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Kavita jayesh Panot
मानसून / बारिश का मौसम जुलाई का महीना था श्रावण माह की शुरुआत। मुम्बई की तेज बारिश, बादलो ने दिन में ही रात से लिबाज ओढ़ लिया था। बिजली की तेज गड़गड़ाहट के साथ बरखा रानी कहर ढा रही थी। शाम के 5 बजे थे कल्पना अपनी दिनचर्या के काम पूरे कर ,अपनी 4 वर्ष की बेटी को सुलाकर हर रोज की तरह अपने घर की खिड़की के पास बैठी थी। जैसे बेसब्री से किसी के आने का इंतजार कर रही हो। अपने हाथों में मोबाइल फ़ोन लिए हर रोज घर की खिडकियों के पास बैठना उसका दैनिक क्रम हो चुका था। उसे हर रोज इंतजार रहता दिवेश का जो सुबह जल्दी घर से निकल जाता और रात को देरी से घर आता जब सभी लोग सो जाया करते ।खिड़की के पास बैठे बैठे पता ही नही चला शाम के सात बज चुके थे , दिवेश पेशे से चिकित्सक था हर रोज हॉस्पिटल से अपनी प्राइवेट क्लिनिक के लिए निकलने से पहले वह एक बार कल्पना को कॉल करता था, दोनों के बीच ज्यादा बाते तो नही हो पाती थी सिर्फ , ये कहकर फ़ोन रख देता की अभी में हॉस्पिटल से क्लिनिक के लिए निकल रहा हूँ। इस तरह दिवेश तो अपने व्यस्त शेड्यूल में वक्त गुजार कर लेता। लेकिन कल्पना हर रोज दिन पर दिन मन ही मन घुटती जा रही थी, सोचती थी क्या यही असलियत है जिंदगी की। दो प्यार करने वाले व्यक्ति शादी के पहले जो एहसास और मिठास का अनुभव करते है , वो शादी के बाद जिम्मेदारियों के और काम के बोझ तले दब जाता है। खिड़की के पास बैठ हर रोज इंतजार में यही ख्यालो के समंदर में खो जाती। lockdown का ये वक्त जहाँ इंन्सा घरो में कैद हो चुका है , हर कोई अपनी फैमिली के साथ वक्त गुजार रहा है, वही कल्पना अपने जज्बातो को दबा अपनी बेटी के साथ दिन काट रही थी। बात उस दिन की है जब जोरदार बारिश हो रही थी आकाश में बिजलियों की गड़गड़ाहट थी। कल्पना अपने घर की खिड़की से बाहर का नजारा देखती बाहर बैठी थी , रोज की तरह फ़ोन हाथ मे लिए दिवेश के फ़ोन कॉल का इंतजार करती। जब दिवेश का फ़ोन न आया तो उसने सोचा वो खुद ही फोन लगा ले , दिवेश ने अपना फ़ोन साइलेंट पर कर रखा था, कोरोना वारियर्स कमिटी का मेंबर्स होने के नाते उसे अपने डिपार्टमेंट के अलावा कई दूसरे काम भी करना होते थे। कमिशनर के साथ मीटिंग अटेंड कर वो सीधा क्लिनिक के लिए निकल गया और फ़ोन साइलेंट पर से हटाना ही भूल गया. क्लिनिक पर पेशेंट्स की लाइन देख फिर अपने काम मे व्यस्त हो गया .... क्लीनिक पर सारे पेशेंट पूरे हो तब तक रात के 11 बज चुके थे। फिर हर रोज की तरह वह रात के राउंड लेने अपनी अटैचमेंट हॉस्पिटल्स में चला गया , और इस दौरान कल्पना का हाल बेहाल हो गया । जैसे बाहर की बारिश और गड़गड़ाहट ने उसके दिल में डेरा डाल लिया हो। मन मे गुस्सा, आँखों से बौछार आँसुओ की धार , रुकने का नाम ही नही ले रही थी। एक बार फ़ोन न उठाने पर ये हाल? नही ऐसा एक बार नही कई बार हुआ था और कल्पना ने इसे स्वीकार , भी लिया था । लेकिन आज फ़ोन न उठाने पर तुफानो की तरह कई ख्याल उसे खोखला किये जा रहे थे। सच भी तो है धीरे धीरे एहसास वक्त के साथ , ओझल होते जा रहे थे। वो रिश्ते जो प्यार के नाम से जुड़े थे, सात फेरों में बंध , औपचारिक होते जा रहे थे। दिवेश अपनी दुनियॉ में इतना आगे बढ़ चुका था , जहाँ, नाम, इज्जत, पैसा , सबकुछ था , लेकिन जज्बात ओझल हो चुके थे। कल्पना को अपनी जिंदगी से एक ही शिकायत थी , हर रोज एक ही सवाल .... एक ही बात पूछती अपने आप से और दिवेश से.... सबकुछ है मेरे पास पर उसका आनंद ले सकू वो मन नही है, और तुम्हारे पास सबकुछ है वक्त ही नही है। बस बारिश के इस दिन ने उसके मन के जज्बातो को उथल पुथल कर रख दिया। घंटो खिड़की के पास बैठ मन के अंतर्द्वंद ने उसे घंटो रुलाया । यादों के वो पुराने चलचित्र, वो एकाकीपन, वो उम्र के साथ उफनते प्यार के मीठे जज्बात, हर एक बात . सबकुछ भीगा उस दिन की बारिश में। बहोत कुछ बह गया , ये सावन यादो के साथ एक सबक ले कर आया था। एक सबक , एक सवाल, और जिन्दगी जीने के लिए कुछ नए खयाल। अपनी आँखों से आँसुओ को पोछती दूसरे दिन कल्पना खिड़की के पास बैठ उन परिन्दों को निहारती रही जो , दिन भर की उड़ान के बाद अपने घर को लौट जाते है।परिन्दों को अपना हमदर्द मान अपने एकाकी मन को भरती रही , खुद को दिलासा दे अब सफर जिन्दगी का तय करती रही। एक तलाश के साथ एक सवाल के साथ हर रोज खिड़की के पास बैठ, हाथ मे चाय की प्याली, डायरी और कलम लिए अब अपने सवालो को जिन्दगी की डायरी में लिख, उनके जवाबो को ढूंढने की राह तय करती रही। सावन की ये बारिश वैसे तो प्रेमी प्रेमिकाओं के लिए एक पर्व लेकर आती है , कुछ न कुछ यादगार बना जाती है। हा कल्पना के लिए ये बारिश, अकेलेपन से जुलझती आग को बुझाने का एक नया आयाम लेकर आई थी। बारिश का वो दिन कल्पना की जिंदगी में यादगार बन गया। एक लेखिका के रूप में नई कल्पना का अवतरण हुआ। और प्यार की इस कहानी को एक अच्छा मोड़ मिला। कविता जयेश पनोत #मानसून#बारिश का मौसम
Shyarana Andaaz
इस मानसून भी रोये हैं हम । कम्बख़त पिछली बार की याद आ गयी।। ©Pushp Raj मानसून #मानसून #monsoon
Ek villain
पिछले कुछ समय में हम मौसम की नियमित के प्रभावित अनुभव कर रहे हैं विश्व में तापमान बढ़ने से मानसून पर खतरा असर पड़ेगा इस का पूर्व अनुमान लगाना कठिन है जब जर्मनी के विशिष्ट संस्थाओं की वैज्ञानिक से पूछा 1030 करोड़ साल पहले गृह में मानसून की बारिश में पैटर्न की बोलने जलवायु को बढ़ाने की कोशिश उनके सामने आएगी ©Ek villain #मानसून की तीव्रता का अध्ययन #Light
anjaan shiv
दिलों में दफ़्न दिलों के जज्बात रहने दो। आँखों मे बंद इन लबों के बात रहने दो। तुम पल भर प्यार से बात तो कर ना पाए। छोड़ो इस बरसात में मुलाकात रहने दो। अंजान #मानसून
Vinay
रिमझिम बूंदे बरस रही है, छम-छम धरती नाच रही है खिड़की खोली तो लगा हवा पेडो़ं से बतिया रही है ताजा ताजा अहसास है ये, धरती अम्बर से मिल रही है झुलस गयी थी बिच्छोह की आग में आज धरा आसमान में समा रही है, कड़क बिजली गिराता आसमान, अपने आने का ऐलान करता है अपने यार से मिलने की घडी़ आ गयी है पंछी हवा में उड़ते है बारिश की बूंदों का स्वाद लेते है उनकी खुशी दुगूनी हो गयी है, ये रस धारा हर ओर फैल रही हर तरफ नये जीवन की फुहार है गर्मी से राहत दिलाने मानसून आ गयी है.. विनय मानसून
Shyarana Andaaz
अकेली आती है और अकेली ही चली जाती है। अब के मॉनसून, गलियों में कस्तियाँ नहीं तैरती। होती है अब भी वही बारिश, पहले सी। गर गलियों की रौनक, अब घरों से नहीं निकलती। ©Shyarana Andaaz मानसून और बचपन #मानसून #बचपन #monsoon #Childhood
Vikas Singh Parihar
एक बार फिर आ गया हैं मानसून, लेकर के बहार ही बाहर। मौसम की इस रिमझिम बरसात, से दिल लगा है गुदगुदाने को। मन मचल रहा है इसमें भीग जाने को, लग रहा है देख कर जैसे स्वर्ग आ गया धरती पे। अप्सराएं कर रही जैसे नृत्य धरती में, झर झर की मधुर ध्वनि कर रही है पागल। इस रिमझिम फुब्वार में लगा नाचने मयूर, देख प्रकृति का रूप अनोखा में हो रहा बाबरा। दिल कह रहा है इसमें बार बार भीग जाने को, यह बरसात को देख वृक्ष लगे हे शर्माने। लगता है देखकर कोई नाच रहा चित्तचोर, हे अनुपम घटा आई हर तरफ हरियाली छाई। हो रहा देख यह रूप दिल मेरा बाग-बाग, बस देखता रहूँ ये नज़ारा बार बार। एक बार फिर आ गया मानसून, लेकर के बहार ही बहार। ©Vikas Singh Parihar #मानसून #बारिश