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Banshi
दिल की जो प्यास है, वो प्यास बुझा लू तो चलूँ उनको एक बार मैं, सीने से लगा लू तो चलूँ तुझसे मेरी ये गुज़ारिश है, ठहर जाओ जरा अपनी सोई किस्मत को जगा लू तो चलूँ मुझसे वो रूठे है, मैं उनको मना लू तो चलूँ तुम अगर मेरा साथ दो तो मैं चलते-चलते तुम अगर मेरा साथ दो तो मैं चलते-चलते दास्ताँ उनको मोहब्बत की सुना लू तो चलूँ #daastan #aapkaBanshi #shyari #hindi #nojoto दिल की जो प्यास है, वो प्यास बुझा लू तो चलूँ उनको एक बार मैं, सीने से लगा लू तो चलूँ तुझसे मेर
Sant Prasad Maurya
लडूंगा नहीं तो जीतूँगा कैसे, संघर्ष का साथी हूँ रुकूँगा कैसे, काँटों का काम है चुभना, उन्हें कुचलूँगा नहीं तो चलूँगा कैसे...
#BM27
❣ सिर्फ़ ख्वाबों से बात करूँ वो मिले तो उससे ही मुलाक़ात करूँ यूँ तो जाऊँगा नहीं लौट के कही गर तुम ही मंज़िल हो तो चलूँ तुम्हारें रास्तों से ही मुलाक़ात करूँ 😍❣ ❣😍 गर तुम ही मंज़िल हो तो चलूँ 😍❣ ✍✍✍comments . . .LIKE 👍❤ . . .
Chandan Sharma
बदल देना है मुझे ठहराव की उन चाबियों को जो नहीं खोल पायीं कभी मेरे सपनों के ताले ये हो जाए तो बात बने... वो मिल जाए तो चलूँ... किसी "ये...वो...की शर्त से अब नहीं बंधना हैं मुझे अब के बरस अपने लिएअपनी शर्तों पर बस चलना हैं मुझे! #Promising2021 #HappyNewYear ©Chandan Sharma-Virat बदल देना है मुझे ठहराव की उन चाबियों को जो नहीं खोल पायीं कभी मेरे
R M Sargam
चार दिन की जिंदगी किस किस से कतरा के चलूँ खाक हूँ मैं, खाक पे क्या खाक इतरा के चलूँ.... ©R M Sargam ख़ाक इतरा के चलूँ...
Azaan Akhtar Ali
है जो संग नहीं उसे क्या कहूँ, उसे छोड़ दूँ, या ले चलूँ; थोड़ा थकता हूँ, थोड़ा चलता हूँ, हर बार गिर के सम्भालता हूँ, जिसे हैं नहीं फ़िकर मेरी, मैं उसके रंगों में क्यों रंगू! जो मैं हूँ नहीं, वो मैं क्यों बनूँ, जो संग नहीं उसे क्या कहूँ, उसे छोड़ दूँ, या ले चलूँ ; मेरी मंजिले हैं, मेरे ख्वाब हैं, मेरे खुद के ही अंदाज हैं, चंद सिक्कों की चमचमाहट में, अपनी खुद्दारी क्यों बेच दूँ; जो मैं हूँ नहीं, वो मैं क्यों बनूँ, जो संग नहीं उसे क्या कहूँ, उसे छोड़ दूँ या ले चलूँ........ -Akhtar Ali उसे छोड़ दूँ या ले चलूँ
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल : पथ सुमन मैं बिछाता चलूँ । राह उनकी सजाता चलूँ ।।१ साथ जो कल नही चल सके । राह उनकी बनाता चलूँ ।।२ सच यहाँ बोलना पाप है । बात सबको बताता चलूँ ।।३ गिर गये हैं यहाँ जो अभी । आज उनको उठाता चलूँ ।।४ झूठ कब बोलना है तुम्हें । पाठ ये भी पढाता चलूँ ।।५ ठोकरें खा गिरे जो अभी । राह उनको दिखाता चलूँ ।।६ दिल नहीं जब हमारे मिलें । हाथ फिर क्या मिलाता चलूँ ।।७ वो मिलेंगे न शायद कभी । अब गले से लगाता चलूँ ।।८ आरजू है यही अब प्रखर । चैन उनका चुराता चलूँ ।। ९ २७/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- पथ सुमन मैं बिछाता चलूँ । राह उनकी सजाता चलूँ ।।१