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शुभेंद्र सिंह 'संन्यासी'
सुनो मिया जरा गौर फरमाईयेगा 🙏 रहो स्विट्जरलैंड या रहो विदेश लेकिन सबसे प्यारा है इस दुनिया मे अपना आंगन अपना गाँव अपना शहर और अपना देश लफ़्ज मेरा गाँव मेरा देश
अभिषेक सिंह
शहर शहर में रहने की जिद सबको है, इसलिए गाँव भी शहर बन रहे है, मिट्टी के झोपड़ भी अब पक्के बन रहे है, कही हम इतने आगे न निकल जाए कि गाँवो का देश भारत बस किस्से में ही सिमट जाय #शहर ,#कटाक्ष,#मेरा गाँव मेरा देश
amit verma
शहर के व्यस्त जिवन में समय किसे कहां है गांव की चौपाल में इतवार के साथ सब यार होते हैं ©amit verma मेरा गाँव....
paritosh@run
Mera gaw... Unchi nichi galiyo me jaha unch - nich khela tha, Ab unch - nich khelo me ni logo me h dikh rha... Mere gaw me ab wo wali hariyali ni dikhti... Ab Din me jheengur ki awazo ka wo shor na rha... Yha ki mitti me ab pahle jaisi khusbu ni ati... Har jagh logo me dekho nafrat ka zaher h ghul rha.. Jaha chalti thi kagaz ki kashtiya pure sawan bhr... Ab chut-put barish ki bundo ko hi sara gaw h taras rha... Yha k tyoharo me ab wo pahele wali baat na rhi... Un hud dangi tyoharo ka ab wo wala maza na rha... Jha yu hi guzar jati thi sard raate aag senkte hue... baba ki un tilshmi kahaniya sunne ka ab wo daur na rha.. Jha k har ghr ki kothri me chip kr khela luka chupi ka khel... Lage kuch apna sa wha wo ab aangan na rha... Jha chabutro par baith kr din guzarta tha hansi mazak me... Ab wo chabutre b toot gae na dilo me wo prem rha... Man to bht krta h k fir se jiyu un yaado ko.. Par ab mera gaw ab wo gaw na rha... Mera gaw ab wo gaw na rha... _paritosh@run मेरा गाँव...
Harsh Sahu
मेरा गाँव तंग गलियाँ मेरे गाँव की,जाने क्यूँ वीरान है। हुजूम लगता था जहां कभी,जाने क्यूँ सुनसान है।। दरिया तीर उनका घर,जहां से देखती थी वो मुझे, बेकरार सी उनकी नज़रें,इशारों से कुछ कहती थी मुझे। ख़्वाब धुंधला सा गया और यादें भी बेजुबान है, तंग गलियाँ मेरे गाँव की........... खुशियाँ बेशुमार बरसती थी,हर आंगन-हर दिल से, अब खिलते मुस्कुराते चेहरे दिखते है बड़ी मुश्किल से। दुनियां की भीड़ में इंसाँ, लगता अब बेजान है, तंग गलियाँ मेरे गाँव की............. वफ़ा आबरू है मोहब्बत की,ये बात समझते थे लोग, जज़्बात दिलों के, महसूस करते थे लोग। खरीददारों के जहाँ में,लगी वफ़ा की दुकान है, तंग गलियाँ मेरे गाँव की.............. गिले-शिकवे जुबाँ तक,दिल से न वास्ता था, छोटी-छोटी पगडंडियां, हर उमीदों का रास्ता था। यादों पे ही सही 'हर्ष', बीते पलों का निशान है, तंग गलियाँ मेरे गाँव की, जाने क्यूँ वीरान है। हर्ष साहू #मेरा गाँव
vikas dev dubey
v"मेरी कलम से"d आज वो गाँव पहुँचना भी सपना हो गया है,, जिस गाँव को छोड़ हम शहरों में सपनें सजाने गए थे,, vikas dev dubey मेरा गाँव,,,
sodan singh
तू रुबरु तो हो मेरे गाँव से यारा खुद ब खुद जान जाएगा क्यो तड़पता ये दिल अपने गाँव के लिए :-नागर मेरा गाँव
Nitya Singh
आज बड़े दिनों के बाद गाँव की बात करने का मन हुआ.........बहुत ही अजूबो से भरा पड़ा है हमारा गाँव ....अब भी यहां कई लोगों की सुबह 3 बजे ही हो जाती है ...सुबह सुबह उठकर हाथों में लाठी भाँजते हुए ,गपियाते हुए बड़े बूढ़ों की टोली का 4-5 किलोमीटर की सैर पर जाना आम बात है । उनकर पतोहिया बड़ा लड़ाकू हे , उनकर लड़िकवा कउनो काम धाम ना करेला बस खाली टेम पास करेला , उनकरे घरे आज उनके लडकिया के देखहरु आवे वाला बाटें, ये सब मुद्दे इन टोलियों में ब्रेकिंग न्यूज़ शतक की तरह सुने सुनाए जाते हैं । सैर के बाद वापसी में एक मंदिर पड़ता है जहाँ टुन्नू पंडित जी काली माई की आरती करके इन बड़े बूढ़ों के साथ साथ परसादी के चक्कर में सुबह सुबह बिना मंजन किये पहुंचे बच्चों और नहा धोकर तड़के सब काम निपटाकर पहुंची आस्था से भरी पूरी औरतों को मिश्री लाचीदाना किशमिश फल फ्रूट का परसादी देकर उनके दिन की शुरुआत आशीर्वाद में , खुश रहा बचवा लोगन कहके करते हैं । उसके बाद और लोग तो अपने अपने घरों में काम धाम में लग जाते हैं लेकिन कुछ औरतें इनके घरे उनके घरे की पंचाइत करते करते शंकर जी के मंदिर तक भी हो आती हैं......ये मंदिर गांव के दूसरे छोर पर पड़ता है । तो ये रोज का नियम है ....इसके बाद सागर और फुन्नु पान वाले के यहां पान के शौकीन आदमियों का जमावड़ा देखा जा सकता है जहां जर्दा वाला , मीठा वाला , सुपारी वाला कई टाइप का पान एभीलेबुल है । कई लोग महीनों की उधारी वाले है जिनके पीक से पूरी सड़क लाल हुई रहती है ......हाँ हमारे गॉंव में सड़क है , बिजली है, पानी की सप्लाई , अस्पताल, विद्यालय सब है ये प्रेमचंद की कहानियों में जो गांव गिरांव दिखाई देता है उससे एकदम विपरीत है । यहाँ जिसके घर ये पता नहीं कि राशन की व्यवस्था कैसे होगी उसके घर के आदमी का नाश्ता सोमरस से होता है । अरे हाँ एक बात तो भूल ही गयी बताना ....यहाँ के लड़ीके -बच्चे तक इतने चन्ठ हैं कि पूछो ही मत .......चाहे नर्सरी स्कूल से पढ़ें हो या प्राइमरी स्कूल या फिर कान्वेंट स्कूल से .....सबका दिमाग, जुबान, हाथ ,लात एकदमे तेज़ चलता है एकदम धार वाली कैंची की तरह ......यहाँ लगभग हर बच्चे का पढ़ाई लिखाई के अलावा हर चीज में मन लगता है जैसे - ताश (भगवान जी के फोटो से जो खेलते हैं) , साइकिलिंग भले कैंची ही चला पाते हो , सबसे जरूरी बात सब क्रिकेटर बनना चाहते हैं । कुछ लोग पुलिस , सेना में जाने का ख्वाब भी देखते हैं......हाँ लेकिन उनका जो परसेंटेज है वो जरा कम है । रामनवमी पर हमारे गांव में नाच होता है , बड़े बूढ़ों, जवानों सबकी ठरक एक तरफ और बच्चे एकतरफ ......जी एकदम सही कह रही हूँ .....विश्वास न हो तो आकर देखिएगा कभी स्टेज के नीचे सबसे पहली पंक्ति में बैठे एकदम एकाग्रचित्त होकर देखते हुए मिल जाएंगे जिसे देखकर तपस्वी भी शरमा जाए। हर गाँव की तरह हमारे गाँव में भी प्रेम प्रसंग की चर्चाएं जोरों शोरों से चलती हैं .....एक बार जिसके पीछे लोग पड़ गए उनकी खैर नहीं .....उन्हें कउनो देवता बाबा , सत्ती माई,बुढ़िया काली माई , ब्रह्म बाबा, दैतरा बाबा नहीं बचा सकते । अगले महीने या उसके अगले महीने में उनकी गांव से विदाई होना तय है .....वो अलग बात है कि जिन्हें वहीं रहना है जीवन भर उनको इन सब से छूट प्राप्त है । हमारे गांव के पिछले हिस्से में खेतों में काम करने वाले लोगों का घर एक लाइन से बना हुआ है । ये ही लोग गांव की कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था को अपने कंधे पर उठाए रहते हैं ......कई लोग अपने खेतों को अधिया देके खाली हो गए हैं .....कई लोग इनके मदद से खेती करते हैं । जुताई ,रोपाई , बुवाई ये सब वहां एक त्योहार की तरह होता है .....तब हरियरी माई को रोटी चढ़ाया जाता है .......अरे ज्यादा मत सोचिये आप लोग .....रोटी खाली कहने के लिए है लेकिन चढ़ता तो पूड़ी हलुआ ही है ...नहीं तो देवी नाराज न हो जाएंगी.......इसके अलावा नीम के पेड़ में लोटे लोटा जल नाप के सबके घर का चढ़ाया जाता है ताकि घर परिवार में सब कुशल मंगल रहे .......मेरे ख्याल से इसी समय बीबी फातिमा (शायद यही नाम है ) को आटा भी चढ़ता है .....इसके पीछे का लॉजिक बहुत जानने की कोशिश की थी हमने पर कुछ खास पल्ले नहीं पड़ा ......हम बात करते करते बहुत दूर तक आ गए हैं अभी शाम के आरती का टेम हो गया है बहुत कुछ है बताने को ......धीरे धीरे बताते रहेंगे वो क्या है कि एक साथ सब बता देने में वो रस कहाँ मिल पाता है....विराम लेते हैं अब । - नित्या #मेरा गाँव