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Mehfil-e-Mohabbat
सिर्फ़ पानी व पसीने में बड़ा अन्तर है एक पत्थर व नगीने में बड़ा अन्तर है अरे!मुर्दा घड़ियों की तरह वक्त बितने वालों साँस लेने में व जीने में बड़ा अन्तर है ©Mehfil-e-Mohabbat ✍️♥️उदयभानु हंस साहब♥️✍️
Suraj
तू चाहे चंचलता कह ले, तू चाहे दुर्बलता कह ले, दिल ने ज्यों ही मजबूर किया, मैं तुझसे प्रीत लगा बैठा। यह प्यार दिए का तेल नहीं, दो चार घड़ी का खेल नहीं, यह तो कृपाण की धारा है, कोई गुड़ियों का खेल नहीं। तू चाहे नादानी कह ले, तू चाहे मनमानी कह ले, मैंने जो भी रेखा खींची, तेरी तस्वीर बना बैठा। मैं चातक हूँ तू बादल है, मैं लोचन हूँ तू काजल है, मैं आँसू हूँ तू आँचल है, मैं प्यासा तू गंगाजल है। तू चाहे दीवाना कह ले, या अल्हड़ मस्ताना कह ले, जिसने मेरा परिचय पूछा, मैं तेरा नाम बता बैठा। सारा मदिरालय घूम गया, प्याले प्याले को चूम गया, पर जब तूने घूँघट खोला, मैं बिना पिए ही झूम गया। तू चाहे पागलपन कह ले, तू चाहे तो पूजन कह ले, मंदिर के जब भी द्वार खुले, मैं तेरी अलख जगा बैठा। मैं प्यासा घट पनघट का हूँ, जीवन भर दर दर भटका हूँ, कुछ की बाहों में अटका हूँ, कुछ की आँखों में खटका हूँ। तू चाहे पछतावा कह ले, या मन का बहलावा कह ले, दुनिया ने जो भी दर्द दिया, मैं तेरा गीत बना बैठा। मैं अब तक जान न पाया हूँ, क्यों तुझसे मिलने आया हूँ, तू मेरे दिल की धड़कन में, मैं तेरे दर्पण की छाया हूँ। तू चाहे तो सपना कह ले, या अनहोनी घटना कह ले, मैं जिस पथ पर भी चल निकला, तेरे ही दर पर जा बैठा। मैं उर की पीड़ा सह न सकूँ, कुछ कहना चाहूँ, कह न सकूँ, ज्वाला बनकर भी रह न सकूँ, आँसू बनकर भी बह न सकूँ। तू चाहे तो रोगी कह ले, या मतवाला जोगी कह ले, मैं तुझे याद करते-करते अपना भी होश भुला बैठा। ©Suraj   कविता कोश से जुड़ें
Rajesh Khanna
BeHappy मेरी खुशी तेरे हाथों में है तू चाहती तो मुझे हंस हंस कर पागल देती ©Rajesh Khanna #beHappy हंस हंस कर
Rajesh Khanna
याद करेंगे उन बातों को जिन्हें अब भुलना पड रहा है तुम भी सोचोगी यार इतना भी बुरा नहीं था अब रोना पड रहा है यार हंस हंस के बातें किया करती थी वो मुझे क्या मालूम था आज ये दिन भी देखना पड़ रहा है ©Rajesh Khanna #Iqbal&Sehmat हंस हंस
N.S. RATHOR
बहुत छोटी आयु में उस ज्ञान ओर अनुभव को पा लिया है साहब । इतिहास साक्षी है इसमें हमारा नहीं हमारे वंश का प्रभाव है । हंस का छोटा बच्चा आकाश कीं उन उचाईयों पर जा सकता है । सागर कीं लम्बी दूरी को नाप कर वापस अपने ठिकाने पर माता पिता के साथ ही ठहरता है । सागर से निकले हीरे मोती को पचाने की क्षमता ईश्वर ने उसी पंक्षी के वंश को प्रदान कीं है । फिर भी दुनिया के आलोचकों ने उस अनूठे पंछी की क्षमता ओर विशेषताको पहचानने कीं भूल ही है ।। एन.एस.राठौर हंस