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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मुक्तक  :- चंचल मन मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता । फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता । शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुं #कविता

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मुक्तक  :- 

मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता ।
फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता ।
शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुंदर है -
यूँ मानों अब देख उसे मुझको मिलती शीतलता ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुक्तक  :- चंचल मन


मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता ।

फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता ।

शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुं

Rimpi chaube

#हमेशा_प्रिय ❤️🥰 मैं हमेशा लिखती रहूंगी प्रिय... कभी तुम्हारी यादों में,कभी तुम्हारी बातों पे कभी शरारत भरी अदा,कभी होंठो की मुस्कान पे मैं #Poetry

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Poet Kuldeep Singh Ruhela

#darkness #कोई चेहरे पर फिल्टर लगा के खूबसूरत बन जाती हैं नई नई विडियो बनाके वो फिर सबको रिझाती है #शायरी

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Bhanu Priya

कुछ छांव सा कुछ धूप सा कुछ चंचल सा कुछ शांत सा #Poetry

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Mahadev Son

ये चंचल मन ले चल तू आज मुझे उस बस्ती में जहाँ जगदम्बे माँ का डेरा है आज दिल बेताब मेरा मिलने को तड़पता है बस ले चल तू ये चंचल मन जहाँ मेरी म #Bhakti

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ये चंचल मन ले चल तू आज मुझे
उस बस्ती में जहाँ जगदम्बे माँ का डेरा है

आज दिल बेताब मेरा मिलने को तड़पता है
बस ले चल तू ये चंचल मन जहाँ मेरी माँ का

डेरा वैसे तो रोज भटकाता है आज मेरा भी
ज़ी करता तुझे भटकाने को बस अब ले चल

सपनों में सही बस तू ले चल अब 
उस बस्ती में जहाँ माँ का डेरा है

©Mahadev Son ये चंचल मन ले चल तू आज मुझे
उस बस्ती में जहाँ जगदम्बे माँ का डेरा है

आज दिल बेताब मेरा मिलने को तड़पता है
बस ले चल तू ये चंचल मन जहाँ मेरी म

Mahadev Son

आत्मा थी अज़र है अमर रहेगी जन्म मन का, मरण तन का हुआ सृजन हुआ जिसका नष्ट होना तय उसका सफर यही तक का यही तेरी ही भूल थी त्याग देगा भर जायेग #Life

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आत्मा थी अज़र है अमर रहेगी
जन्म "मन" का, मरण " तन" का हुआ

सृजन हुआ जिसका नष्ट होना तय उसका 
सफर यही तक का यही तेरी ही भूल थी

त्याग देगा भर जायेगा "मन", इस तन से 
"मन" चंचल पर अज़र बस निर्भर कर्मों पर 

कर्म होंगें जैसे "मन" जन्म का "तन" पायेगा वैसे 
जैसे जेब में पैसे होते वैसे वस्त्र खरीदता तू 

हिसाब किताब सब यहाँ होता पैसों से 
वैसे मन का होता वहाँ सब कर्मों से 

पायेगा क्या भोगेगा क्या फिर से चंचल
"मन" को भी न मालूम वर्ना छोड़ता न

कभी इस "तन" को ...!

©Mahadev Son आत्मा थी अज़र है अमर रहेगी
जन्म मन का, मरण तन का हुआ

सृजन हुआ जिसका नष्ट होना तय उसका 
सफर यही तक का यही तेरी ही भूल थी

त्याग देगा भर जायेग

Mahadev Son

आत्मा थी अज़र है अमर रहेगी जन्म मन का, मरण तन का हुआ सृजन हुआ जिसका नष्ट होना भी तय उसका सफर यही तक का था ये तेरी भूल थी त्याग देगा तन भर #Life

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आत्मा थी अज़र है अमर रहेगी
जन्म मन का, मरण तन का हुआ

सृजन हुआ जिसका नष्ट होना भी तय उसका 
सफर यही तक का था ये तेरी भूल थी

त्याग देगा तन भर जायेगा मन, इस तन से 
मन चंचल पर अज़र है बस निर्भर है कर्मों पर 

कर्म होंगें जैसे मन जन्म भी तन का पायेगा वैसे 
जैसे जेब में पैसे होते वैसे वस्त्र खरीदता तू 

हिसाब किताब यहाँ पैसों से होता जैसे 
वहाँ कर्मों से गणित मन का होता 

पायेगा क्या भोगेगा क्या फिर से
मन को भी न मालूम होता.....

वर्ना छोड़ता न कभी इस तेरे तन को...

©Mahadev Son आत्मा थी अज़र है अमर रहेगी
जन्म मन का, मरण तन का हुआ

सृजन हुआ जिसका नष्ट होना भी तय उसका 
सफर यही तक का था ये तेरी भूल थी

त्याग देगा तन भर

Harshvardhan असरार जौनपुरी

#Emotional डेमोक्रेसी डेमोक्रेसी - डेमोक्रेसी डेमोक्रेसी क्या बताएं डेमोक्रेसी देख रहे हैं डेमोक्रेसी फर्जी नारों की डेमोक्रेसी जुमल #कविता #_कविता_असरार_की_ #_असरार_जौनपुरी_

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बादल सिंह 'कलमगार'

चंचल चकोर चाँदनी.. #badalsinghkalamgar Poetry Love #Hindi pramodini mohapatra Suraj Maurya NEHA SHARMA Aradhana Mishra Jugal Kisओर #कविता

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- चंचल चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार । दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।। #कविता

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दोहा :- चंचल

चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार ।
दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।।
च़चल मन की वो खुशी , देख सके क्या आप ।
मन ही मन खिलता रहा , सुनकर ये पदचाप ।।
चंचल मन ने बाँध ली , आज प्रेम की डोर ।
कैसे निकलेंगे सजन , नैना है चितचोर ।।
चंचल दिखती है पवन ,  छेड़े मन के तार ।
आने वाले हैं सजन , लायी खत इस बार ।।
चंचल मन वैरी हुआ , करके उनसे प्रीति ।
सुधि भी वह लेता नहीं , निभा रही मैं रीति ।।

२७/०२/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- चंचल


चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार ।

दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।।
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