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Satguru ki kripya

सत्संग विचार सत्संग विचार #प्रेरक

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Hasanand Chhatwani

सत्संग ##

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 #सत्संग ##

CK JOHNY

सत्संग

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जो सत्संग में शामिल हो गया
वो खुदा के काबिल हो गया। सत्संग

HP

सत्संग

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आत्म-निर्माण के कार्य में सत्संग निःसन्देह सहायक होता है किन्तु आज की परिस्थितियों में इस क्षेत्र में जो विडंबना फैली है, उससे लाभ के स्थान पर हानि अधिक है। सड़े-गले, औंधे-सीधे, रूढ़िवादी, भाग्यवादी, पलायनवादी विचार इन सत्संगों में मिलते हैं। फालतू लोग अपना समुदाय बढ़ाने के लिए सस्ते नुस्खे बताते रहते हैं या किसी देवी देवता के कौतूहल भरे चरित्र सुनाकर उनके सुनने मात्र से स्वर्ग, मुक्ति आदि मिलने की आशा बँधाते रहते हैं। ऐसा विडम्बनापूर्ण सत्संग किसी का क्या हित साधेगा? सत्संग

vimlesh Gautam https://youtube.com/@jindgikafasana6684

इश्क़ ए सदायें तो तलबगार है
इश्क़ ए तो बहार दिल यार है..

किधर खोजिए इश्क दीदार है
जिधर देखिए इश्क हमराज है

बताओ जरा तलब इश्क़ की है
उधर देखिए  इश्क  इंतजार है

जरा  सोचिए  इश्क़  बेकरार है
इधर  देखिए  इश्क  दिलदार है

लबों  पे  नज़्म चाहत  महक है
इधर  देखिए  दिल  में  प्यार है

अभी तो दिलों की दास्तां बनीं हैं
अभी  यार तो दिल से मनुहार है

जिधर देखिए इश्क ए बेजार है
इधर देखिए  इश्क ए बीमार  है

इश्क मेहरबान खुदा हो गया है
इधर देखिए  इश्क  आधार  है।।

विमल सागर

©vimlesh Gautam https://youtube.com/@jindgikafasana6684 #बंदगी

maher singaniya

बंदगी...

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डर सबको लगता है पर  थक गई हूं सबको जवाब देते देते,
अब मौन रहना है...

थक गई हूं सबकी परवाह करते करते,
अब लापरवाह होना है...

थक गई हूं सबको समझाते समझाते,
अब नासमझ बनना है...

थक गई हूं किसी के खोने के डर से,
अब बेखौफ होना है...

थक गई हूं खुद को सही साबित करके,
अब गलत होना है...

थक गई हूं रोते रोते,
अब बस इंसान है...

जिंदगी खुदा की देन है,
अब बस उसकी बंदगी में ही जीना है...

©maher singaniya बंदगी...

Prabhu Kishore Sharma ( शर्मा जी)

सभी को मयस्सर नही जिंदगी ,
 आसान नहीं होती बंदगी ,
 दुआ तब ही होगी कुबूल ,
 जब दिल से साफ करो गंदगी ।

- प्रभु किशोर शर्मा (शर्मा जी) #बंदगी

संजीव निगम अनाम

सूफियाना हो मिजाजी,रूह निकले शेर है
यूं लगे हर लफ्ज़ में,हो खुदा का नूर है।

जो लबो से बात निकली,उस खुदा का शुक्रिया।
और चर्चा मै तुम्हारी,बंदगी मशहूर है। #बंदगी

पूर्वार्थ

धर्म सत्संग प्रवचन या फिर ईश्वर पर अंधविश्वास जो श्रद्धा से कही अधिक हो... मैं श्रद्धा और अंधविश्वास को ईश्वर के लिए दो  अलग अलग भाव से देखती हूं.... अगर आप ईश्वर के भरोसे बैठे रहे की वो जो करेंगे अच्छा करेंगे या वो एकदिन जरूर समय बदलेंगे तो मैं इसे अंधविश्वास मानती हूं... लेकिन अगर आप अपने कर्मो और अच्छे विचारों के साथ पूरी ईमानदारी से तत्परता के साथ ईश्वर को भी मानते है तो मैं इसे श्रद्धा कहूंगी, 
    गौतम बुद्ध ने जब धर्म को अपनाया तो उन्होंने दाम्पत्य और गृहस्थ जीवन का त्याग कर दिया... उन्होंने अपने समस्त ध्यान धर्म सत्संग अच्छे विचारों में लगाया... यशोधरा को दुख तो जरूर हुआ क्युकी वो उनको कुछ कहकर नही गए लेकिन यशोधरा की उम्मीदें और इच्छाएं आत्मनिर्भर हो गई उन्हे बुद्ध से कोई आशाएं नहीं रह गई.....
और बुद्ध ने भी इनपर कभी भाव व्यवहारिकता का बंधन नहीं डाला .....
 एक स्त्री के लिए धर्म सत्संग असमय पूजा पाठ मंदिर या व्रत जप तप गृहस्थ जीवन में रहकर नामुमकिन बातें है या अधकुचली रीति रिवाज है, अकसर औरतें औसत उम्र ढल जाने के बाद ईश्वर को समझ पाती है... वो हमेशा वक्त नहीं मिलता का ही दुख रोती रहती क्युकी उनके लिए प्राथमिक धर्म और पूजा उनका परिवार होता है, कभी बच्चे छोटे होते तो कभी घर पर कोई बीमार होता, कभी लंच की जल्दी रहती तो कभी शाम रिश्तेदार आ जातें....
लेकिन एक पुरुष गृहस्थ जीवन से ऊब कर सन्यासी या धर्म का अनुयायी बनता है ...
  धार्मिक होना अच्छी बात है लेकिन धर्म के नाम पर कायर होना या जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेना धर्म का अपमान है.... इससे अच्छा है बुद्ध बनो और एक रात घर छोड़ दो फिर समझ आएगा धर्म का रास्ता इतना  सरल नहीं है...
गौतम बुद्ध कितने दिनों तक भूखे प्यासे रहे होंगे,, कितनी राते जाग कर काटी होंगी, मीलो पैदल चलते रहे होंगे , कितने कंकड़ कितने लोगो और कितने स्थानों पर वो एक अकेला शरीर कितना चुभता होगा... जिसे सन्यास कहा जाता है,
धार्मिक जीवन बहुत कठिन है अपनाना तो दूर इसे ईमान दारी  से छुआ भी नहीं जा सकता ।।

©पूर्वार्थ #सत्संग
#वेदज्ञान

pawan

सत्संग #Flute

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