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Purneshwar Pandey
खुलेआम प्रहार करो ऐ दुनिया वालों, निश्चिन्त हूँ मैं पत्थर हूँ ! पूजोगे तुम खुद ही बन मूरत बैठ गया जिसदिन। ©पूर्णेश्वर पाण्डेय #निष्प्रभाव #निश्चिन्त #आत्मबल
vibrant.writer
बे तासीर निगाहों के तुम भी जिम्मेदार हो, तुमने ही धीरे धीरे से मेरा नजरिया बदल दिया। #बे_तासीर -निष्प्रभाव बे तासीर निगाहों के तुम भी जिम्मेदार हो, तुमने ही धीरे धीरे से मेरा नजरिया बदल दिया। #vibrant_writer कलम बोल रही ह
RJ कैलास नाईक
नकोच मजला कोणते शब्द भरजरी नात्यास दूषणे नसावी तुझ्या कधी उरी कोण केला गुन्हा सजा कुणाला झाली अपेक्षांच्या जगात भरकटली दुनिया सारी शब्द अपुरे पडतात भावनांच्या वैराग्यात सोसवेना खुलाश्यांची निष्प्रभ लाचारी मन वेडावते खुळ्यागत शापित एकांतात अश्रू कोसळण्यास कधीचे अधीर जरी डगमगली जरी प्रेमाची नौका हिंदोळ्यावर नात्यांचा प्रवास न्यावा लागेल पैलतीरी RJ कैलास #नकोच मजला कोणते शब्द भरजरी नात्यास दूषणे नसावी तुझ्या कधी उरी कोण केला गुन्हा सजा कुणाला झाली अपेक्षांच्या जगात भरकटली दुनिया सारी शब्द
vishnu prabhakar singh
मन मनु है जोड़ रहा मानवता है होड़ रहा कृति धवल सज रही श्वांस धुन है बज रही तन दीपक साँसें बाती हैं, आज प्रखर चलती आँधी है। कहीं जला कहीं बुझ रहा, साँसों का संगीत बज रहा।। 💕💕💕💕💕💕💕💕💕 घुमड़ - घुमड़ जात
Insprational Qoute
त्याग संसृति का मोह, रीत जग की भुलाई, घूँट विष का भी पी लिया कंदराओं में जा समाई, वो काल मीरा की भक्ति का था। सम्पूर्ण रचना अनुशीर्षक में पढ़े। 🙏🙏🙏 त्याग संसृति का मोह, रीत जग की भुलाई, घूँट विष का भी पी लिया कंदराओं में जा समाई, वो काल मीरा की भक्ति का था। बनी वो पतिव्रता नारी, बचा लिय
दि कु पां
तो फिर छोरी! तू लाज लजाए क्यों... ----------------------------------------- संवेदनाओं के क्रंदन से हो रही वेदनाओ से, निष्प्रभाव हो जो तू जीणा चाहे.. संस्कार विहीन, हो उघड़ जो तू इस्तेहार बण होर्डिंग्स पर चिपकण चाहे.. तो फिर छोरी! तू लाज लजाए क्यों... ----------------------------------------- संस्कारों को बुद्धि दंभ से जो तू बंधण माणे रिश्तों के अनुबंधों से आज़ादी जो तू चाहे.. हो मुक्त, बन उन्मुक्त तू संसार में जीवण चाहे तो फिर छोरी! तू लाज लजाए क्यों... ----------------------------------------- दारू संग सिगरेट जो फूकण चाहें और गुड़गुड़ावण हुक्का संग लडको बारों मा.. कपड़े छोटे पहन जो बदन खुला दिखावण चाहवे और चाह नग्न दिखण की निमण लागे तो फिर छोरी! तू लाज लजाए क्यों... तो फिर छोरी! तू लाज लजाए क्यों... ----------------------------------------- संवेदनाओं के क्रंदन से हो रही वेदनाओ से, निष्प्रभाव हो जो तू जी
निष्प्रभ की दुनिया
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले मगर लिखवाए कोई उस को ख़त तो हम से लिखवाए हुई सुब्ह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइ'ज़ पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले - मिर्ज़ा ग़ालिब { निष्प्रभ मन्नु मल्होत्रा } हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्द
निष्प्रभ की दुनिया
है नीच जहां की रीत सदा मैं गीत वहां के गाता हूं भारत का रहना वाला हूं भारत की बात सुनाता हूं है ऊंच नीच का भेद यहां चंद दिलों से हमारा नाता है कुछ और ना आता हो हमको हमें बैर निभाना आता है जिसे धिक्कार चुकी सारी दुनिया मैं शर्म से शीष झुकाता हूं भारत का रहने वाला हूं भारत की बात बताता हूं। इतनी करूणा इंसानो को है पड़ती लात यहां कुत्ते बेड पर सुलाए जाते हैं इतना आदर भगवान को पूछे न कोई बात यहां पत्थर पूजे जाते हैं ऐसी धरती पे मैंने जन्म लिया क्या सोच के मैं इतराता हूं? भारत का रहने वाला हूं भारत की बात बताता हूं.!! - निष्प्रभ मन्नु मल्होत्रा ( 02-06-20 ) @nishprabhkiduniya है नीच जहां की रीत सदा मैं गीत वहां के गाता हूं भारत का रहना वाला हूं भारत की बात सुनाता हूं है ऊंच नीच का भेद यहां चंद दिलों से हमारा ना
दि कु पां
"तो फिर छोरी! तू लाज लजाए क्यों..." See captions.. "तो फिर छोरी! तू लाज लजाए क्यों..." संवेदनाओं के क्रंदन से हो रही वेदनाओ से, निष्प्रभाव हो जो तू जीणा चाहे.. संस्कार विहीन, हो उघड़ जो तू
निष्प्रभ की दुनिया
#NoTobaccoDay जाने कितने घर के चिराग़ बुझा दिये इसने और खुद होंठों पर जलती रही जाने कितने शमशान पहुंचा दिये इसने और खुद मयखाने में पलती रही कितने चूल्हे नहीं जलते जब जलती है ये सिगरेट जाने कितने भूखे सो जाते हैं बच्चे जब बाप पीता है ये घासलेट बताओ कब तक ये हम पर राज करेगी हमने ही इसे बनाया और ये हमें ही बर्बाद करेगी ये शराब और ये सिगरेट इसे आखिर हम कब मिटाएंगे ये साली रोज़ हमें मिटा रही है - फ्रेंड गाइड एंड फिलोस्फर ( 31/05/20) @nishprabhkiduniya ये पंक्तियां मेरी नहीं हैं एक दोस्त हैं उम्र और समझ दोनों में काफी बड़े हैं उनका लिखा है काफी अच्छी चीजें उनसे सीखने को मिली लेकिन जिसने इ