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Sujit Singh
बहने वाली ठंडी और ताजी हवा किसी भी व्यक्ति के हजार बीमारियों को एक पल में दूर कर दे , ये हवा जितनी ताजी है उतनी ही शुद्ध भी है। पहाड़ों के नीचे आते ही,जिधर नजर जारी है। सभी जगह हरे भरे मैदान और खेत में लहराती फसल ऐसा लग रहा है जैसे मानो इस बार की होली में सभी ने मिल कर हरे रंग का प्रयोग किया हो। इसलिए चारो तरफ हरा रंग फैला है। ©Sujit Singh #हिंदी कहानी लालच_१
Sujit Singh
और एक तरफ है,इस गांव की नदी जो इन पहाड़ों से निकल कर मैदानों से होते हुए दूर तक निकल गई है। जिसका कलरव किसी संगीत से कम नही है।अगर आप इस नदी के किनारे जा कर बैठ गए तो वह से उठने का मन नहीं करेगा जैसे नदी के अंदर बैठ के कोई गीत गा रहा हो। जिसकी आवाज हमारे कानों तक साफ साफ आरही है। ©Sujit Singh #हिंदी कहानी लालच_१
truelines537
एक ही जिंदगी है उसी को जीना है उसी में प्रयोग करने हैं, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि प्रयोग सफल होगा , प्रयोग की असफलता जीवन का अंग है .... .... साहित्य की दुनिया .... ©truelines537 हिंदी कहानी 🙏🏻
हिंदी कहानी 🙏🏻 #Life
read moreSujit Singh
उसी तरह हमारे कहानी का यह प्यारा सा गांव प्राकृतिक दृष्टि से बहुत सुंदर है।गांव की प्राकृतिक छटा इतनी निराली है की देखते बनता है।चारो तरफ फैले पहाड़ों के बीच बसा यह गांव ऐसा लगता है।जैसे किसी ने इन पहाड़ों से सुरक्षा दे रखी हो। चारों तरफ फैले हुए पहाड़ों पर कतारों में खड़े लंबे पेड़ इन पहाड़ों की खूबसूरती को और बढ़ा देते है। इन पेड़ों से ©Sujit Singh #हिंदी कहानी, लालच _१
Joginder NARWAL
hum ghar se nikle raston se anjan the ek taraf jhharhiyan or ek taraf smsan the ek hadi per se tak rayi uske ye byan the a musafir zra dekh ke chal kabhi hum bhi insan the ©Joginder NARWAL #हिंदी #कहानी #प्यार #Love
हिंदीवाले
फुर्सत जो मिले तो मुझे पढ़ना जरूर तुम ही तो वो वजह हो जिसके लिए मै लिखता हूं #रचना #हिंदी #कहानी #writing
Sujit Singh
कहानी सुरु होती है एक प्यारे से गांव से, गांव यह शब्द अपने आप में कितना प्यारा है। की नाम लेते ही आंखो के सामने प्यारा सा दृश्य आ जाता है । शहर में रहने वाले न जाने ऐसे कितने लोग होगे जिन्होंने तो गांव देखा तक नहीं है।क्यों की उनका जो भी कुछ है। वह सब शहर में ही है पुस्तो से वे , शहर में रहते हैं इसलिए गांव से उनका कुछ लेना देना ही नही है।ऐसे लोगो के सामने तो गांव का पूरा चल चित्र घूमने लगाता है। उसी तरह हमारे कहानी का यह प्यारा सा गांव प्राकृतिक दृष्टि से बहुत सुंदर है।गांव की प्राकृतिक छटा इतनी निराली है की देखते बनता है।चारो तरफ फैले पहाड़ों के बीच बसा यह गांव ऐसा लगता है।जैसे किसी ने इन पहाड़ों से सुरक्षा दे रखी हो। चारों तरफ फैले हुए पहाड़ों पर कतारों में खड़े लंबे पेड़ इन पहाड़ों की खूबसूरती को और बढ़ा देते है। इन पेड़ों से बहने वाली ठंडी और ताजी हवा किसी भी व्यक्ति के हजार बीमारियों को एक पल में दूर कर दे , ये हवा जितनी ताजी है उतनी ही शुद्ध भी है। पहाड़ों के नीचे आते ही,जिधर नजर जारी है। सभी जगह हरे भरे मैदान और खेत में लहराती फसल ऐसा लग रहा है जैसे मानो इस बार की होली में सभी ने मिल कर हरे रंग का प्रयोग किया हो। इसलिए चारो तरफ हरा रंग फैला है। और एक तरफ है,इस गांव की नदी जो इन पहाड़ों से निकल कर मैदानों से होते हुए दूर तक निकल गई है। जिसका कलरव किसी संगीत से कम नही है।अगर आप इस नदी के किनारे जा कर बैठ गए तो वह से उठने का मन नहीं करेगा जैसे नदी के अंदर बैठ के कोई गीत गा रहा हो। जिसकी आवाज हमारे कानों तक साफ साफ आरही है। और यह नदी यहां के लोगो की जीविका भी है। जिसके सहारे गांव वाले अपना घर चलाते नदी के सहारे यहां के खेतो में सिंचाई का काम होता है। ये कहानी इसी गांव से सुरु होती है। कहानी है ।कुंवर विरेंद प्रताप की,जो यहां के जमीदार है। जमीदारी उन्हें अपने पुरखों से मिली है।लेकिन देखा जाय तो ये सिर्फ कहने के लिए,एक तो वे सामाजिक व्यक्ति है। और उनका मानना है।की जमीन किसानों के पास रहे तो ज्यादा ठीक रहता है। क्योंकि उसमी खेती कर के तो अन्न किसानों को ही तो पैदा करना है।इसलिए कुंवर साहब ने सबको जमीन बाट रखी थी। अब सरकारी लेखा जोखा करना आसान तो था नहीं इसलिए एक घर के परिवार के हिसाब से जमीन दे रखा था। इसके बावजूद कुंवर साहब की गिनती सुने के बड़े जमीदारी में की जाती थी इतना करने के बावजूद उनके पास पास जमीन बाकी जमीदारों से ज्यादा थी। कुंवर साहब की बात करे तो एक अच्छी सक्सियत के मालिक है । लोगो से मिलना जुलना उन्हें अच्छा लगता था। कुंवर साहब का चार लोगो का परिवार है।कुंवर साहब उनकी पत्नी मालिनी और उनके दो बच्चे पुनीत और हरमीत मालिनी के जिम्मे घर का काम था। मालिनी को ज्यादा काम नही करना पड़ता है। क्यों की घर का काम करने के लिए नौकर लगे है। एक दिन की बात है।कुंवर साहब सो रहे थे।और घड़ी में 6.00 बज रहे है।कुंवर साहब अकसर 5 बजे उठ जाते है। और टहलने के लिए चले जाते थे । लेकिन आज अभी तक सो रहे थे। तभी दरवाजे पर से आवाज आती है,"कुंवर साहब, कुंवर साहब, आज टहलने नही जाना है। क्या। रामदास बाहर जाता है देखता है मुखिया जी है। रामदास, राम राम मुखिया जी मुखिया जी,राम राम ,अरे रामदास सही अभी उठे नही है क्या रामदास , हा मुखिया जी साहब अभी सो रहे है, आप बैठिए मैं अभी साहब को बुला कर लाता हूं, इतना कह कर रामदास अंदर चला जाता है। मुखिया जी , बरामदे में रखे कुर्सी पर बैठ जाते है। उधर मालिनी कुंवर साहब के कमरे में जाति है।और कुंवर साहब को जगती है।कुंवर साहब आज उठाना नही है क्या जरा घड़ी की तरफ तो देखिए ६ बजे है। कुंवर साहब जल्दी से उठाते है और कहते है।ओहो आज तो लेट हो गया ,तुम भी अभी उठा रही हो, थोड़ा जल्दी उठना चाहिए था। मालिनी,ये देखिए सोए आप है और डाट मुझे रहे है। कुंवर साहब, लो तुम्हे डाट नही रहा हु बोल रहा हु की और पहले उठा देती तो लेट नहीं होता ना। मालिनी,हम क्या करते हमने तो आप को 5 बजे आवाज दी थी तो आप उठे ही नही और बाद में मैं अपने काम में लग गई उसके बाद मुझे याद ही नही था। वो तो अभी मुखिया जी आए तब मैं आई,। कुंवर साहब, मुखिया जी आ गए है। मालिनी, हा आ गए। कुंवर साहब, ठीक है उन्हे बिठाओ मैं अभी आता हूं । कुछ देर बाद कुंवर साहब नीचे आते है और बाहर जाने लगते है तभी मालिनी पुकारती है। कुंवर साहब चाय बन गया है । चाय पी कर जाइए गा। कुंवर साहब , ठीक है । इतना कह कर बाहर चले जाते है। मुखिया जी कुंवर साहब को देखते है, नमस्ते कुंवर साहब। कुंवर साहब, नमस्ते, ममस्ते मुखिया जी। मुखिया जी, आज आप को बहोत लेट हो गया ,हमे लगा आज नही जायेगे या कुछ और बात है। कुंवर साहब, नही मुखिया जी ऐसी कोई बात नही है और ऐसा तो हो ही नही सकता की मैं टहलने नही जाऊं अगर तबियत कुछ नरम रहे तभी ऐसा हो सकता है। मुखिया जी, हा साहब मैं चौपाल पर आप का इंतजार कर रहा था जब लेट हो गया तो मैं चला आया। कुंवर साहब, या आप ने बाहोत ठीक किया मुखिया जी जो यह चले आए असल में हुआ क्या की मुछे रात को नीद नही आ रही थी और मैं बहोत देर रात तक जागता रहा उसके बाद कब नींद लगा पता नही इसलिए सुबह लेट हो गया। मुखिया जी, क्यू साहब कुछ सोच रहे होगे कुछ परेशानी है क्या। कुंवर साहब,नही मुखियाजी ऐसी कोई बात नही है,बस कभी कभी ऐसा हो जाता है अब पहले के जैसा तो रहा नहीं जैसे जैसे उम्र बढ़ेगी नीद काम होती जायेगी। मुखिया जी, हा ये तो ठीक कहा आपने, , आगे पढ़ते रहिए नया भाग जल्द लेकर हाजिर हुंगा। ©Sujit Singh # हिंदी कहानी लालच भाग _ १
# हिंदी कहानी लालच भाग _ १ #प्रेरक
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