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Dipali Shaw
हर सुबह की ताज़ी हवा मेरी रूह को छू कर निकल जाती है, एक नशा सा छा जाता है, फिर उनके पास होने की ऐहसास दिलाती है, और सूरज के ढलते ही शाम हो जाती है, और शाम की हवा मुझे नशे में और मदहोश कर जाती है, फिर उनकी यादें आंसू बन आँखों से निकल जाती है। #NojotoQuote #हवाये #dipalishaw #feelings
Kamal bhansali
वक्त की बहती ऐ हवाओं जरा मेरे दिल को समझाओ वो किसी के प्यार में कहां तक जायेगा प्यार नहीं आखरी मंजिल जिंदगी की अब भी है वक्त लौट आओ किसने पूर्ण प्यार का पाया जो वो हुआ इतना दीवाना पता नहीं उसे बिन मंजिल कौन सा रिश्ता हुआ अपना अपरिभाषित प्यार नहीं तेरा लौट आ मीत, आगे अंधेरा ही अंधेरा वक्त की बहती हवाये
Vrishali G
जीवनाच्या नाटकात सहभाग सगळ्यांचा असतो पण आपली भुमिका नाही वठली तर सारा तमाशा होऊन जातो नाटक
Arora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक
अज़नबी किताब
नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ ऐसा हुआ, में रंगमंच पे खड़ी थी, और मेरी कला मेरा हाथ थामे | दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. क्या खूब कला थी, खुदा की देख हुआ करती थी | एक बार बोली बात, में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, कला थी.. वचन निभाने की, नाटक बन गयी.. रंगमंच पे उस खुदा के, में आज एक कटपुतली बन गयी... वचन निभाती नहीं, ऐसा सुना है मेने, दर्शकों से | क्या कहु, कला खो गयी, पर ये कला उनके लिए कायम है, जो सही में आज भी वचन को समझते है | कला खुदा की देन होती है, खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. -अज़नबी किताब नाटक..
Babli BhatiBaisla
झूठे और ओछे मक्कार महात्मा को कोई नहीं पूछता काले पड़ गए मैले मनको को कोई नहीं पूजता आर्यो की धरती पर शास्त्रों का ऊंचा स्थान है भारत मां के शास्त्रियों की विश्व में अलग पहचान है लाल बहादुर शास्त्री हो या धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दोनों ने साबित कर दिखाया गरीबी नहीं पिछाड़ती महानता में पिछड़ जाते हैं धनाढ्य भी नीयत से बहुत मूर्ख लगते हैं भूख हड़ताल का नाटक करते हष्ट-पुष्ट काटा है लम्बा सफ़र आंखें मूंद कर अनपढ बहुत थे पढ़ कर समझ गए सभी जयचंद और शकुनि कौन थे बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla नाटक