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Sankalp Sharma
Roz tumhe hi to dhundne nikalte hain pushkar ki galiyo mein, Warna galiyan wahi hain, log wahi hain, wadiya bhi wahi hain, Dukane wahi hain, kund wahi hai, kund ka pani wahi hai, wo kangan ki dukan ke kangan wahi hain, Wo us buzurg ki beedi se nikalta dhua wahi hai, Kund ke kinare baithi aurat ke ghunghat ka anchal wahi hai, Kund ka gana bajana wahi hai, wo nachte log wahi hain, Wo dhol ki dhamak wahi hai. Wo bargad wahi hai, bargad se nikli shakhayein wahi hain, uski chaw wahi hai. Bas ek mein wahi nai hun, ek tum wahi nai ho, wo hamara ghumna wahi nai hai, wo tumhara khul k muskurana wahi nai hai, wo tumhara baat baat pe hasna wahi nai hai, wo tumhara geet gungunana wahi nai hai, wo mujhe achanak se dant dena wahi nai hai. Kyunki tum hi nai ho. Aur tum nai ho to mein nai hun. Bas tumhe aur apne ko hi to dhudne nikalte hain Pushkar ki galiyon mein. Warna to sab wahi hai. - the irresponsible maverick पुष्कर और तुम...✨✨
पुष्कर और तुम...✨✨
read moreAnita Najrubhai
बदलता कुछ भी नहीं बदलना हमे पडता है वक्त के साथ साथ ©Anita Najrubhai #बदलता
Rajotiya Bhuwnesh
सब बदल जाता है हर पल, हर लम्हा कुछ यू सिमट जाता है कैलेंडर बदल जाते है सालो के आंकड़े बदल जाते है बदल जाता है हर मिनिट हर घंटा कर लिए दफन सीने मे कई राज आज नई साल पर आपको माफ करते चले दोबारा ना बहक जाना हमारी महोब्बत पर हम नई साल पर ये दुआ करते चले हर पग पग पर आपके खुशियाँ हो जिंदगी की हर रात चांदनी हो जिंदगी मे सदा खिलते रहे फूल खुसबू लिए गुलसन को महकाते रहे आप राजोतिया भुवनेश ©Rajotiya Bhuwnesh jangir बदलता साल और बदलता अहसास #HappyNewYear
बदलता साल और बदलता अहसास #HappyNewYear #कविता
read moreTAHIR CHAUHAN
बेरा ना बदलते दौर मै। किसा जमाना आजा। शेर पड़े पिंजरे भीतर। कुत्ते बन जा राजा। रोड़ प किताब बिके। शीशे भीतर बूट बीके। नार या निकर पहरण लागी। थोड़े साड़ी सूट बिके। अंग्रेजी पहनावा यो। म्हारी संस्कृति न खा गया। बेरा ना बदलते दौर मै। किसा जमाना आजा। ताहिर।।। ©TAHIR CHAUHAN #बदलता#दौर
PRIYA SINHA
🥺🙏🏻⏰"बदलता वक्त"⏰🙏🏻🥺 आप अपने को मैंने कभी थोड़ा खुश ; तो कभी बहुत ज्यादा रूंआसा देखा ; कर के एक-दम से सच्चा वादा मुझसे , उम्मीदों को भी देते झूठा झांसा देखा ; आते थे जो पेश तमीज-ओ-तहजीब से , उनका भी तो मैंने बदलते भाषा देखा ; बदला वक्त और बदले कुछ खास लोग , बदलते वक्त के साथ मैंने निराशा देखा ; रोज व्यर्थ की भागदौड़ और उहापोह में, हर-दम हीं तो मैंने अर्थपूर्ण तमाशा देखा ; लगी थी आग जैसे कोई दिली ख्वाहिशों को , ख्वाहिशों से उठता मैंने कुछ धुंआ-सा देखा ; समझ ना सके जो सच्चे प्रेम के एहसास को , उनको भी समझाते मैंने झूठा परिभाषा देखा ; खैर हरा ना सकेगी तमाम चालाक कोशिशें मुझे , दिल को अपने फिर से देकर मैंने एक दिलासा देखा ! प्रिया सिन्हा 𝟐𝟏. जनवरी 𝟐𝟎𝟐𝟑. (शनिवार) ©PRIYA SINHA #बदलता #वक्त