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Pratima Tripathy
बर्षो बाद लौटे कदम थक गए घर का रास्ता ढूढते। कच्ची सड़कों की जगह अब पक्की सड़कों ने ले रखी है। और किनारों पर उग आए है कितने कस्बो के बेनाम जंगल। कुछ मुड़ गये है, या रोक दिया गया आपसी सहमती से। जंगल के बाशिंदों की फरमान सुनकर।। #घर का रास्ता
Rahul Sharma
में आज अपनी कहानी सुना दु उनके होंठा की हँसी, मने देख वापिस मुड़ जा से, इसते बड़ा दर्द और के होगा, में स्यामी जाऊ तो मने देख मुँह फेर जा से, माँ का बेटा, बाप का हरामी, बहन का हीरो, ये सुणन ने कान तरस जा से, इसते बड़ा दर्द और के होगा, जब अपने ही अपने ने दूर कर जा से, या बेब्सी, या खामोसी, ये काले धुन्धले क़िस्से, यार मेने अपनी मर्जी तो थोड़ी छाटे से, इसते बड़ा दर्द और के होगा, जब अपने साथ देन ते मुकर जा से, शायद एक दिन होजा ऐसा वे पकड़ हाथ मने भीतर लेजा इस बात ने सोच-सोच के वो सो जा से, हाँ इसते बड़ा दर्द और के होगा घर का दर्द
Sukhdev Panday
जो कमाकर पैसे लाता हो घर का मुखिया उसे ही होना चाहिए,पैसे की कीमत सिर्फ कमाने वाले को ही होती है। अन्यथा उस घर में दरिद्रता का ही निवास रहता है। ©Sukhdev Panday घर का मुखिया
"Happy Jaunpuri"
घर का रास्ता ज़िन्दगी शुरू ही किए थे, कि मिल गए अनगिनत रास्ते, कुछ पर चला भी, याद भी रहे कुछ, पर भूल भी गए, इतनों के बीच भूलता नहीं मैं, वो गाव की पगडंडी, लहलहाती फसलें, वो फूल सरसों के, खलिहान चने के, दोनों के बीच वो सड़कें कीचड़ से भरी... चलने पर वृक्ष भी अपनी मौजूदगी जता देते.. भले भूल जाऊं मैं खुद को, पर न सकूंगा वो रास्ता घर का... ©Happy Jaunpuri" #घर का रास्ता
Anit kumar kavi
घर का रास्ता उनके लबों से निकला हर एक फसाना याद है मुझे देखकर अपने दरवाजे के पास आ जाना याद है पर ना जाने क्यों वो मुझसे इतना खफा हो गए कि मेरी गलियों को तक भुल गए मगर मुझे अब भी उनका घर का रास्ता याद है । घर का रास्ता
आपका अरविंद
मेरे घर का सीधा - सा इतना पता है मेरे घर के आगे मुहब्बत लिखा है ... घर का पता
prashant singh
ये बताओ तुम इश्क़ के बारे में क्या जानते हो, ये एक मीठा एहसास है क्या तुम ये मानते हो | चलो माना तुम अव्वल होगे Physics chemistry और maths में, लेकिन ये बताओ क्या तुम उसके घर का पता जानते हो | Stylo... घर का पता.
Kaushal Kumar
घर का मुखिया घर का मुखिया अक्सर घर की, मर्यादा में रह जाता हैं। घर में सबकी सुनते-सुनते, अपनी कहता रह जाता हैं।। अक्सर खुद को आगे करके, जो सारा बीड़ा लेता है। जिसके मन में जोड़ भरा हो, तोड़ उसे पीड़ा देता है।। सर्दी, गर्मी, बारिश में जो, डटकर सदा खड़ा रहता है। उसका खुद का दर्द हमेशा, अंदर कहीँ पड़ा रहता है।। अंदर - अंदर चीख रही पर, बाहर लगता खेल रही है। कौन समझता है धरती को, कितनी पीड़ा झेल रही है।। हरा - भरा जो वृक्ष सदा से, फल, छाया देता आता है। टहनी सूखी हो जाने पर, जलने को काटा जाता है।। बोझ उठा लेने वाले पर, बोझ अधिक डाला जाता है। सदा सहज ढल जाने वाला, जगह-जगह ढाला जाता है।। रीत जगत की ऐसी ही है, जो जितना करता जाता है। वही अंत में उम्मीदों के, खंडन से मरता जाता है।। ............कौशल तिवारी . . ©Kaushal Kumar #घर का मुखिया
Mď Âĺfaž" "Šयरी Ķ. दिवाŇ."
["घर का चिराग़"] हम आज उनकी तस्वीर सीने से लगाए बैठे हैं अपना हर दर्द कुछ पल के लिए भुलाए बैठे हैं गैरों के लिए हम हर वक़्त मसरूफ़ ही रहते हैं एक उनके लिए घर का चिराग़ जलाए बैठे हैं ©Mď Âĺfaž" "Šयरी Ķ. दिवाŇ." #घर का चिराग़