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Babli BhatiBaisla
सपनों के महल आलिशान ही होते हैं ख्वाब तो ख्वाब है जो आम नहीं होते हैं हकीकत में बदल जाते ख्वाब अगर यूं ही तो ख्वाबों कीमत के तकाजे खास नहीं होते बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla आलिशान
Vickram
आलिशान ख्वाहिशें,,,,,,, ख्वाहिशें भी आलीशान है हर किसी की इस शहर में । बडी बडी बातें और ना जाने क्या क्या सोच लेता है कोई । मेहनत के साथ वक्त और तकदीर को अपने पक्ष में रखना पड़ेगा । तब जाकर अंजाम इस जिंदगी का देखना नसीब होता है ©Vickram आलिशान ख्वाहिशें,,,
Vickram
यूं ही में लिखता रहुं सिर्फ तुम्हारे लिए,,, गुजर जाए सदियां अपना इतिहास बन जाए,, हर किसी इंसान को याद हो कहानी अपनी,, ये जिंदगी किसी भी तरह से आलिशान हो जाए,, ©Vickram आलिशान ईश्क,,,,,
DR. LAVKESH GANDHI
लूटबंगला अपने आलीशान बंँगले पर गुमान करता है वह कभी रावण ने भी किया था अपनी सोने की लंका पर गुमान जिसे श्री राम भक्त हनुमान ने पल भर में दिया था जला फिर तेरे आलिशान बँगले की क्या बिसात होगी रे पगले ! लूटबंगला #आलिशान मगर नहीं # #yqbangla #yqmahal #yqbaba #yqdidi #
saif ali live
माँ खुदा का नूर है इस ज़मीन पर कोहीनूर है है ज़माने को घमंड आलिशान शानो शोहकत पर नावाकीफ की मेरे माँ के पैरो के नीचे जन्नत भी धुल है by. saif ali live माँ खुदा का नूर है इस ज़मीन पर कोहीनूर है है ज़माने को घमंड आलिशान शानो शोहकत पर नावाकीफ की मेरे माँ के पैरो के नीचे जन्नत
||स्वयं लेखन||
हमारे शहरों में दो जिंदगियां बसती हैं साहब, एक ज़िंदगी वो जो ऊँचे आलिशान घरों में रहकर भी खुश नहीं, जिनकी खुशियों की चाबी दौलत में कहीं खो गई है, दूसरी ज़िंदगी वो जिनके पास सर छुपाने के लिए जगह नहीं बेशक, मग़र ख़ुशी की भी कोई कमी नहीं, कमा लेते हैं शान और शौकत ये शहर वाले नहीं कमा पाते तो बस दौलत प्यार की। ©Gunjan Rajput हमारे शहरों में दो जिंदगियां बसती हैं साहब, एक ज़िंदगी वो जो ऊँचे आलिशान घरों में रहकर भी खुश नहीं, जिनकी खुशियों की चाबी दौलत में कहीं
||स्वयं लेखन||
हमारे शहरों में दो जिंदगियां बसती हैं साहब, एक ज़िंदगी वो जो ऊँचे आलिशान घरों में रहकर भी खुश नहीं, जिनकी खुशियों की चाबी दौलत में कहीं खो गई है, दूसरी ज़िंदगी वो जिनके पास सर छुपाने के लिए जगह नहीं बेशक, मग़र ख़ुशी की भी कोई कमी नहीं, कमा लेते हैं शान और शौकत ये शहर वाले नहीं कमा पाते तो बस दौलत प्यार की। ©Gunjan Rajput हमारे शहरों में दो जिंदगियां बसती हैं साहब, एक ज़िंदगी वो जो ऊँचे आलिशान घरों में रहकर भी खुश नहीं, जिनकी खुशियों की चाबी दौलत में कहीं
Mahfuz nisar
शीर्षक:::: असमय भेंट क्या हम भी मरेंगे? भूख से, तो उन्होंने कहा, पहले ये जनता तो तबाह हो लेने दो, भूख बहुत लगी है,कुछ भी दे दो मैं खा लूँगा, मैंने चुनाव के समय बहुत पुरी सब्ज़ी खाई है, इसी आलिशान मकान के बड़े गराज में, तो-तो उन्होंने कहा, अभी चुनाव नहीं है, और तुम थोड़ी दूर से ही बोलो, मैंने मेरी गमछी से अब अपना मुँह ढाँप लिया, और निशब्द लौट गया अपनी झोपड़ी की झुकी छप्पर में। ✍मैं महफूज़ शीर्षक:::: असमय भेंट क्या हम भी मरेंगे? भूख से, तो उन्होंने कहा, पहले ये जनता तो तबाह हो लेने दो, भूख बहुत लगी है,कुछ भी दे दो मैं खा लूँग
Bhavesh Thakur
एक संकट स्वयं पर.. ©Bhavesh Thakur "Rudra" एक संकट स्वयं पर ये कैसा संकट आया है? क्यूँ अंधियारा सा छाया है? क्या देख रहा है तू ईश्वर? कैसी ये तेरी माया है? कुछ महत्वाकांक्षी लोग सोच
Anita Saini
वोट की महिमा वोट की अहमियत का क्या करूँ बखान... देखिए आलिशान बंगले मे रहने वाले "ग़रीब" को आज वो एक कंगाल के घर में खोजता अपने "नसीब" को। जो कभी एयर