Find the Latest Status about शुक्राचार्य ऋषि from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, शुक्राचार्य ऋषि.
Rahul Shastri worldcitizens2121
Key to Happiness "ज्योतिष" Sep 26,2019 "ॐ" गुरु शुक्राचार्य "भोलेनाथ" "के साथ" "जीवनभर/मृत्युके बाद" भी "अमर" "प्रेम Love Dream Imagination Creativity Authority Philenthophy Prosperity Royaless Soul love Physical Love Progess Infinity " सम्बन्ध में बैठें हैं। #Happiness "Picnic" "शुक्राचार्य" + "भोलेनाथ"
kvitt_kalash
कवित्त कलश तुम बुलाओ और मैं न आऊ ऐसी कोई बात नहीं , बस कुछ वक्त की देर हुई , और कोई बात नहीं । तुम चले गए यह गैरों से सुन कर दिल दुखता था , तो सोचा मैं मिल लूं आकर , और कोई बात नही । तुम बुलाओ और मैं न आऊ ऐसी कोई बात नहीं।। भावपूर्ण श्रद्धाजंलि Rip ऋषि कपूर
Rishi
तेरी नज़र का जादू चल के रहा.. मेरा दिल फ़िर तेरा हो के रहा... ©Rishi ऋषि की कलम से... #ramleela #Rishi #ऋषि
कोमल 'वाणी'
अधूरी ख़्वाहिश का मुक्कमल सफ़र। अमेजॉन पर उपलब्ध हैं ऋषि अग्रवाल
chanu meena
पतझड़, सावन, बसंत, बहार.. एक बरस के मौसम चार.. पाँचवा मौसम प्यार का.. तो फिर ये छठा कहाँ से आ गया.. RIP💐💐😥😥 #chanu meena✍ ऋषि कपूर
Devendra kumar
〰️〰️➖➖‼️➖➖〰️〰️ *‼ऋषि चिंतन‼* 〰️〰️➖➖‼️➖➖〰️〰️ ➖➖➖〰️🪴〰️➖➖➖ *☝️--//पहले दो, पीछे पाओ//--* ➖➖➖〰️🪴〰️➖➖➖ 👉यह प्रश्न विचारणीय है कि महापुरुष अपने पास आने वालों से सदैव याचना ही क्यों करता है ? *मनन के बाद मेरी निश्चित धारणा हो गई कि "त्याग" से बढ़कर "प्रत्यक्ष" और तुरंत फलदायी और कोई धर्म नहीं है ।* त्याग की कसौटी आदमी के खोटे-खरे रूप को दुनियाँ के सामने उपस्थित करती है । *मन में जमे हुए कुसंस्कारों और विकारों के बोझ को हल्का करने के लिए "त्याग" से बढ़कर अन्य साधन हो नहीं सकता ।* 👉 आप दुनियाँ से कुछ प्राप्त करना चाहते हैं, विद्या, बुद्धि संपादित करना चाहते हैं, तो *"त्याग" कीजिए ।* गाँठ में से कुछ खोलिए । ये चीजें बड़ी महँगी हैं । कोई नियामत लूट के माल की तरह मुफ्त नहीं मिलती । *दीजिए, आपके पास पैसा, रोटी, विद्या, श्रद्धा, सदाचार, भक्ति, प्रेम, समय, शरीर जो कुछ हो, मुक्त हस्त होकर दुनियाँ को दीजिए, बदले में आपको बहुत मिलेगा ।* 👉 गौतमबुद्ध ने *राजसिंहासन का त्याग किया,* गांधी ने *अपनी बैरिस्टरी छोड़ी,* उन्होंने जो छोड़ा था, उससे अधिक पाया । विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर अपनी एक कविता में कहते हैं - *"उसने हाथ पसारकर मुझसे कुछ माँगा । मैंने अपनी झोली में से अन्न का एक छोटा सा दाना उसे दे दिया । शाम को मैंने देखा कि झोली में उतना ही छोटा एक सोने का दाना मौजूद था । मैं फुट-फूटकर रोया कि क्यों न मैंने अपना सर्वस्व दे डाला, जिससे मैं भिखारी से राजा बन जाता ।* 〰️〰️〰️➖🍃➖〰️〰️〰️ *अखण्ड ज्योति,मार्च १९४० पृष्ठ ९* *🍃पं.श्रीराम शर्मा आचार्य🍃* 〰️〰️〰️➖🍃➖〰️〰️〰️ ©Devendra kumar ऋषि चिंतन