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Banarasi..
दिलकश वो और दिलकश शाम निहारता रहूं अपना दिल थाम। अदाकारी से भरा हुआ जाम पिला रही वो और पी रहा सरेआम। ©Banarasi.. four lines दिलकश वो और दिलकश शाम निहारता रहूं अपना दिल थाम। अदाकारी से भरा हुआ जाम पिला रही वो और पी रहा सरेआम। #Love S. K @BeingAdilKhan
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल:- तू फ़िदा है हमीं पे जताती नहीं । क्या मुझे देख तू मुस्कराती नहीं ।।१ थाम लूँ थाम तेरा मैं कैसे भला । प्यार का मैं वहम दिल बिठाती नहीं ।।२ साथ चलना तुम्हारे अलग बात है । साथ पर अजनबी का निभाती नहीं ।।३ जिनसे रिश्ता जुड़ा है यहाँ प्यार का । देख उनको कभी मैं रुलाती नहीं ।।४ प्रेम उनका करें कैसे जाहिर यहाँ । माँग सिंदूर क्या मैं सजाती नहीं ।।५ दौड़ आयेगा वो एक आवाज़ में । पर उसे भी कभी मैं बुलाती नहीं ।।६ प्यार का सोचकर आज अंज़ाम मैं । कोई रिश्ता भी देखो बनाती नहीं ।।७ है सड़क पर बहुत आज मजनूं पड़े । मैं नज़र यार उनसे मिलाती नहीं ।।८ भूल तुमसे हुई है जताकर वफ़ा । जा प्रखर केश तुझ पर लगाती नहीं ।।९ ०६/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल:- तू फ़िदा है हमीं पे जताती नहीं । क्या मुझे देख तू मुस्कराती नहीं ।।१ थाम लूँ थाम तेरा मैं कैसे भला । प्यार का मैं वहम दिल बिठाती नहीं ।
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
चौपई /जयकारी छन्द १ मातु-पिता को करूँ प्रणाम । वो ही रघुवर है घनश्याम ।। थाम चले वह मेरा हाथ । और न देता जग में साथ ।। २ जीवन की बस इतनी चाह । पिता दिखाए हमको राह ।। पाकर गुरुवर से मैं ज्ञान । बन जाऊँ मैं भी इंसान ।। ३ जीवन साथी है अनमोल । मीठे प्यारे उसके बोल ।। घर उसके ले गया बरात । पूर्ण किया फिर फेरे सात ।। ४ मानूँ उसकी सारी बात । कभी न मिलता मुझको घात ।। कहती दुनिया मुझे गुलाम । लेकिन जग में होता नाम ।। ०३/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चौपई /जयकारी छन्द १ मातु-पिता को करूँ प्रणाम । वो ही रघुवर है घनश्याम ।। थाम चले वह मेरा हाथ । और न देता जग में साथ ।। २
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Village Life ग़ज़ल :- रखेगा याद हर कोई शहादत का महीना है । अदब से पेश आ इंसा इबादत का महीना है ।।१ नसीहत दे गये हमको वतन पे देख लो मिटकर । चलूँ अब चाल मैं उनकी की चाहत का महीना है ।।२ चुनावी हो रहे दंगल गली घर में लगे पर्चे । करो मतदान तुम बस अब सियासत का महीना है ।।३ लड़ेगी आँख तेरी भी किसी दिन तो हसीनों से । जिगर तू थाम लेना बस मुहब्बत का महीना है ।।४ अभी आयी जवानी है सँभलकर तुम जरा चलना । कदम बलखा न जाये अब नज़ाकत का महीना है ।।५ खिले जो फूल गुलशन में उन्हें कच्ची कली मानों भँवर को भी बता दो अब हिफ़ाज़त का महीना है ।।६ प्रखर से सीख लो कुछ इल्म झूठी इन रिवायतों के । बता देगा तुम्हें वो भी तिज़ारत का महीना है ।।७ २८/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- रखेगा याद हर कोई शहादत का महीना है । अदब से पेश आ इंसा इबादत का महीना है ।।१ नसीहत दे गये हमको वतन पे देख लो मिटकर । चलूँ अब चाल मैं
Shivkumar
तेरे साथ जो खड़ा वो काबिल था । तेरे लिए आज भी वह नादान दोस्त खड़ा है ।। तेरे साथ जो हंसता-खेलता वो दिल था । तेरे लिए आज भी एक कोने में वो मुरझाया पड़ा है ।। और तेरे साथ जो रास्ता एक सफर सा लगता था । तेरे लिए वो आज वह सुनसान सा पड़ा है ।। अब तो मेरा हाथ को कोइ थाम ले फिर से । इसी आश में यह शायर अर्से से यु अकेला खड़ा है I। ©Shivkumar #longdrive #Drive #Nojoto #nojotohindi तेरे साथ जो खड़ा वो काबिल था । तेरे लिए आज भी वह नादान #दोस्त #खड़ा है ।। तेरे साथ जो हंसता-खेल
Arun Mahra
सुख भी मुझे प्यार है दुख भी मुझे प्यार है छोडूं में किस प्रभु को दोनो से ही मुझे प्यार है आई लव यू मेरे प्रभु ©Arun Mahra दुख में घबराना नहीं सुख में घबराना नहीं हमेशा दिल थाम के रहना के खड़ा कोई हिला नही पाएगा
Devesh Dixit
सपनों का महल सपनों का एक महल बना था, पलकों में जो मेरे सजा था। बिखर न जाए कहीं पत्तों सा, ऐसा मेरे मन में रमा था। हर पल को ही पिरोया मैंने, बीज को उसके बोया मैंने। पाऊँ सफलता आगे चलकर, गीत यही गुनगुनाया मैंने। अच्छे से सब कुछ चल रहा था, मगन मैं भी अब झूम रहा था। देख रहा जो महल सपनों का, उसे ही अब मैं ढूंँढ़ रहा था। आँखें खुलीं तो मैंने पाया, महल सपनों का बिखरा पाया। हर एक सपना उजड़ चुका था, देख खुद को ही बेबस पाया। सपनों का एक महल बना था, पलकों में जो मेरे सजा था। बिखर गया वो कहीं पत्तों सा, जो की मेरे मन में रमा था। ....................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #सपनों_का_महल #nojotohindi #nojotohindipoetry सपनों का महल सपनों का एक महल बना था, पलकों में जो मेरे सजा था। बिखर न जाए कहीं पत्तों सा, ऐ
||स्वयं लेखन||
तुम्हारे उलझे और भागदौड़ भरे जीवन में, एक सुलझा हुआ हाथ मिलेगा, बस ठहरकर उसे थाम लेना, जो तुम्हें और तुम्हारे जीवन के दुखों के बिखरे पत्तों को समेट लेगा। ©||स्वयं लेखन|| तुम्हारे उलझे और भागदौड़ भरे जीवन में, एक सुलझा हुआ हाथ मिलेगा, बस ठहरकर उसे थाम लेना, जो तुम्हें और तुम्हारे जीवन के दुखों के बिखरे पत्त
Vivek
थाम लो मेरा हाथ और मुझ से ये वादा कर दो बाँटो लो मुझसे गम और उसे आधा कर दो कम खुश रहती हो जो तुम मिलकर हमसे ज्यादा कर लो नुक़सान में तुम नहीं रखोगी खुद को ये ढंग से इरादा कर लो...!!! ©Vivek #थाम लो मेरा हाथ
Ravendra