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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा संतो की वाणी सुनो , सब जन करके ध्यान । हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।। जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान । बरसाओ इन पर कृपा , म #कविता

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White दोहा

संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान ।
हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।।

जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान ।
बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।।

प्रकृति मोह सबमें रहे , चाहूँ मैं वरदान ।
तेरी माया के बिना , यह जग है अज्ञान ।।

अब तो नंगे नाँच से , जगत रहा पहचान ।
अंग-अंग रहता खुला , कहता ऊँची शान ।।

 बदन सभी ले ढाँक हम , वसन मिलें दो चार ।
वह भी फैशन में छिने , अब सब बे अधिकार ।।

मातु-पिता अब दूर हैं , सास-ससुर अब पास ।
भैय्या-भाभी कुछ नहीं , साला-साली खास ।।

जीवन के हर मोड़ पर , दिया तुम्हीं ने घात ।
अब आकर तुम कर रहे , मुझसे प्यारी बात ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा

संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान ।
हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।।

जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान ।
बरसाओ इन पर कृपा , म

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान । हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।। जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान । बरसाओ इन पर कृपा , मानव #कविता

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White दोहा :-

संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान ।
हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।।
जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान ।
बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।।
प्रकृति मोह सबमें रहे , चाहूँ मैं वरदान ।
तेरी माया के बिना , यह जग है अज्ञान ।।
अब तो नंगे नाँच से , जगत रहा पहचान ।
अंग-अंग रखकर खुला , कहता ऊँची शान ।।
 बदन सभी ले ढाँक हम , वसन मिलें दो चार ।
वह भी फैशन में छिने , हमसे सब अधिकार ।।
मातु-पिता अब दूर हैं , सास-ससुर अब पास ।
भैय्या-भाभी कुछ नहीं , साला-साली आस ।।
जीवन के हर मोड़ पर , दिया तुम्हीं ने घात ।
अब आकर तुम कर रहे , मुझसे प्यारी बात ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान ।

हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।।


जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान ।

बरसाओ इन पर कृपा , मानव

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा जब भी तुम आहार लो , ले लो राधा नाम । रोम-रोम फिर धन्य हो , पाकर राधेश्याम ।। कभी रसोई में नहीं ,करना गलत विचार । भोजन दूषित बन पके ,  #कविता

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दोहा

जब भी तुम आहार लो , ले लो राधा नाम ।
रोम-रोम फिर धन्य हो , पाकर राधेश्याम ।।

कभी रसोई में नहीं ,करना गलत विचार ।
भोजन दूषित बन पके ,  उपजे हृदय विकार ।।

प्रभु का चिंतन जो करे , सुखी रखे परिवार ।
आपस में सदभाव हो ,  सदा बढ़े मनुहार ।।

प्रभु चिंतन में व्याधि जो , बनते सदा कपूत ।
त्याग उसे आगे बढ़े , वह है रावण दूत ।।

प्रभु की महिमा देखिए , हर जीव विद्यमान् ।
मानव की मति है मरी , चखता उसे जुबान ।।

पारण करना छोडिए , विषमय मान पदार्थ ।
उससे बस उत्पन्न हो , मन में अनुचित अर्थ ।।

२९/०२/२०२४     -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा

जब भी तुम आहार लो , ले लो राधा नाम ।
रोम-रोम फिर धन्य हो , पाकर राधेश्याम ।।

कभी रसोई में नहीं ,करना गलत विचार ।
भोजन दूषित बन पके , 
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