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Pushpendra Pankaj
लिखो सदा प्रत्यक्ष लिखो, बंधकर नहीं ,निष्पक्ष लिखो । लोकतंत्र के हम सब प्रहरी, खुलकर अपना पक्ष लिखो ।। पुष्पेन्द्र पंकज ©Pushpendra Pankaj निष्पक्ष लेखन मर्यादित लेखन
Manmohan Dheer
घटनाएं ही लेखन का मूल हैं स्मृतियों के लिए भी आवश्यक मन का सोचा कहाँ होता है पूरा सो अच्छा बुरा है लेखन भी पहले व्युत्क्रम नही होता था लेखन घटनाओं पर होता था कल्पनाओं के बादल नही यहां सक्रिय प्रदर्शन होता है यथार्थ कलम दौड़ती नियंत्रण में अंधी बन जाने क्या क्या लिख जाती है अपना बच्चा सबसे प्यारा लेखक का भी यही मूल है लेखन अच्छा बुरा नही होता है होता है यथार्थ या वीभत्स कल्पना . . धीर लेखन
Mohan Sardarshahari
लिखता तो इसलिए हूं कि दिल में हर चीज छुपाना संभव नहीं वरना कलम-कोपी कोई चंदन का पेड़ और मैं भी कोई भुजंग नहीं।। ©Mohan Sardarshahari # लेखन
पूर्वार्थ
लेखन..... कभी-कभी लेखन भी.... कहां आसान सा होता है?? मन में चलते तो है.... जैसे कई तेज तूफ़ान से हैं..... पर उस तूफ़ान में से..... अपने लेखन के लिए,कुछ शब्द चुन पाना... कहां आसान सा होता है??.... उस वक्त तो बस,,,,,,, औरों की ही..... कविताएं पढ़ -पढ़ कर ..... जैसे अपना मन भरते ही जाते है...... और अपने लेखन की कला को..... कुछ हद तक, निखारते जाते हैं... और फिर से,,,,, अपने उस लेखन को..... आज़माते जाते हैं....,,,,,,,, कभी - कभी ..... अपने मन की बातें ,,,,,,,, लेखन में उतार पाना ...... कहां उतना आसान होता है?.... कहां आसान होता है?? ....... ©purvarth #लेखन
Tomar Sister's
कागज़ पर अपनी भावनाएं व्यक्त करना इतना भी आसान नहीं होता जितना लगता है। खुद को खुद में ही खोकर विचारों के सागर में डूबते-उतराते उन भावनाओं को जीते हुए ख़ुद को मथना पड़ता है, तब कहीं जाकर लेखनी शब्दों को कगज पर उतारती है और बनती है वो रचना जो बुद्धि जनों को अपनी रौं में बहा ले जाती है। Tomar Sisters #लेखन
Ashutosh singh chauhan
खुशबू हवाएं ले उड़ी , वक्त रंगत ले गया गुल ने दास्तां कही , क्या से क्या यह हो गया । और न लेखन के बारे में कोई दावा है हम नहीं कहते कि हम ही कहते हैं । यही तो कहते हैं , कि हम भी कहते हैं । लेखन
Gurudeen Verma
शीर्षक - यही तो जिंदगी का सच है ---------------------------------------------------- सबको पता है और यह सत्य है कि, पहली आवश्यकता है आदमी की, रोटी, कपड़ा और मकान, और इन्हीं के लिए वह, करता है दिनरात इतनी भागदौड़, और बहाता है अपना खून- पसीना, करता है पाप और अनैतिकता भी, जीने को वह सुख- शान्ति से।। भूल जाता है वह, अपनी मंजिल तक पहुंचने में, अपने परिचितों के चेहरे और नाम तक, याद तक नहीं आते हैं उसको, अपने गम और दर्द तक, तोड़कर सभी से अपना रिश्ता वह, जीना चाहता है अकेला होकर, और जी.आज़ाद बनकर वह।। नहीं रहता उसको कुछ भी मतलब, अपने परिचितों और परिवार से, और इसी तरह चला जाता है वह, अंत में अपने सम्बन्ध सभी से तोड़कर, बहुत दूर अपने किसी संसार में, लेकिन वहाँ भी उसको नहीं होता है, किसी से कोई मतलब,प्यार और रिश्ता, यही तो जिंदगी का सच है।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #लेखन
Manmohan Dheer
कोई शब्द वर्जित नही मेरे लिए मैं भाषा को भाषा ही देखता हूँ उपजा प्रयोग हो रहा है प्रचलित अपने लेखन में स्थान देखता हूँ वैसे भी व्याख्या तो तुम ही करोगे मैं तो स्वयं को संवाहक देखता हूँ निर्लज्ज नही चूंकि उत्पादक नही मैं लेखन में भाषा ही देखता हूँ समाज है दोषी जो वर्जित हुए वे मैं तो बस उनमें अर्थ देखता हूँ . धीर लेखन