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Babli BhatiBaisla
झूठे और ओछे मक्कार महात्मा को कोई नहीं पूछता काले पड़ गए मैले मनको को कोई नहीं पूजता आर्यो की धरती पर शास्त्रों का ऊंचा स्थान है भारत मां के शास्त्रियों की विश्व में अलग पहचान है लाल बहादुर शास्त्री हो या धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दोनों ने साबित कर दिखाया गरीबी नहीं पिछाड़ती महानता में पिछड़ जाते हैं धनाढ्य भी नीयत से बहुत मूर्ख लगते हैं भूख हड़ताल का नाटक करते हष्ट-पुष्ट काटा है लम्बा सफ़र आंखें मूंद कर अनपढ बहुत थे पढ़ कर समझ गए सभी जयचंद और शकुनि कौन थे बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla नाटक
Keshav
बंदिषे कोई नहीं है अभी फिर भी जिंदगी पराई सी क्यों लग रही है क्या पा रहा हुं और क्या खो रहा हुं पता नहीं कितना, मै जी रहा हूं ! जख्म किसी और को दर्द मै खुद ले रहा हु, समज न पाये कोई मुझे, न मै किसीको समझ रहा हु, क्या पा रहा हुं और क्या खो रहा हुं पता नहीं कितना, मै जी रहा हूं | तकलीफों को संभालते संभलते, न जाने मै क्यूं हस रहा हूं छाव तो अभी भी दूर है, पर सुकून को मैं पी रहा हु, बंजर हुआ है ये कलेजा, अब आंसू नही बरसते, जख्म कही और लगे है मगर मै रो रहा हुं| क्या पा रहा हुं और क्या खो रहा हुं पता नहीं कितना, मै जी रहा हूं ! ©केशव पराई जिंदगी