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Vaibhav Gupta Comedy
सच्चों से हर दम लड़ी है ये दुनिया । झूठों के दम पर खड़ी है ये दुनिया ।। झूठों के दम पर ।।
saurabh lawaniya
Sameer Khan
बेवफा तोहरे चलते प्यार में बदनाम हो गईनी। झूठों के किरिया खईलु झुठो के वादा कईलु,,,हम त जियते निलाम हो गोईनी,,,,,।। ©Sameer Khan बेवफा तोहरे चलते प्यार में बदनाम हो गईनी झूठों के वादा कईलू तू के किरिया कईलू झूठों के वादा कईलू हो गई,🌷💘🌹🥀🥀🥀🥀🌷🙏👍 #together
राजेश गुप्ता'बादल'
अब ई वी एम कहो या कुछ भी जनता-जनार्दन का आशीष मिला है तो जरा झूम लिया जाए, जिनकी जल रही है पहले चलो उनको क्यूं ना फिर और जलाया जाए। जनता-जनार्दन की पल पल जय हो, झूठों के दिल में सच का भी भय हो।
NAWAB Nagori
सच्चे दिल की रानी है झूठों के सर का ताज नहीं कुछ भी लिख दे ये हो नहीं सकता ये कला है कोई अख़बार नहीं हम कलमकार है साहेब हमारी कलम किसी की मोहताज नहीं सच्चे दिल की रानी है झूठों के सर का ताज नहीं कुछ भी लिख दे ये हो नहीं सकता ये कला है कोई अख़बार नहीं हम कलमकार है साहेब हमारी कलम किसी की
Vikas Sharma Shivaaya'
जिंदगी मुझे पता नहीं सच और झूठ का कई बार तेरी लिखी बातों से विश्वास डोलता है क्यूंकि सच्चे व्यक्तियों को आज भी कटघरे में झूठे इल्जामों की चाशनी में झूठों के सामने अपनी सच्चाई देते पाया जाता है और अक्सर झूठों आंसू बहते -तन्हा /अकेला पाया जाता है ...! 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' जिंदगी मुझे पता नहीं सच और झूठ का कई बार तेरी लिखी बातों से विश्वास डोलता है क्यूंकि सच्चे व्यक्तियों को आज भी कटघरे में झूठे इल्जामों की
Vandana
शामिल नहीं है कोई भी सच की तलाश में हम जुस्तजू में खून बहाने कहां चले फिर से सलीम हम भी उठाने कहां चले अपनी ही लाश खुदी उठाने कहां चले। जीने की आरजू में जहर पी रहे हैं रोज फिर भी हवा में नाम लिखाने कहां चले।
Mohammad Arif (WordsOfArif)
झूठ का चलन फिर से आम हुआ है सच का किस्सा तबसे तमाम हुआ है सच कोई बोले तो उसे गद्दार कहते है झूठों के शहर में फिर ताम झाम हुआ है कोई अपना रुठे तो मनाओ उसे तुम वरना उसका किस्सा खत्म आम हुआ है अपने वादे से बिल्कुल मुकर गया है उसे देखो शहर का फिर से नाम हुआ है बेमतलब सी उसकी जिंदगी है संभलो क़ौम में फिर से देखो कत्लेआम हुआ है नज़र कोई मिलाना नहीं चाहता आरिफ हमसे सबका जो ऐसा वैसा काम हुआ है ©Mohammad Arif (WordsOfArif) झूठ का चलन फिर से आम हुआ है सच का किस्सा तबसे तमाम हुआ है सच कोई बोले तो उसे गद्दार कहते है झूठों के शहर में फिर ताम झाम हुआ है कोई अपना र
Mohammad Arif (WordsOfArif)
झूठों के शहर में हमने सच्चो को रोते हुए देखा है मुल्क की राजधानी में छोटे बच्चों को रोते हुए देखा है हमने अपनी जिंदगी में कुछ नहीं देखा सच है भ्रष्टाचारियों को मुल्क के गरीबों पर हंसते हुए देखा है इतना नाटक कैसे कर लेते हो तुम सब बताओं नेताओं को गरीबों पर अत्याचार करते हुए देखा है मिल बांट कर सब खां रहे है गरीब लोगों का हक़ गरीबों को आने से अपने पास उन्हें रोकते हुए देखा है सब कहते है गरीबों के लिए लड़ रहा हूं पर जाने क्यूं इस मुल्क में मैंने गरीबों को और गरीब होते हुए देखा है मुझको यकीं नहीं होता इनकी कहीं हुई बातों पर कहते कुछ और है मैंने उन्हें कुछ और करते हुए देखा है बता नहीं सकता दिल में कितनी कसक है आरिफ मुल्क में अमन चैन सुकून सब ख़ाक में मिलते हुए देखा है ©Mohammad Arif (WordsOfArif) झूठों के शहर में हमने सच्चो को रोते हुए देखा है मुल्क की राजधानी में छोटे बच्चों को रोते हुए देखा है हमने अपनी जिंदगी में कुछ नहीं देखा सच
vks Siyag
"ऐसा क्यों" ********* ऐसा सवाल हमेशा परेशान करता है, ऐसा सवाल रोज जहन की दिवारों से टकराता है, फिर एक भयंकर तूफान उठ जाता है, पर, वो सवाल कभी इम्तिहानों में नहीं पूछा जाता है, जब कोई इंसान अपनी जिंदगी दाव पर लगा देता है, किसी को जिंदगी देने के लिए, जब उसको जिंदगी मिल जाती है तो, उसी इंसान को जीते जी मार दिया जाता है, ऐसा क्यों? जब कोई इंसान अपनी राह के कांटों को हंसकर झेलता है, और किसी के लिए उसकी राहों के कांटे हटाकर, उसको मंजिल तक पहुंचाता है, फिर उसको ही राह का कांटा समझ लिया जाता है, ऐसा क्यों? जो इंसान स्वयं हर दर्द सहता है, और किसी के लिए अपनी सारी खुशियां न्योछावर कर देता है, फिर उसको ही दर्द का कारण समझ लिया जाता है, ऐसा क्यों? जब इंसान को उसकी मजबूरियां घेर लेती है, और मजबूरियां उसकी बेबसी के पत्थरों पर सर पटकती है, जब इंसानियत को सरेआम, सस्ते भावों में बेचा जाता है, और उन पर भी कोई हंसता है, ऐसा क्यों? जब मजदूर पूरे दिन दो वक्त की रोटी के लिए, कड़ी धूप में दिन भर पसीना बहाता है, खुद सूखी रोटी और नमक खाता है, और जब वो अपना हक मांगता है तो, उसके ईमान को क्ई नकाबपोश झूठों के द्वारा मिलकर कुचल दिया जाता है, ऐसा क्यों? एक फूल जो कांटों में खिलकर भी सबको खुशबू देता है, जब उसको कोई आम इंसान माली से बिन पूछे तोड़ लेता है, तो चारों ओर हंगामा मच जाता है, लेकिन, जब फूलों के अरमानों को, माली स्वंय पैरों से मसलता है, तो सबके मुंह पर ताला लग जाता है, ऐसा क्यों? जब कोई निस्वार्थ भाव से किसी का भला करता है, फिर भी उस बेगुनाह को अन्याय के फंदों पर लटका दिया जाता है, और असली गुनहगार को फूलों से नवाजा जाता है, ऐसा क्यों? जब कोई इंसान अपनी हर ख्वाईश दफन करके, दूसरे इंसान की हर ख्वाईश पूरी करता है, फिर भी उस इंसान का वजूद खत्म कर दिया जाता है, ऐसा क्यों? जब कोई इंसान किसी से बेपनाह मोहब्बत करता है, फिर भी उस इंसान को बेवफा बताकर, ठुकरा दिया जाता है, और किसी गैर को वफादार बताकर अपना लिया जाता है, ऐसा क्यों? जब कोई इंसान सबको खुश देखना चाहता है, सबकी खुशियों में अपनी खुशियां ढूंढ़ता है, फिर भी उस इंसान को झूठे इल्जामों के तले दबाकर, उसकी रूह को मार दिया जाता है, ऐसा क्यों? जब किसी इंसान को कोई इंसान अच्छा लगता है, वो उसके लिए कुछ करना चाहता है, कुछ करता है, फिर भी उसको मतलबी बता दिया जाता है, ऐसा क्यों? जब कोई इंसान किसी पर खुद से ज्यादा विश्वास करता है, फिर भी उसके साथ घात किया जाता है, और झूठ पर विश्वास किया जाता है, आखिर ऐसा क्यों? ************************* --Vimla choudhary 2/12/2020 ©vks Siyag "ऐसा क्यों" ********* ऐसा सवाल हमेशा परेशान करता है, ऐसा सवाल रोज जहन की दिवारों से टकराता है, फिर एक भयंकर तूफान उठ जाता है, पर, वो सवा