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पंच_भाषी_संस्कृत_लेखिका_तरुणा_शर्मा_तरु
sunset nature मृत शैय्या सा जीवन मृत शैय्या सा जीवन लगता जाने कैसी दशा हुई, क्षण क्षण क्षति सा लगता क्षण भंगुर सी श्वास है लगती परीक्षा इतनी क्षण प्रति क्षण जटिल रुप धारण करती अग्नि सी चिंता में चिता समान ये काया क्षण क्षण ज्वलित होती, मौनता ही मौनता चहुं ओर भोर भी दिन प्रतिदिन सुनसान सी लगती, कोमल कोमल भाव परिवर्तित होते नित्य असंभवता की त्रिया चरित्र में, मन व्यथित धीर धराये अश्रु झर झर नयन बरसायें एकांतता भी क्षण प्रतिक्षणता अपना असमंजस्य रौद्र रुप दिखाये, शूलों सी शैय्या लगती कर्म विपरीत परिस्थितियों के परिणामस्वरूप जाये, तिनका तिनका बंटता जीवन सांस भी नाजुक सी क्षण प्रतिक्षण अपना अलग है रुप दिखाये, चक्रव्यूह है जटिल परीक्षा का एकाकी जीवन कैसे क्षण प्रतिक्षण जिया जाये, दो पाटों में पिसता सा प्रतीत होता जीवन कोई राह न दिखती हाय, ©पंच_भाषी_संस्कृत_लेखिका_तरुणा_शर्मा_तरु हमारी स्वरचित रचनाएं शीर्षक मृत शैय्या सा जीवन विधा कविता भाव वास्तविक #poem #tarukikalam25 #Life #Nojoto #nojotohindi #Trending #स्वरच
हमारी स्वरचित रचनाएं शीर्षक मृत शैय्या सा जीवन विधा कविता भाव वास्तविक #poem #tarukikalam25 Life #nojotohindi #Trending स्वरच #Poetry #स्वरचितरचनायें #sunsetnature
read moreश्यामजी शयमजी
White कुत्ते का पिल्ला बैठा नीम की शाम में आज बारिश होगी आपकी भी गांव में ©श्यामजी शयमजी #cg_forest कविता कविता
#cg_forest कविता कविता
read moreपंच_भाषी_संस्कृत_लेखिका_तरुणा_शर्मा_तरु
स्वरचित रचनाएं शीर्षक, दोहे की कविता विधा-दोहावली जीवन की यही व्यथा अपार जिसका पूर्ण अपूर्ण का सार, भेद न समझे ये मन फिर भी #Poetry #Trending #Hindi #poetrycommunity #indianwriter #nojotohindi #tarukikalam25
read moreकवि अर्जून सिंह बंजारा
हिंदी साहित्य मंच ©कवि अर्जून सिंह बंजारा कवि अर्जुन सिंह बंजारा कविता आज की पीढ़ी
कवि अर्जुन सिंह बंजारा कविता आज की पीढ़ी #Poetry
read moreShiv gopal awasthi
ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए, भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए। पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई, लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए। बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी, सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए। उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं, दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए। थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने। चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए। कवि-शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi कविता
कविता #शायरी
read moreHARSH369
मन कि व्यथा मन ही जाने, ना तुम जान सको न मैं जानू क्या मन करवाये क्यू करवाये ये मन ना तुम जान सको ना हि मैं जानू.. बेधड़क बोलता हूं,बेखौफ बोलता हूं रिस्तो के बन्धन को कान्टों पर तोलता हूं जिसके पास जितना पैसा, उसी कि सरकार है बाकि बेकारो के लिये बेकार परिवार है,..! बाकि ये सब क्यूं बनाया भगवान ने ना तुम जान सके ना हि मैं जानू..! मन की व्यथा..मन हि जाने..!! ©SHI.V.A 369 #मन की व्यथा..!! #कविता मन की
मन की व्यथा..!! कविता मन की
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