभाल रखे,
तुम आज गहो मैं चुप हो जाऊं।

तरकीबें भी रहीं खोटी अब तक,
तुम आज लहो मैं चुप हो जाऊं।

खलता है बहुत तन्हा ये सफर,
तुम साथ रहो मैं चुप हो जाऊं।

©रजनीश "स्वछंद" चुप हो जाऊं।।

तुम आज कहो मैं चुप हो जाऊं,
खुश आज रहो मैं चुप हो जाऊं।

जो भड़काती आग पवन बन के,
तुम आज बहो मैं चुप हो जाऊं।

रजनीश "स्वच्छंद"

चुप हो जाऊं।। तुम आज कहो मैं चुप हो जाऊं, खुश आज रहो मैं चुप हो जाऊं। जो भड़काती आग पवन बन के, तुम आज बहो मैं चुप हो जाऊं। #Poetry #Quotes #pyaar #kavita

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चुप हो जाऊं।।

तुम आज कहो मैं चुप हो जाऊं,
खुश आज रहो मैं चुप हो जाऊं।

जो भड़काती आग पवन बन के,
तुम आज बहो मैं चुप हो जाऊं।

है दुख की बदली घनघोर बड़ी,
मत आज सहो मैं चुप हो जाऊं।

कोई यादों में रहे सिमटा मैं रहूँ,
तुम आज रहो मैं चुप हो जाऊं।

गढ़ता जो मैं सपने अकेला था,
तुम आज गढ़ो मैं चुप हो जाऊं।

यादों के जो गहने संभाल रखे,
तुम आज गहो मैं चुप हो जाऊं।

तरकीबें भी रहीं खोटी अब तक,
तुम आज लहो मैं चुप हो जाऊं।

खलता है बहुत तन्हा ये सफर,
तुम साथ रहो मैं चुप हो जाऊं।

©रजनीश "स्वछंद" चुप हो जाऊं।।

तुम आज कहो मैं चुप हो जाऊं,
खुश आज रहो मैं चुप हो जाऊं।

जो भड़काती आग पवन बन के,
तुम आज बहो मैं चुप हो जाऊं।

Hasanand Chhatwani

*छोटी थी जब, बहुत ज्यादा बोलती थी* *माँ हमेशा झिडकती ,* *चुप रहो ! बच्चे ज्यादा नहीं बोलते .* *थोड़ी बड़ी हुई जब , थोड़ा ज्यादा बोलने पर* *माँ

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*छोटी थी जब, बहुत ज्यादा बोलती थी*
*माँ हमेशा झिडकती ,*
*चुप रहो ! बच्चे ज्यादा नहीं बोलते .*

*थोड़ी बड़ी हुई जब , थोड़ा ज्यादा बोलने पर*
*माँ फटकार लगाती*
*चुप रहो ! बड़ी हों रही हों .*

*जवान हुई जब , थोड़ा भी बोलने पर*
*माँ जोर से डपटती*
*चुप रहो , दूसरे के घर जाना है .*

*ससुराल गई जब , कु़छ भी बोलने पर*
*सास ने ताने कसे,*
*चुप रहो , ये तुम्हारा मायका नहीं* .

*गृहस्थी संभाला जब , पति की किसी बात पर बोलने पर*
*उनकी डांट मिली ,*
*चुप रहो ! तुम जानती ही क्या हों ?*

*नौकरी पर गई , सही बात बोलने पर कहा गया*
*चुप रहो ! अगर काम करना है तो*

*थोड़ी उम्र ढली जब , अब जब भी बोली तो*
*बच्चों ने कहा*
*चुप रहो ! तुम्हें इन बातों से क्या लेना* .

*बूढ़ी हों गई जब , कुछ भी बोलना चाहा तो*
*सबने कहा*
*चुप रहो ! तुम्हें आराम की जरूरत है।*

*इन चुप्पी की तहों में , आत्मा की गहों में*
*बहुत कुछ दबा पड़ा है*
*उन्हें खोलना चाहती हूँ , बहुत कुछ बोलना चाहती हूँ*
*पर सामने यमराज खड़ा है , कहा उसने*
*चुप रहो ! तुम्हारा अंत आ गया है*
*और मैं चुपचाप चुप हो गई*
*हमेशा के लिए...* *छोटी थी जब, बहुत ज्यादा बोलती थी*
*माँ हमेशा झिडकती ,*
*चुप रहो ! बच्चे ज्यादा नहीं बोलते .*

*थोड़ी बड़ी हुई जब , थोड़ा ज्यादा बोलने पर*
*माँ

Motivational indar jeet group

एक औरत की कलम से ...😢 छोटी थी जब, बहुत ज्यादा बोलती थी माँ हमेशा झिडकती, चुप रहो ! बच्चे ज्यादा नहीं बोलते . थोड़ी बड़ी हुई जब, थोड़ा ज्याद #कविता

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एक औरत की कलम से ...😢

छोटी थी जब, बहुत ज्यादा बोलती थी 
माँ हमेशा झिडकती, 
चुप रहो ! बच्चे ज्यादा नहीं बोलते .

थोड़ी बड़ी हुई जब, थोड़ा ज्यादा बोलने पर 
माँ फटकार लगाती 
चुप रहो! बड़ी हों रही हों .

जवान हुई जब, थोड़ा भी बोलने पर 
माँ जोर से डपटती 
चुप रहो, दूसरे के घर जाना है .

ससुराल गई जब, कु़छ भी बोलने पर 
सास ने ताने कसे, 
चुप रहो, ये तुम्हारा मायका नहीं .

गृहस्थी संभाला जब, पति की किसी बात पर बोलने पर 
उनकी डांट मिली, 
चुप रहो! तुम जानती ही क्या हों? 

नौकरी पर गई, सही बात बोलने पर
 कहा गया 
चुप रहो! अगर काम करना है तो 

थोड़ी उम्र ढली जब,  अब जब भी बोली तो 
बच्चों ने कहा 
चुप रहो! तुम्हें इन बातों से क्या लेना .

बूढ़ी हों गई जब, कुछ भी बोलना चाहा तो 
सबने कहा
चुप रहो! तुम्हें आराम की जरूरत है .

इन चुप्पी की तहों में, आत्मा की गहों में 
बहुत कुछ दबा पड़ा है 
उन्हें खोलना चाहती हूँ, बहुत कुछ बोलना चाहती हूँ 
पर सामने यमराज खड़ा है, कहा उसने 
चुप रहो! तुम्हारा अंत आ गया है 

और मैं चुपचाप चुप हो गई 
हमेशा के लिए .🌹🌹🌹🌹🙏🙏
जिंदगी फिर मिलेगी दोबारा

©motivationl indar jeet guru एक औरत की कलम से ...😢

छोटी थी जब, बहुत ज्यादा बोलती थी 
माँ हमेशा झिडकती, 
चुप रहो ! बच्चे ज्यादा नहीं बोलते .

थोड़ी बड़ी हुई जब, थोड़ा ज्याद
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