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Shitanshu Rajat
तुम्हारी तस्वीर के पीछे एक दरकती-सी दीवार है (कविता अनुशीर्षक में) तुम्हारी तस्वीर के पीछे एक दरकती-सी दीवार है कोई उसकी बात ही नहीं करता कोई बात ही नहीं करता उन दरारों की जो पड़ी हुई हैं तुम्हारी हसीं मुस्क
Tera Sukhi
पहचान में नही आता कोई अपना अपना लगता है जैसे कोई सपना सोया तो नही मैं रात भर जागा हूँ चाँद को याद है निगाहों का तपना FULL.READ IN CAPTION 👇👇 * कोई * पहचान में नही आता कोई अपना अपना लगता है जैसे कोई सपना सोया तो नही मैं रात भर जागा हूँ चाँद को याद है निगाहों का तपना
Shashi Aswal
जिस्म... कैसा लगेगा आपको अगर आप नीले आसमाँ के नीचे खुली धरती में हो। यकीनन अच्छा लगेगा। पर जमीं चारों तरफ रेत से भरी हुई हो।थोड़ा बुरा लग सकता हैं।
Namit Raturi
"धर्म ना होता तो क्या होता" "धर्म ना होता तो क्या होता" कहीं मस्जिद ना होती,कहीं मंदिर ना होता, माथे पे तिलक ना होता,टोपी से ओढा सिर ना होता, सोचता हूँ धर्म ना होता
Jyotshna Rani Sahoo
उन्हें मिलना था भाग - ७ ॥ Read in caption॥ अंशु की आसुं बहती नहीं लेकिन उसके अंदर है अनकही दर्द जिसे ढकना चाहता है अपनी हरकतों से।उस दिन बहत रोया अकेले अकेले।अकेलापन बुला लेती है दबी
yogesh atmaram ambawale
सब बदल गया हैं, जीने का अंदाज भी बदल गया हैं| जब से ए कोरोना आया हैं, इंसान का इंसान को देखने का नज़रिया बदल गया हैं| सब बदल गया हैं, नाज़ हैं जिस चेहरे पे वो भी ढकना पड़ रहा है| किसी को नजदीक आते देख दूर भागना पड़ रहा हैं| सब बदल गया हैं, ऐसे ही ए वक्त भी बदल जाएगा, दूर भाग रहा हैं जो आज कल फ़िर पास आएगा| OPEN FOR COLLAB ✨ #ATसबबदलगया • A Challenge by Aesthetic Thoughts! ♥️ Collab with your beautiful words.✨ Transliteration: Sab badal gaya
Bharti Vibhuti
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
*मेरे अन्सुल्झे सवाल जो लिखते लिखते खुद से पुछ बैठता हु* मुझे लगता है मेरी कविताएं मेरे एकांत का एकालाप है आजकल मेरे शब्द मुझसे ही उलझ जाते हैं मेरे शब्दों के माया जाल से मैं भ्रमित सा हो जाता हूं जो कहना चाहूं कह ना पाऊं जो लिखना चाहूं लिख ना पाऊं क्या सच में कविता की कोई सीमा है किसी ने खींचे दी है कोई लक्ष्मण रेखा कविताओं के लिए या समाज ने तय करदी हो कोई सीमा क्या हमारी कलम सीमा से बंधी है जिस से बाहर निकलने से तोड़ दी जाएगी हम बुराई को पूरा हुबहु क्यों नहीं कह पाते और सच को इतना श्रृंगार से ढक देते हैं कि उसके मायने ही बदल जाते हैं क्यों नग्न सत्य को कपड़े से ढकना जरूरी हैं क्यों कविता कागज पर उतरते उतरते सच को कहीं खो देती है अपने नाकाफ़ी होने के बोझ से कविता कभी मुक्त नहीं हो पाती है क्या कविता कोशिश भर कर पाती है जिसमें कर्म और आकांक्षा सब मिले-जुले हैं ©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) *मेरे अन्सुल्झे सवाल जो लिखते लिखते खुद से पुछ बैठता हु* मुझे लगता है मेरी कविताएं मेरे एकांत का एकालाप है आजकल मेरे शब्द मुझसे ही उलझ ज
Mohit Mudita Dwivedi
बिलखते अल्फ़ाज़
मास्क से अपना चेहरा ढकना है इंसानियत नहीं 😷 मास्क से अपना चेहरा ढकना है इंसानियत नहीं #nojotohindi #nojotopoem #OpenPoetry