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Jitendra Kumar Som
हनुमान जी का लंका में प्रवेश चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े हो गये। कपिश्रेष्ठ ने वहाँ सरल (चीड़), कनेर, खिले हुए खजूर, प्रियाल (चिरौंजी), मुचुलिन्द (जम्बीरी नीबू), कुटज, केतक (केवड़े), सुगन्धपूर्ण प्रियंगु (पिप्पली), नीप (कदम्ब या अशोक), छितवन, असन, कोविदार तथा खिले हुए करवीर भी देखे। फूलों के भार से लदे हुए तथा मुकुलित (अधखिले), बहुत से वृक्ष भी उन्हें दृष्टिगोचर हुए जिनकी डालियाँ झूम रही थीं और जिन पर नाना प्रकार के पक्षी कलरव कर रहे थे। हनुमान जी धीरे धीरे अद्भुत शोभा से सम्पन्न रावणपालित लंकापुरी के पास पहुँचे। उन्होंने देखा, लंका के चारों ओर कमलों से सुशोभित जलपूरित खाई खुदी हुई है। वह महापुरी सोने की चहारदीवारी से घिरी हुई हैं। श्वेत रंग की ऊँची ऊँची सड़कें उस पुरी को सब ओर से घेरे हुए थीं। सैकड़ों गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ ध्वजा-पताका फहराती हुई उस नगरी की शोभा बढ़ा रही हैं। उस पुरी के उत्तर द्वार पर पहुँच कर वानरवीर हुनमान जी चिन्ता में पड़ गये। लंकापुरी भयानक राक्षसों से उसी प्रकार भरी हुई थी जैसे कि पाताल की भोगवतीपुरी नागों से भरी रहती है। हाथों में शूल और पट्टिश लिये बड़ी बड़ी दाढ़ों वाले बहुत से शूरवीर घोर राक्षस लंकापुरी की रक्षा कर रहे थे। नगर की इस भारी सुरक्षा, उसके चारों ओर समुद्र की खाई और रावण जैसे भयंकर शत्रु को देखकर हनुमान जी विचार करने लगे कि यदि वानर वहाँ तक आ जायें तो भी वे व्यर्थ ही सिद्ध होंगे क्योंकि युद्ध द्वारा देवता भी लंका पर विजय नहीं पा सकते। रावणपालित इस दुर्गम और विषम (संकटपूर्ण) लंका में महाबाहु रामचन्द्र आ भी जायें तो क्या कर पायेंगे? राक्षसों पर साम, दान और भेद की नीति का प्रयोग असम्भव दृष्टिगत हो रहा है। यहाँ तो केवल चार वेगशाली वानरों अर्थात् बालिपुत्र अंगद, नील, मेरी और बुद्धिमान राजा सुग्रीव की ही पहुँच हो सकती है। अच्छा पहले यह तो पता लगाऊँ कि विदेहकुमारी सीता जीवित भी है या नहीं? जनककिशोरी का दर्शन करने के पश्चात् ही मैँ इस विषय में कोई विचार करूँगा। उन्होंने सोचा कि मैं इस रूप से राक्षसों की इस नगरी में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि बहुत से क्रूर और बलवान राक्षस इसकी रक्षा कर रहे हैं। जानकी की खोज करते समय मुझे स्वयं को इन महातेजस्वी, महापराक्रमी और बलवान राक्षसों से गुप्त रखना होगा। अतः मुझे रात्रि के समय ही नगर में प्रवेश करना चाहिये और सीता का अन्वेषण का यह समयोचित कार्य करने के लिये ऐसे रूप का आश्रय लेना चाहिये जो आँख से देखा न जा सके, मात्र कार्य से ही यह अनुमान हो कि कोई आया था। देवताओं और असुरों के लिये भी दुर्जय लंकापुरी को देखकर हनुमान जी बारम्बार लम्बी साँस खींचते हुये विचार करने लगे कि किस उपाय से काम लूँ जिसमें दुरात्मा राक्षसराज रावण की दृष्टि से ओझल रहकर मैं मिथिलेशनन्दिनी जनककिशोरी सीता का दर्शन प्राप्त कर सकूँ। अविवेकपूर्ण कार्य करनेवाले दूत के कारण बने बनाये काम भी बिगड़ जाते हैं। यदि राक्षसों ने मुझे देख लिया तो रावण का अनर्थ चाहने वाले श्री राम का यह कार्य सफल न हो सकेगा। अतः अपने कार्य की सिद्धि के लिये रात में अपने इसी रूप में छोटा सा शरीर धारण करके लंका में प्रवेश करूँगा और घरों में घुसकर जानकी जी की खोज करूँगा। ऐसा निश्चय करके वीर वानर हनुमान सूर्यास्त की प्रतीक्षा करने लगे। सूर्यास्त हो जाने पर रात के समय उन्होंने अपने शरीर को छोटा बना लिया और उछलकर उस रमणीय लंकापुरी में प्रवेश कर गये। ©Jitendra Kumar Som #hand हनुमान जी का लंका में प्रवेश
#hand हनुमान जी का लंका में प्रवेश #पौराणिककथा
read moreShashi Bhushan Mishra
शंका ने उजाड़ दी लंका, फ़क़त पीटकर डंका, कैसे बुझे प्यास हृदय की, करते केवल मन का, चिन्ताओं में घिरे हुए सब, ख़्याल करें इस तन का, अंदर का है रिक्त खज़ाना, जुगत लगाए धन का, सगुण रूप में सद्गुरु आये, ज्ञान दिया निर्गुण का, मिल जाए उपहार सदृश, सेवा, सत्संग, भजन का, अंतर्घट फैला उजियारा, आस पूर्ण 'गुंजन' का, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #शंका ने उजाड़ दी लंका#
आनन्द कुमार
आज फिर नल और नील बन कर कोरोना संक्रमण के खिलाफ एक दीवार बनाना है। बन जा फिर पवनपुत्र , आज भारतबर्ष को जीत दिलाना है। इस बार फिर दैत्य का संघार करना है। उठा ले गदा आज फिर प्रहार करना है। जितना घर में रहोगे उतना प्रचंड आघात होगा। बन जा तू अंजनी पुत्र ,फिर लंका में आग लगाना है। ---------आनन्द बन जा तू हनुमान ,फिर लंका में आग लगाना है।
बन जा तू हनुमान ,फिर लंका में आग लगाना है। #कविता
read moreआनन्द कुमार
चल रही है रामायण देश भर में बन जा तू हनुमान ,फिर लंका में आग लगाना है। मानवता पर फिर संकट आया है। दैत्य कोरोना ने बहुत उत्पात मचाया है। अच्छाई पर फिर बुराई हो रही है हावी। इंसान को फिर बचाना है। अस्त्र-शस्त्र कर लें तैयार,फिर एक वचन निभाना है। दिखे कितनी भी विपदा फिर भी सहयोग बढाना है। बन जा तू बजरंग बली , फिर लंका में आग लगाना है। दुश्मन के खेमे में खलबली मचाना है। आये कितनी भी रूकावट , संजीवनी बूटी को फिर लाना है। बन जा तू हनुमान ,फिर लंका में आग लगाना है।
बन जा तू हनुमान ,फिर लंका में आग लगाना है।
read moreJaysingh Nayak
हनुमान का वाणी कौशल एकबार जरुर देखे,,रावण कि लंका मे,,,जय श्री हनुमान 🙏🙏 #पौराणिककथा
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