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Gunjan Agarwal
#गीत मैं नदिया की धारा चंचल, तुम पर्वत जैसे दृढ़ हो । चलते - चलते अगर राह में थक कर जब रुक जाती हूं । वक्ष तुम्हारे सर रख अपना राहत थोड़ी पाती हूं । और सदा मैं चाहूँ तुमसे कभी न ऋण ये उऋण हो । मैं नदिया की धारा चंचल............ सौ सौ चोटें मिली राह में चलते - चलते अक्सर ही । प्रेम पियासी एक नदी हूं, पी बैठी सब हंसकर ही । व्यवधानों में शामिल कंकड़ पत्थर, रोड़ा या कण हो । मैं नदिया की धारा चंचल............ पीड़ाओं पर मरहम मलकर ज़ख्म मेरे सहलाते हो । आलिंगन में भरकर अपने नेह सतत बरसाते हो । व्याकुल अनहद हो जाते क्यों, अगर चेतना से जड़ हो । मैं नदिया की धारा चंचल........ ©Gunjan Agarwal #गीत #Prem #Love #love❤
Gaurav Thakur
मंज़िल उन्हीं को मिलती है, जिनके हौसलों में जान होती है।। और बंद ठेके से दारू उन्हीं को मिलती है, जिनकी ठेकों में पहचान होती हैं।। लेखनी by --गौरव सिंह ठाकुर
ठाकुर
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