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ranjit Kumar rathour

पराई हूँ न #कविता

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लेखक ओझा

#achievement पीर पराई देखी जग में

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Dhanraj Gamare

*संगमेश्वरच्या सुपूत्राची* D.B.A.च्या ठाणे *जिल्हाध्यक्षापदी निवड* *मा.धनराज गमरे* यांचे *हार्दिक ! अभि #जीवनअनुभव

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Dhanraj Gamare

*संगमेश्वरच्या सुपूत्राची* D.B.A.च्या ठाणे *जिल्हाध्यक्षापदी निवड* *मा.धनराज गमरे* यांचे *हार्दिक ! अभि #जीवनअनुभव

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Dhanraj Gamare

जागतिक महिला दिनाच्या निमित्ताने गझल काव्य संध्या व बुककट्टा टीम ( पिंपरी चिंचवड) यांच्या संयुक्त विद्यमाने आयोजित दुसरे कवी संमेलन २०२४ #hunarbaaz

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Dhanraj Gamare

जेवढ्या जागतिक संस्था बघत आहेत इच्छुकांचे फोन आले पाहिजेत कारण मला ७ वर्ष मी कारभार बघितला तुमचा फक्त थातुर मातुर काम करण्यात आले मी सर्व बघ #मराठीसंस्कृति

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महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह

आंतरराष्ट्रीय सर्व मराठी भाषिक साहित्यिकांचे ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूहात ’ सहर्ष स्वागत आहे . ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह ’ या #शिक्षण

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महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह

आंतरराष्ट्रीय सर्व मराठी भाषिक साहित्यिकांचे ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूहात ’ सहर्ष स्वागत आहे . ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह ’ या #शिक्षण

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- ज़र जमीं की जब वसीयत हो गई । टेढ़ी उन बेटो की नीयत हो गई ।। दुरुस्त वालिद की तबीयत हो गई । जान को उनकी मुसीबत हो गई ।। जिस तरह औलाद खिद #शायरी

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ग़ज़ल :-
ज़र जमीं की जब वसीयत हो गई ।
टेढ़ी उन बेटो की नीयत हो गई ।।
दुरुस्त वालिद की तबीयत हो गई ।
जान को उनकी मुसीबत हो गई ।।
जिस तरह औलाद खिदमत कर रही ।
देखकर ये आज हैरत हो गई ।।
चाहते तो एक बेटा हम भी पर ।
पूर्ण बेटी से वो हसरत हो गई ।।
जिस तरह बेचैन हूँ उनके लिए ।
लग रहा मुझे भी मुहब्बत हो गई ।।
मैं रहा बेताब जिस औलाद को ।
क्या कहूँ वो ही मशक्कत हो गई ।।
प्यार की मैं क्या सुनाऊँ दास्ताँ ।
नाम से उसके ही दहशत हो गई ।।
झूठ सच का ये हुआ है फैसला ।
दुश्मनों के घर अदालत हो गई ।।
कल तलक बेटी प्रखर के घर में थी ।
अब पराई यार दौलत हो गई ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
ज़र जमीं की जब वसीयत हो गई ।
टेढ़ी उन बेटो की नीयत हो गई ।।
दुरुस्त वालिद की तबीयत हो गई ।
जान को उनकी मुसीबत हो गई ।।
जिस तरह औलाद खिद

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- किसी की किसी से लड़ाई नही है । लबों पे किसी के दुहाई नही है ।। #शायरी

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White ग़ज़ल :-
किसी की किसी से लड़ाई नही है ।
लबों पे किसी के दुहाई नही है ।।
जाँ बीमार की फिर बचाई नही है ।
हकीमों ने बोला कमाई नही है ।।
तड़पता रहा मर्ज़ से वो भी अपने ।
कहा सबने इसकी दवाई नही है ।।
डुबा ही दिया कर्ज़ ने देखो उसको ।
गरीबों की अब रह नुमाई नही है ।।
यही वो जगह है जहाँ पर खुदा ने ।
सज़ा आदमी को सुनाई नहीं है ।।
दिखाओ हमें भी यहाँ शख्स कोई ।
हुई जिसकी अब तक रिहाई नही है ।।
चले ही गये सब जहाँ से थे आये ।
कभी मौत अपनी बुलाई नही है ।।
न देखूँ उसे क्यूँ नज़र भर बताओ ।
बसी जाँ है जिसमें पराई नही है ।।
प्रखर ही सुनाये मुहब्बत के किस्से ।
मुहब्बत में उसके जुदाई नही है ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-


किसी की किसी से लड़ाई नही है ।

लबों पे किसी के दुहाई नही है ।।
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