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Bhupendra Rawat
White रोजगार शब्द मे 'बे' उपसर्ग जोड़कर बनाया गया एक नया शब्द, बेरोजगार शुरुआत मे 'बे' अक्षर के मायने थे, कुछ अलग जैसे कि दिलासा, सहानूभूति इत्यादि परंतु, गुजरते वक़्त के साथ बदलते गए मायने उपसर्ग 'बे' के इस अदने से अक्षर ने अपने अंदर समाहित किए अनगिनत अर्थ 'निठल्ला', आवारा, नकारा, कामचोर इत्यादि बन गयी विशेषता उपसर्ग 'बे' की इसी विशेषता ने आशाओं से भरे जीवन मे भर दी निराशाएं ©Bhupendra Rawat #sad_dp रोजगार शब्द मे 'बे' उपसर्ग जोड़कर बनाया गया एक नया शब्द, बेरोजगार शुरुआत मे 'बे' अक्षर के मायने थे, कुछ अलग जैसे कि दिलासा, सहानूभू
#sad_dp रोजगार शब्द मे 'बे' उपसर्ग जोड़कर बनाया गया एक नया शब्द, बेरोजगार शुरुआत मे 'बे' अक्षर के मायने थे, कुछ अलग जैसे कि दिलासा, सहानूभू
read moreMayuri Bhosale
❣️.......शायरी दिल की कहानी .......❣️ हर दिल मे छूपी है एक कहानी💌 पहले हमे लगती है ओ अपनी सहेली 👭 पर दिल के गहराई के समंदर तक जाकर 🌊🌊 देख लो ओ बन जाती है एक नई पहेली.....!!❓ ©Mayuri Bhosale दिल की कहानी की
दिल की कहानी की
read moreअनिल कसेर "उजाला"
White तबियत तन की कहूँ या मन की, ये दुनिया है यार मेरे भगवन की। कभी तेज़ तो कभी मध्यम होता, ये बात है 'उजाला' धड़कन की। ©अनिल कसेर "उजाला" धड़कन की
धड़कन की
read moreSupriya Jha
विधाता ने बेेटी विदाई की कैसी विधि बनाई है। पिता के लाड में पली बेटी की आज विदाई है।। जिस घर में हर पल की यादें,बचपन की लड़ाई है। आज उससे ही मुझको करनी पड़ रही जुदाई है।। बिछड़ने की किसने ये रस्म बनाई है। मां के आंचल में पली बेटी की आज विदाई है।। पिता भाई ने छुप छुप कर आंसू बहायें है। मां बहने आंखो में आंसू लिए विदाई की दस्तूर निभाई है।। कितनी निष्ठुरता से पिता ने कन्यादान निभाया है। मुझको किसी के हाथ सौंप कर जिम्मेदारी से मुक्ति पाया है।। आखिरी वचन कहकर मां ने बड़ी बात सिखाई है। पिता के पगड़ी की लाज तू रखना इसमें ही कुल की भलाई है।। विधाता ने बेटी विदाई की कैसी विधि बनाई है। बचपन से ही क्युं बेटियां पराई धन कहलाई है।। ©Supriya Jha बेटी की विदाई
बेटी की विदाई
read moreनवनीत ठाकुर
White "जिंदगी भर की जद्दोजहद, बस एक सफर की बात है, अंत में सबके हिस्से में, एक ही कफ़न की बात है। राहों में कांटे चुनते रहे, फूलों की आस में, अंत में तो सबकी मंज़िल, वही श्मशान है। मिट्टी से उठे हैं, मिट्टी में मिल जाएंगे, जो सोने की ललक में थे, वो भी सो जाएंगे। इंसान था, खुदा बनने की ख्वाहिश रही, हसरतें थीं बुलंद, पर ज्यादा देर ठहर न सकी। जिस जिस्म को संजोया, वो भी खाक हो जाएगी, जिस दौलत पे फख्र था, वो यहीं रह जाएगी। खाली हाथ आए थे, खाली हाथ जाएंगे, ये जीवन का सफर, यूं ही खत्म हो जाएगा। रंग-बिरंगी दुनियादारी, वो शोहरत, वो शान, अंत में सब लुट जाएगा, रह जाएगा बस श्मशान। धुंआ बनके उड़ जाएगा सब, हवाओं में कहीं, वक्त की वो कड़वी सच्चाई, बस राख कहलाई जाएगी। छोड़ जाएंगे यहां अपने निशाँ जो हमने बनाए, लेकिन उन्हीं लहरों में वो भी मिट जाएंगे। अभी वक्त है संभल जाओ, ये दौलत-ओ-शौहरत झूठ है, अंत में बस प्यार का इक दिया, राह रौशन कर जाएगा।" ©नवनीत ठाकुर #कफ़न की बात
#कफ़न की बात
read morePraveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी दखल अब महँगाई का सरेआम सता रहा है सिकुड़ती कमाई आमजन की सूनापन बर्तनों और कपो में छा रहा है छूट गयी मेजबानी लोगो की ,चाय की राशन दूध गैस पर अधिकार आमजन खोता जा रहा है घर घर की दुर्दशा करके मंत्र बटोगे तो कटोगे का दिया जा रहा है डीजल पेट्रोल जाने किसके हवाले है इसके मद से किसका विकास किया जा रहा है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #chai छूट गयी लोगो की मेजबानी चाय की
#chai छूट गयी लोगो की मेजबानी चाय की
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