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Bharat Bhushan pathak
कवि आदित्य बजरंगी
Sudha Tripathi
White आल्हा छंद मुक्तक रामायण प्रसंग -जामवंत का हनुमान जी को आत्मबोध करना जामवंत कहते बजरंगी, चुप बन बैठे क्यों पाषाण। भूले हो क्यों अपनी क्षमता, किसमें है तेरा कल्याण।। न हो सके जो तुमसे बोलो, कठिन कौन सा ऐसा काम। नहीं जगत में तुमसा कोई,दूजा स्वीकारो हनुमान।। दीर्घकाय पर्वत से होकर,लिए शक्ति अपनी पहचान। चुका सके ऋण अनुदानों का, जीवन कर अपना बलिदान।। जो कुछ भी कर पाए उसका , नहीं कभी मन में हो दम्भ । सिंहनाद करके फौलादी,ले संकल्प किये प्रस्थान।। *सुधा त्रिपाठी* ©Sudha Tripathi #ramnavmi आल्हा छंद मुक्तक रामायण प्रसंग -जामवंत का हनुमान जी को आत्मबोध करना जामवंत कहते बजरंगी, चुप बन बैठे क्यों पाषाण। भूले हो क्य
Purohit Nishant
Shivani seth
Mili Saha
// मैरी कॉम // स्वयं की प्रतिभा और हुनर के दम पर इतिहास रचाया, भारत ही नहीं संपूर्ण नारी जाति को गौरवान्वित किया, मुफ़लिस भी रोक ना पाई जिसके बढ़ते हुए कदमों को, मैरी कॉम वो नाम, जिसने खुद अपना आसमां बनाया। आर्थिक रूप से कमज़ोर गरीब कृषक का था परिवार, जन्मी जहांँ ऐसी प्रतिभा, जिसे जाने आज पूरा संसार, किसी प्रकार होती थी गुजर-बसर खेतों में करके काम, कदम-कदम पे कितनी चुनौतियांँ फिर भी न मानी हार। पांँच भाई बहनों में सबसे बड़ी सभी का ख़्याल रखती, पढ़ाई के साथ खेतों में माता पिता का हाथ भी बंटाती, माता थी मांगते अक्हम कोम, पिता मांगते तोंपा कोम, जिनकी बेटी मांगते चुंगनेजंग मैरी कॉम बड़ी निडर थी। शिक्षा पर आर्थिक स्थिति को कभी होने न दिया हावी बचपन से ही खेल-कूद में रूचि, किरदार बड़ी मेधावी, ख़्वाब एथलीट बनने का फुटबॉल बखूबी खेला करती, दृढ़ विश्वास से ढूंँढ निकाली सुनहरी किस्मत की चाबी। मणिपुर में जन्मी बॉक्सिंग चैंपियन की अजब कहानी, एशियन गेम्स गोल्ड मेडलिस्ट का प्रभाव हुआ सुनामी, जिसने बॉक्सिंग प्रतियोगिताओं भाग कभी लिया नहीं, उसने बॉक्सिंग क्षेत्र में, अपना कैरियर बनाने की ठानी। ( पूरी कविता अनुशीर्षक में ) ©Mili Saha मैरी कॉम सामने खड़ी थी कई चुनौतियांँ माता-पिता नहीं तैयार, बॉक्सिंग पुरुषों का खेल महिला को कैसे करे स्वीकार, ऐसे में कैरियर बनाना था किसी
खामोशी और दस्तक
हर घर तिरंगाहर घर तिरंगा चहूं ओर तिरंगा क्या केवल एक आवाज है? ना ये युद्ध के पहले ही विजय का शंखनाद है। कुछ ऐसा ही सोचा होगा हमारे देश के वीर सपूतों ने यही तिरंगा आंखों के सामने आता होगा जब-जब हमारे निहत्थे भाइयों और बहनों की हिम्मत टूटती होगी हां यही तिरंगा देता होगा हौसला फौलादी क्रांतिकारियों को, इसी तिरंगे की खातिर मांए हंसते-हंसते भेजती होंगी अपने जिगर के टुकड़ों को ये जानते हुए भी कि एक बार घर से निकलने के बाद उनके बच्चों का वापस आना निश्चित नहीं है, खुशी खुशी निकली होंगी बहनें ये जानकर भी की उनकी अस्मत की बाहर कोई कीमत नहीं है।लेता होगा जब भी कोई देशभक्त अंतिम सांस, होती होगी अंतिम इच्छा वो लहराए तिरंगा चख ले मातृभूमि स्वतंत्रता का स्वाद । कुछ ऐसा ही सोचते होंगे हमारे देश के वीर जवान जब देखते हैं वो तिरंगा करते हैं मां भारती को प्रणाम। होती होगी उनकी भी ख्वाहिश हर बार, छू ले तिरंगा धरती,जल और आकाश। अकेले नहीं हैं वो किसी युद्ध में, नहीं हारनी उन्हें हिम्मत,पूरा देश खड़ा है जब वो देंगे एक आवाज।होगा हर जवान की आंखों में अब भी यही सपना हर ओर दिखाई दे तिरंगा चाहे वतन हो गैर या अपना। क्या कुछ ऐसा ही हम नहीं सोच सकते? क्या एक ख्वाब हम नहीं देख सकते? ख्वाब एक हो जाने का धर्म,जात,निज स्वार्थ से ऊपर उठ जाने का। चारों दिशाओं से एक स्वर में राष्ट्रगीत गाने का ,हम भारतीय हैं और एक है क्या ये सही वक्त नहीं है विश्व को बताने का। आंख उठाकर देख भी लो गर तुम अब मेरी माटी को हर घर इसका है रक्षक चाहे कोई धर्म या जाति हो शहीदों का, जवानों का समर्पण, अनकहे दिवानों का है हुंकार है ये विजय शंखनाद है ये सम्मान तिरंगे का ©खामोशी और दस्तक हर घर तिरंगा चहूं ओर तिरंगा क्या केवल एक आवाज है? ना ये युद्ध के पहले ही विजय का शंखनाद है।