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Sonam Jain
Sonu Goyal
HINDI SAHITYA SAGAR
कविता : "कब की छूट गईं वो राहें" आज सुबह वो घर से निकले, पहन के हाँथों में दस्ताने, दस्तानों में भी ठण्डे थे, कंपित हस्त हिमानी पाले। कोहरा छाया था सड़कों पर, पथ भी नजरों से ओझल था। तन भी ठिठुर रहा था थर-थर, मन भी बेहद बोझिल था। अंगुश्ताने भी पहने थे, ऊनी-अच्छे अंगुश्ताने। न ही ठंड अधिक थी, फिर भी ठंडी थी बाहें। ठंडी थी बस बाहें, या फिर पूरा तन ठंडा था, तन ठंडा था, मन ठंडा था, या फिर जीवन ही ठंडा था। उसके मन को जान न पाए, क्यों हम थे इतने अनजाने? मन मेरा उद्विग्न हो उठा, क्या थे हम इतने बेगाने? शायद! उसकी सिसकारी से, उर में जलती चिनगारी से, पलकों की एकटक चितवन से, शायद अब तक थे अनजाने। जिन पर चलकर हमें था जाना, कब की छूट गईं वो राहें। अब तो केवल शेष बची थी, दर्द भरी सिसकी और आहें। -✍🏻शैलेन्द्र राजपूत उन्नाव, उत्तर-प्रदेश 15.01.2023 ©HINDI SAHITYA SAGAR कविता : "कब की छूट गईं वो राहें" आज सुबह वो घर से निकले, पहन के हाँथों में दस्ताने, दस्तानों में भी ठण्डे थे, कंपित हस्त हिमानी पाले। कोहर
Ravindrakumar Ghogare
Dhanraj Gamare
kckfkfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjf ©Dhanraj Gamare जेवढ्या जागतिक संस्था बघत आहेत इच्छुकांचे फोन आले पाहिजेत कारण मला ७ वर्ष मी कारभार बघितला तुमचा फक्त थातुर मातुर काम करण्यात आले मी सर्व बघ
Poetry with Rahul Ekat
S.Kay_Hindustani
Poetry with Rahul Ekat