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कवि दिनेश अगरिया
*रामायण के आज के एपिसोड का वर्णन* बालिकुमार सभा में जाकर प्रभु संदेश सुनाता है। अभिमानी रावण गरजा और जोर जोर चिल्लाता है।। बोला सबक सिखा वानर को, और हंसा देकर ताली। पाँव जमा कर अंगद बोला, वानर पुत्र हूँ मैं बाली।। बालि नाम को सुनकर के, रावण को याद है आया। बालि ने छह माह तलक तक, उसको बगल दबाया।। बोला अंगद है अभिमानी, क्यों विनाश को बढ़ता है। क्षमा मांग ले मूर्ख प्रभु से, छोड़ कठिन ये दृढ़ता है।। बहुत उदार प्रभु का ह्रदय, कृपा तू उनकी पायेगा। लौटा दे माता को नही तो, बिना काल मर जाएगा।। सुनकर अंगद वाणी को, लंकेश लगा है तपने। तम में बोला वानर तू क्यों, आया है मरने।। जय श्री राम का घोष किया, अंगद ने पांव जमाया। असुर सभा का योद्धा कोई, पाँव डिगा ना पाया।। एक एक कर आये योद्धा, पड़ी गई मुँह की खानी। अंत में अंगद पांव उठाने, उठता खुद अभिमानी।। रावण झुका है चरणों में, अंगद ने पाँव हटाया। प्रभु शरण में जाने का, फिर से पाठ पढ़ाया।। अहंकार में चूर था रावण या परम ब्रह्म का ज्ञानी। प्रभुकमलों से तरने की क्या, खुद ही रची कहानी।। द्वारा रामभक्त दिनेश अगरिया #रामायण का आज का एपिसोड
Kunal Raj
अब आपकी तबियत आप जानिये, हमारी तो चूल्हे में जाये। बुरा वक़्त था जाने भी दो, चलिये अब इतिहास बनाये। kunal 'राज' कालचक्र #कालचक्र
satish gupta
मृत्यु पर जीत पा सके महारथी गंगा पुत्र भीष्म पितामह जैसे योद्धा को भी अधर्म के कारण ये हाल हुआ. आज यह हमे दिखा रहा है कि जीत केवल धर्म की सामने वाला कोइ भी हो. 🤔सतीश गुप्ता🤔 ©satish gupta 13 मइ 2020 महाभारत एपिसोड का असर 🤔🤔🙏🙏
Shiva love
सूरज अगर उदय हुआ है तो अस्त भी होगा, इसी तरह हर दु:ख के बाद सुख आता है ।। यही जीवन का कालचक्र है ।। यही जीवन का कालचक्र है ।।
Neophyte
कल हम थे खड़े उसी हाशिए पर जहां आज तुम खड़े मुस्करा रहे हो ये जो समय है बड़ा बेवफा है तुम आज इसी समय पर इतरा रहे हो पग डगमगाए थे मेरे भी पर चित्त स्वच्छ रखा था मैंने एक दिन ये समय सबका आया होगा खुद से बस यही कहा था मैंने अब तुम जो ऊर्जा से भरे हो खुद को पर्वत मान तन खड़े हो तुमको भी शीश झुकाना पड़ेगा विधी है इसे दोहराना पड़ेगा कालचक्र ही एक सत्य है सुदिशित परिवर्तन का व्रत है बदलना पड़ेगा,समझना-समझाना पड़ेगा जो न समझे तो पछताना पड़ेगा बस याद रहे,आज तुम काल के उसी पथ पर अड़े हो हम कल वही थे,जहा आज तुम खड़े हो ! कालचक्र !
Vishal Sharma
था मुझ से यही पूछता कालचक्र जो रहा घूमता सोये से अंतर्मन का तेरे इस जीवन का क्या यही लक्ष्य है क्या यही लक्ष्य है हुए व्यतीत इस क्षण में प्रश्न किया है लोचन ने निद्रा के आवलम्बन का सपनों के उन दर्शन का क्या यही लक्ष्य है क्या यही लक्ष्य है था समय क्यूँ मुझमें कटा मंदिर विद्या का बोल उठा मेरे प्रांगण पावन का विद्या के उस आंगन का क्या यही लक्ष्य है क्या यही लक्ष्य है आंख मूंद जो देखा स्वप्न कर गयी एक आशा प्रश्न मात पिता के पोषण का तुम पे खर्चे सब धन का क्या यही लक्ष्य है क्या यही लक्ष्य है सुन सब मैं अचंभित था होश क्यों न किंचित था कि मेरे सारे जीवन का एवं इस मानव तन का क्या यही लक्ष्य है क्या यही लक्ष्य है #कालचक्र