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Aghori amli
नारी के बिना आप वो क्यारी हो जिसमें कभी भी फूल नहीं खिल सकते - अघोरी अमली सिंह #amliphilosophy, #internationalwomensday ©Aghori amli नारी के बिना आप वो क्यारी हो जिसमें कभी भी फूल नहीं खिल सकते - अघोरी अमली सिंह #amliphilosophy, #internationalwomensday #womensday
Aghori amli
प्रेम के बसंत की महक तो ताजा थी पर तुम्हारे जाने की बात ने उसको पतझड़ में बदल दिया कहना सुनना शायद अलग विषय था आंखो के सूखे अश्क रूह में लिपट गए अगर वो बहते भी तो क्या कहते दिल और दिमाग के बीच मे तुम्हने दिमाग का चुनाव किया चुनाव शब्द ही राजनीतिक होता है इतना ही काफी है -अघोरी अमली सिंह #amliphilosphy ©Aghori amli प्रेम के बसंत की महक तो ताजा थी पर तुम्हारे जाने की बात ने उसको पतझड़ में बदल दिया कहना सुनना शायद अलग विषय था आंखो के सूखे अश्क रूह में लिप
Aghori amli
Anita Saini
कि क्यूँ ये शहर मुझे कबूतरखाना लगता है हरेक जीव दूसरे पर चढ़कर चुग रहा दाना लगता है। ये आलीशान गगनचुंबी इमारतें मुझे जाने क्यूँ..? कोई अधर में लटका हुआ सा ठिकाना लगता है काश! वो समझ पाता कि कितना कठिन गाँव की रसोई से इस कमरे में सुकून पाना लगता है कितना मुश्किल है बड़े शहर के रँग में ढलना यहाँ लोगों को समझने में भी ज़माना लगता है शहर में सपनें सच होते हैं मगर कितना मुश्किल ख़्वाबों को सिलकर अमली जामा पहनाना लगता है कि क्यूँ ये शहर मुझे कबूतरखाना लगता है हरेक जीव दूसरे पर चढ़कर चुगता दाना लगता है। ये आलीशान गगनचुंबी इमारतें मुझे जाने क्यूँ..? कोई अधर में
Ashok kumar
ग्रामीण मजदूर यूनियन, बिहार ने 29/09/2019 को करगहर प्रखंड के मोहनपुर खरसान के सामुदायिक भवन में बैठक किया। बैठक में यह निर्णय लिया गय
Abhishek Asthana
ये शब्द ही तो हैं जिनमे घुल कर मैं लफ्ज़ों को गज़ली शक्लें देता हूं ।। होकर मुतासिर दस्तूर-ए-जिंदगी से शब्दों को अमली जाम में पिरोता हूं ।। जो हुआ न होता वाक़िफ इस मुश्तकिल मशाल से कहते हैं लोग ज़िंदगी जिसे उसे कारवां की मिशाल देता हूं ।। गज़ल-ए-शौक गढ़ने के लिए धधकते शोलो में तपता हूं ।। होठों पर शब्दों की नुमाइश लिए चलता,ठहरता, फिर दौड़ता हूं ।। जलता रहा फिलहाल बिना किसी अंजाम मैं उन गर्दिशों के दिनों में लिखता रहा फिलहाल मैं ।। खिलते हैं जो शब्द उन्हें गुलजार बना सकता हूं लिखी हर गज़ल को अब बहार बना रखता हूं ।। ये शब्द ही तो हैं जिनमे घुल कर मैं लफ्ज़ों को गज़ली शक्लें देता हूं.............. -©अभिषेक अस्थाना(स्वास्तिक) ये शब्द ही तो हैं जिनमे घुल कर मैं लफ्ज़ों को गज़ली शक्लें देता हूं ।। होकर मुतासिर दस्तूर-ए-जिंदगी से शब्दों को अमली जाम में पिरोता हूं ।।
ABHISHEK SWASTIK
ये शब्द ही तो हैं जिनमे घुल कर मैं लफ्ज़ों को गज़ली शक्लें देता हूं ।। होकर मुतासिर दस्तूर-ए-जिंदगी से शब्दों को अमली जाम में पिरोता हूं ।। जो हुआ न होता वाक़िफ इस मुश्तकिल मशाल से कहते हैं लोग ज़िंदगी जिसे उसे कारवां की मिशाल देता हूं ।। गज़ल-ए-शौक गढ़ने के लिए धधकते शोलो में तपता हूं ।। होठों पर शब्दों की नुमाइश लिए चलता,ठहरता, फिर दौड़ता हूं ।। जलता रहा फिलहाल बिना किसी अंजाम मैं उन गर्दिशों के दिनों में लिखता रहा फिलहाल मैं ।। खिलते हैं जो शब्द उन्हें गुलजार बना सकता हूं लिखी हर गज़ल को अब बहार बना रखता हूं ।। ये शब्द ही तो हैं जिनमे घुल कर मैं लफ्ज़ों को गज़ली शक्लें देता हूं.............. -©अभिषेक अस्थाना(स्वास्तिक) ये शब्द ही तो हैं जिनमे घुल कर मैं लफ्ज़ों को गज़ली शक्लें देता हूं ।। होकर मुतासिर दस्तूर-ए-जिंदगी से शब्दों को अमली जाम में पिरोता हूं ।।