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Manish
धीरे धीरे ही सही पर काफला ये ज़िन्दगी का चलता जा रहा, ज़ख्म की चोट से ख़ामोश थे हम और लोगो को लगा इसका वक़्त बदलता जा रहा, क्या करें साहेब यहाँ कोई घुट घुट के जी रहा और वहाँ लोगों का काफ़िला वाह वाह करता जा रहा, हम करते रह गए इन्तेजार मोहब्बत-ए-इज़हार का, और एक वक़्त है जो धीरे धीरे हाथों से फिसलता जा रहा, खुश्बू जो इन फिज़ाओ में फैली हुई थी कुछ दिनों से, देखो आज वो भी धीरे धीरे सिमटता जा रहा, यहाँ तो लोग लूटते है अपना बनाकर साहब, कल जो हमारे थे आज उनका चेहरा मुकरता जा रहा, हमनें भी बनाया था एक खूबसूरत महल रेत का, पर हवाओं के झोंक से वह भी बिखरता जा रहा, हमनें भी सोचा था कि दिये और बाती की तरह एक मिसाल कायम करेंगे, पर शिकवा किसी से क्या करें जब हवाओं की आगोश में वो बाती पूरी तरह जलता जा रहा, जलता जा रहा.....। #NojotoQuote काफलां ये ज़िन्दगी का बढ़ता जा रहा...
LOL
तेरी उगली वो काफल की गुठलियां बड़ी शिद्दत से चखी हैं मैंने.. * तेरे घर की वो बंद खिड़कियां बहुत देर तलक तकी हैं मैंने.. ** अंत मेरा हो, तो हो तुझमें ही साजिश कुछ ऐसी रची है मैंने *** किया है सदा बेपरवाह इश्क जिन्दगी ऐसी ही जी है मैंने! **** (काफल- एक पहाड़ी गुठलीदार फल) #yqbaba #yqdidi #yqquotes #yqhindi #yqdada #yqdiary
Anusha singh
भैजि ,सब छूट गया पेड़ो की छांव और घर के रास्ते छूट गए। खेत छूट गए ,बचपन के दोस्त छूट गए । भैजि ,सब छूट गया ,रोजगार के चक्कर मे, मूलभूत सुविधा के चक्कर मे,सब छूट गया। जिन खेतो मे लहराते थी फसले ,आज वो बंजर हो गए। जिस मिट्टी मे रम कर खेला करते थे,वहां शूल उग गए। घर के किवाड़ो पर झाड़ -झाड़िया उग गए। भैजि ,सब छूट गया ,मेरी मजबूरी सिर्फ दो रोटी की थी, जिससे सब छूट गया। पहाड़ो की सरसराती ठंडी हवा और कलकल आवाज करता हुआ ठंडा पानी। घर के आंगन मे बैठकर लेते चाय की चुस्कीया । काफल और हिसौले जैसे फल और बुरांस के फूल, पेड़ो पर बैठी घुघूती की आवाज। भैजि ,सब छूट गया ,रोजगार के चक्कर मे, मूलभूत सुविधा के चक्कर मे,सब छूट गया। प्रदेश मे रहकर पहाड़ मे बसे घर की याद आती है। चूल्हे की रोटी -साग याद आती है। क्या करू भैजि , क्या उगाऊ वहां,बेहिसाब जंगली जानवर हो गए वहाँ, सरकार की आधी से ज्यादा स्कीम कागज पर रह गयी, और रोजगार -शिक्षा के चक्कर मे मेरा पहाड़ छूट गया। भैजि ,सब छूट गया ,रोजगार के चक्कर मे, मूलभूत सुविधा के चक्कर मे,सब छूट गया। 31-12-2022 ©Singh Anusha #भैजि ,सब छूट गया(कविता) #भैजि :-बड़ा भाई या अपने से कोई बड़ा हो #काफल,हिसौले:-पहाड़ी फल #घुघूती :- एक पक्षी का नाम
Mandeep
एक बचपन था, जिसमें हमारी शरारतो का कोई भी ना था ठिकाना। चांद सितारों के दीवाने सपने थे कुछ जाने-माने दोस्तों के साथ मिल पड़ोसियों के घर वो क्या हल्ला मचाना और जरूरत पड़ने पर बेर ,काफल भी चुराना हंसते-हंसते बीजों का पेट में चले जाना और हमारे तो पेट में ही बीज का उग जाना अरे यार वह मेरा बचपन था जाना माना चांद तारों को भी तोड़ लाना वो बचपन मेरा कितना सुहाना। ©Mandeep बचपन में बेर, काफल तो सब ने चुराया है😂😂 #alone navjot joshi J@ntu Kumar paswan yashika Anshu writer Vikash shyoran
Dipti Joshi
"पहाड़ी औरत" (पूरी कविता कैप्शन में) © Dipti Joshi पहाड़ी औरत, यमनौत्री सी शीतल और गंगोत्री सी पावन होती है काफल सी खट्टी मीठी हिमालय सी शालीन होती है, वो समेटती है अपने हर लकड़ी की गठरी