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JALAJ KUMAR RATHOUR
तुम्हारी मांग की सिंदूर रेखा और मेरी भाग्य रेखा समांतर हैं।जो कभी एक दूसरे को नहीं काटेगी।अब शायद हम फिर कभी मिलें अनंत में किसी बिंदु पर। ...#जलज कुमार ©JALAJ KUMAR RATHOUR तुम्हारी मांग की सिंदूर रेखा और मेरी भाग्य रेखा शायद समांतर हैं।जो कभी एक दूसरे को नहीं काटेगी।अब शायद हम फिर कभी मिलें अनंत में किसी बिंदु
Shailendra Anand
रचना दिनांक १४,,,,,१०,,,२०२३ वार शनिवार समय ््छह बजे ्् शीर्षक ्््शीर्षक ्््््भावचित्र ्््् अंथेरी रात में रौशनी को निहारती हुए,, अपने हस्त की रेखाओ से अमावस्या का सूर्य गृहण का प्रहर और रात के मध्य काल में।। भाग्येश गोचर में साधक यजमान के भावों में स्थित योगिस्थ केन्द़ीत रेचक में साधना तपस्या खुद मंत्र शक्ति से सिद्धिदात्री दैवीय शक्तियों से युक्त नवरात्र पर्व पर कामाक्षी देवी भवानी गिरजा शंकर साकार लोक में भ़मण करते हुए जीवन का कमंयोग आंनद की लक्ष्मी कनकधारा स्तोत्र मंगलकारक रहैगा।। शनिवार सूर्य ग़ृहण सर्व पितृ पक्ष और शारदीय नवरात्र रविवासरे जगलक्ष्मि भाव में स्थित योगिस्थ होकर कूण्डलिनी जागृत कर मनोकामना पूर्ति हेतु मानस रंजन साधक साधना करे।। ्््््््् कवि शैलेंद्र आनंद १४अककटुम्बर२०२३ ©Shailendra Anand #dhoop छाया चित्र में आंखें डाल कर देख रही है भाग्य रेखा,, और कर्मयोग की अंधेरी रात और ज्ञान का प्रकाशोत्सव यजमान और गुरु साथक के बीच यथेष्ठ
Abhay Bhadouriya
🌸 हिमालय से कलकल करके बहती नदियाँ अबोध बालिकाएं हैं, जो छोड़कर आईं हैं पिता का घर और अपना बचपन शिव की हथेली पर बसा है उनका आंगन
AK__Alfaaz..
मै हूँ नागफनी, हाँ कहते सब मुझे यही हैं, तपती मरूभूमि जीवन स्थल मेरा, काँटों में सिमटा अस्तित्व मेरा, न प्रीत की सुंगध कोई, न गुलाब सी सुंदरता मेरी, न शीतल छाँव बची अब मुझमें, न मीठे फलों का स्वाद मेरे, अपनी जीह्वा से चखा किसी ने, चलो मेरी छोड़ो.., तुम अपनी कहो, मै..,! मै स्त्री हूँ, अच्छा..,! तुम भी स्त्री हो..? #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #नागफनी_के_आँसू.. मै हूँ नागफनी, हाँ कहते सब मुझे यही हैं, तपती मरूभूमि जीवन स्थल मेरा, काँटों में सिमटा अस्त
AK__Alfaaz..
अगहन का महिना, शुरू हो चला, आज, दिन के सारे काम निपटा के, त्रिपता, जा बैठी, दरीचे से झाँकती, गुलाबी सर्दी की, सुनहरी धूप मे, अपनी साँसों के, आसमानी ऊन के लच्छे लिए, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे.. #क्रोशिया अगहन का महिना, शुरू हो चला, आज, दिन के सारे काम निपटा के,
AK__Alfaaz..
जब नदियों ने, पर्वतों से बिछड़ कर, रेत के मैंदानों में, अज्ञात वास ले लिया, और.., बादलों ने, बरसना भूलकर, हवाओं से संधि कर ली, सागरों ने, अपनी हृदय की गहराइयों में, अनेकों प्रश्न गर्भित कर लिये, व.., अपनी अंक सीमाओं को समेट, प्रतीक्षारत हो, क्षितिज पर अपने मिलन को, चिर मौन धारण कर लिया, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #अश्रु_वीथिका जब नदियों ने, पर्वतों से बिछड़ कर, रेत के मैंदानों में, अज्ञात वास ले लिया,