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ranjit Kumar rathour
बस आज तक हा आज ही तक कल कही औऱ किसी और संग सब खुश है मैं भी उसी में हु लेकिन ये सब कुछ इतना आसान है क्या सोच कर डर जाती हूँ लेकिन यही सच है सब ने मां लिया है और मुझे मानना ही है सदियो से होता आया है सबके साथ इसलिए मुझे भी जाना होगा कितना कुछ छूट जाएगा किसी को क्या मेरे दोस्त मेरे छोटे प्यारे अब कभी कभी आना होगा अतिथियों की तरह मुझ पर मेरा बस नही होगा किसी और कि अमानत कहलाऊंगी मैं बेटी हु न पराई हु न हा पराई हूँ ©ranjit Kumar rathour पराई हूँ न
लेखक ओझा
अब तक जीवन के सफ़र में भले सफरदार ना रहा लेकिन पीर पराई देखी जग में इसलिए अनुभव कमाल रहा।। ©लेखक ओझा #achievement पीर पराई देखी जग में
Dhanraj Gamare
Dhanraj Gamare
nsnsnsnsnsnsnsnsnsns ©Dhanraj Gamare *संगमेश्वरच्या सुपूत्राची* D.B.A.च्या ठाणे *जिल्हाध्यक्षापदी निवड* *मा.धनराज गमरे* यांचे *हार्दिक ! अभि
Dhanraj Gamare
cjcjffjfjfjfjfjpfjfjfkgkfgfkfkfk ©Dhanraj Gamare जागतिक महिला दिनाच्या निमित्ताने गझल काव्य संध्या व बुककट्टा टीम ( पिंपरी चिंचवड) यांच्या संयुक्त विद्यमाने आयोजित दुसरे कवी संमेलन २०२४
Dhanraj Gamare
kckfkfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjf ©Dhanraj Gamare जेवढ्या जागतिक संस्था बघत आहेत इच्छुकांचे फोन आले पाहिजेत कारण मला ७ वर्ष मी कारभार बघितला तुमचा फक्त थातुर मातुर काम करण्यात आले मी सर्व बघ
महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह
vjcgigfifififjfjfjgjgjfjgjgigkgkgkgkgkgkg ©महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह आंतरराष्ट्रीय सर्व मराठी भाषिक साहित्यिकांचे ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूहात ’ सहर्ष स्वागत आहे . ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह ’ या
महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह
Blue Moon nsjsjsjsjsjsjsnsnsnsjsjsjnsjsjsnsnsn ©महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह आंतरराष्ट्रीय सर्व मराठी भाषिक साहित्यिकांचे ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूहात ’ सहर्ष स्वागत आहे . ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह ’ या
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- ज़र जमीं की जब वसीयत हो गई । टेढ़ी उन बेटो की नीयत हो गई ।। दुरुस्त वालिद की तबीयत हो गई । जान को उनकी मुसीबत हो गई ।। जिस तरह औलाद खिदमत कर रही । देखकर ये आज हैरत हो गई ।। चाहते तो एक बेटा हम भी पर । पूर्ण बेटी से वो हसरत हो गई ।। जिस तरह बेचैन हूँ उनके लिए । लग रहा मुझे भी मुहब्बत हो गई ।। मैं रहा बेताब जिस औलाद को । क्या कहूँ वो ही मशक्कत हो गई ।। प्यार की मैं क्या सुनाऊँ दास्ताँ । नाम से उसके ही दहशत हो गई ।। झूठ सच का ये हुआ है फैसला । दुश्मनों के घर अदालत हो गई ।। कल तलक बेटी प्रखर के घर में थी । अब पराई यार दौलत हो गई ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- ज़र जमीं की जब वसीयत हो गई । टेढ़ी उन बेटो की नीयत हो गई ।। दुरुस्त वालिद की तबीयत हो गई । जान को उनकी मुसीबत हो गई ।। जिस तरह औलाद खिद
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल :- किसी की किसी से लड़ाई नही है । लबों पे किसी के दुहाई नही है ।। जाँ बीमार की फिर बचाई नही है । हकीमों ने बोला कमाई नही है ।। तड़पता रहा मर्ज़ से वो भी अपने । कहा सबने इसकी दवाई नही है ।। डुबा ही दिया कर्ज़ ने देखो उसको । गरीबों की अब रह नुमाई नही है ।। यही वो जगह है जहाँ पर खुदा ने । सज़ा आदमी को सुनाई नहीं है ।। दिखाओ हमें भी यहाँ शख्स कोई । हुई जिसकी अब तक रिहाई नही है ।। चले ही गये सब जहाँ से थे आये । कभी मौत अपनी बुलाई नही है ।। न देखूँ उसे क्यूँ नज़र भर बताओ । बसी जाँ है जिसमें पराई नही है ।। प्रखर ही सुनाये मुहब्बत के किस्से । मुहब्बत में उसके जुदाई नही है ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- किसी की किसी से लड़ाई नही है । लबों पे किसी के दुहाई नही है ।।