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Praveen Jain "पल्लव"
White ढहते गये अवसरवादिता के पुल जड़ो में नफरतो का बीज डाला है झूठ बेईमानी की इबादत लिखकर चिन्ह दूसरो के धर्म को मिटाना है मानवता का पक्ष राष्ट्रधर्म है ईमानदारी के मतदान से कियो घबराना है भटकाकर मुद्दों से जलील हरकते करना किया छवि में दाग नही लगाता है बिधायक सांसद भेड़ो जैसे बना दिये कद विकास का गायब है चापलूसी और अंधभक्त की फौज खड़ी कर झूठे गुणगान और विज्ञापन से उभरता असन्तोष हर कही है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #election_2024 कद विकास का गायब है #nojotohindi
#election_2024 कद विकास का गायब है #nojotohindi #कविता
read moreManish Raaj
माँ के आँचल में ------------------ फिर फूल सा महक़ जाने का मन करता है हिफ़ाज़त ख़ातिर, टूट कर बिखर जाने का मन करता है एक मुक़ाम पर आ कर पर्वत सा विशाल बन आज फिर से माँ के आँचल में सिमट जाने का मन करता है मनीष राज ©Manish Raaj #माँ के आँचल में
Praveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी पौह फटेगी अब,अंधकार भागेगा उदयाचल की और बढ़ गया सूरज अपनी किरणों से धरती को चूमेगा होगी सुबह जीवन सरपट भागेगा कलरव करते पक्षी आसमान में घोसलों से दाना चुनने भागेगा आधार जीवन का प्रकृति ही है हवा पानी सब इसके दायरे में है विकृतियां तो मानव ने पैदा की है लालच उसका नही जाता है रोगो के हवाले जिंदगी कर दी फिर वेक्सीन और दवा बनाता है खतरे में सबको करके झूठे विकास के गीत गाता है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #sunset_time आधार जीवन का प्रकृति ही है झूठे गीत विकास के गाता है #nojotohindi
#sunset_time आधार जीवन का प्रकृति ही है झूठे गीत विकास के गाता है #nojotohindi #कविता
read moreAnuj Ray
लुटा लुटा सा दिखाई देता है, आज हर कोई यहां, दिल के बाजार में। अब वो सादगी ना रही मोहब्बत में, ज़िन्दगी भर के लिए, किसी के प्यार में। ©Anuj Ray # दिल के बाजार में"
# दिल के बाजार में" #शायरी
read moreRekha Singh
White कभी-कभी जागने के लिए आंखें नहीं, दिमाग और विचारों को खोलने की जरूरत होती है अपने लिए भी दूसरों के लिए भी ©Rekha Singh #Hope विकास
Shashi Bhushan Mishra
यादों के चौबारे में, जाना मत अंगारे में, ख़्वाब कहाँ पूरे होते, टूटे नभ के तारे में, मछली फँसी बता कैसे, राज छुपा है चारे में, बिस्तर तकिया गद्दा भी, लगता प्यारा जाड़े में, मिल जाती मंज़िल यारों, प्रभु के एक इशारे में, होती है रहमत रब की, तरस खाय बेचारे में, रहा भटकता आजीवन, फ़र्क न कुछ बंजारे में, गुंजन दिल की आवाज़ें, दब गई ढोल नगारे में, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई ©Shashi Bhushan Mishra #यादों के चौबारे में#