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Aditya Gupta
किस कवि की है ये कल्पना कौन उसका शिल्पकार है। साँवले पन की मलिनता में प्रस्फुटित अद्भुत श्रृंगार है। मृगनयनी, मृदुभाषिणी, गजगामिनी ,राका यामिनी सी, ये किस चित्रकार की है रचना ये किसका शाहकार है। ये कंचुकी कसी कसी सी कुंतल परस्पर फँसी फँसी सी, लहराता, बलखाता बदन है या सम्पूर्ण तन मंझधार है। रस खान है या पग-हाथ रस हैं या है काव्य बना रस, अंग अंग के किरणों से निकलती नव रस की बौछार है। उन्मादित रास रंग में धड़कन में गुंजित मंजीरा मृदंग में, स्त्री है या ये ईश्वर द्वारा निर्मित कल्पनातीत चमत्कार है। आदित्य गुप्ता गरियाबंद छतीसगढ़ आदित्य का साहित्य
Aditya Gupta
ख्वाहिश थी जिसे बहार की वो चमन देखता रहा। तलाश थी जिसे खुशी की वो भी धन देखता रहा। मगर मैं अपने ही प्यार को ढूंढने निकला सुबह से, टूटते रिश्ते और नाते मेरे मैं दफ़्अतन देखता रहा। किसी का भी हो हर ख्वाब तो कभी पूरा नहीं होता, ख्वाबों में भी ख्वाबों का उजड़ा गुलशन देखता रहा। दिन भी कयामत का आ गया एक रोज आख़िरश, वो लिबास देखते रहे मैं अपना कफ़न देखता रहा। ज़िन्दगी क्या है समझ ना पाया"आदित्य"महशर तक, अपनी मौत को बनाकर मैं अपनी दुल्हन देखता रहा। आदित्य का साहित्य
Aditya Gupta
#अभिव्यक्ति-मन से कलम तक शक की बीमारी का हक़ीम लुकमान भी नहीं है। शुबहा बेमुदावा है जिससे बचा इंसान भी नहीं है। तजुर्बा तो और भी ज़्यादा तल्ख़तर है कसम से- ये वो शय है जिससे बचा तो भगवान भी नहीं है। जितना रोना हो रो लें सदमे पे सदमे मिलते रहेंगे, खुश वो है जिसमें एक रत्ती भर ईमान भी नहीं है। ऐसा कोई नहीं जिसने किसी से उम्मीद ना की हो, दिल पे बोझ हो शक का और परेशान भी नहीं है। यही बे समर, बे रवायत बे नूर,बे कसूर है ज़िन्दगी, "आदित्य" से बड़ा कोई मासूम नादान भी नहीं है आदित्य का साहित्य