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Praveen Saini
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी
read moreMohit Kumar Goyal
जिन्ह कें रही भावना जैसी प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी jai_shree_ram Ayodhya
read moreAmit Gupta
इनमे सपने पले बढे आंखे ऐसी नहीं रही ज़िन्दगी अब जो भी है पहले जैसी नहीं रही #पहले #जैसी #नहीं #रही
Shravan Goud
दिल में दोस्ती का भाव हों तो हर कोई दोस्त हैं। भावना जैसी हो वैसा ही स्वभाव होता है।
भावना जैसी हो वैसा ही स्वभाव होता है।
read moreMehfil-e-Mohabbat
यार भी राह की दीवार समझते हैं मुझे मैं समझता था मिरे यार समझते हैं मुझे नेक लोगों में मुझें नेक गिना जाता है और गुनाहगार,गुनाहगार समझते हैं मुझे मैं बदलते हुए हालात में ढल जाता हूँ देखने वाले अदाकार समझते हैं मुझे ©Mehfil-e-Mohabbat ✍️♥️ शाहिद जकी ♥️✍️
✍️♥️ शाहिद जकी ♥️✍️ #शायरी
read moreKAKE KA RADIO
पहले अपनी बातों से उसे खूब हँसाया तुमने, फिर उसके हर उभार का खूब फायदा उठाया तुमने। और आखिर में उसे ये बताया तुमने- कि तुम अब पहले जैसी नहीं रही । वो अब पहले जैसी नहीं रही
वो अब पहले जैसी नहीं रही
read morehappydil
जांकी रही भावना जैसी , प्रभू मूरत देखी तिन तैसी । राम सियाराम सियाराम जय जय राम 🚩🚩🙏🙏 ©happydil #ramayan जांकी रही भावना जैसी , प्रभू मूरत देखी तिन तैसी । राम सियाराम सियाराम जय जय राम 🚩🚩🙏
#ramayan जांकी रही भावना जैसी , प्रभू मूरत देखी तिन तैसी । राम सियाराम सियाराम जय जय राम 🚩🚩🙏
read moreMuktak kavya manch
बिखरे मोतियों जैसी बिखर रही हैं जिन्दगी। क्युं रूठी दुल्हन जैसी इतर रही हैं जिन्दगी।। हम तो बैठे हैं कब से इसे मनाने कोशिश में। रूठी दुल्हन का घुंघट उठाने की कोशिश में।। न जाने क्युं फिर भी अकड़ रह हैं जिन्दगी। रूठी............................................।।१।। आज फिर घुंघट उठाकर उसे मनाने की कोशिश की। बचपन के किस्से सुनाकर उसे हंसाने की कोशिश की।। मगर फिर भी देखो न ये जिद पकड़ रही हैं, साथ हुं पर तन्हा ही सफर कर रह ही हैं जिन्दगी। रूठी..................................................।।२।। जो बारिश की बुंदों में जमकर खुब नहाती थी। आंगन के पानी में छप- छप गीत सुनाती थी।। ऐसा लगता था जैसे स्वर्ग उतर आया हो धरती पर, आज वही गांव छोड़ शहरों में गुजर रही हैं जिन्दगी। देखो न यार रूठी दुल्हन जैसी इतर रही हैं जिन्दगी।।३।। कुछ वक्त ही तो मांगा था मैंने इसकी बिन मर्जी से। मैं अपनों से दूर हुआ था खुद अपनी ही मर्जी से।। कैसे करता गुजर बसर मैं इक छोटे से गांव में। मेरे सपने पुरे कैसे होते इस पीपल की छांव में।। पता नहीं इस शहर से इतना क्युं डर रही हैं जीन्दगी। देखो न यार रूठी दुल्हन जैसी इतर रही हैं जिन्दगी।। ©Purushottam Sharma रूठी दुल्हन जैसी इतर रही हैं जिन्दगी
रूठी दुल्हन जैसी इतर रही हैं जिन्दगी #कविता
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