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Manku Allahabadi
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका- निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः । तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥ देवांगनाओं के सिर में गूँथे पुष्पों की मालाओं के झड़ते हुए सुगंधमय पराग से मनोहर, परम शोभा के धाम महादेवजी के अंगों की सुंदरताएँ परमानंदयुक्त हमारे मन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें शिव तांडव स्त्रोत (श्लोक -14) ©Manku Allahabadi शिव तांडव स्त्रोत (भाग-14) .................................................... निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका- निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्ण
Raj choudhary "कुलरिया"
तू कदम्ब का... दरख़्त जानम पत्ते पत्ते... विचर लूँ क्या ? शीतल सुनहरी... छाँव है तेरी कुछ पल ...यहां सर धर लूँ क्या ? बरसो पड़ी....विरह में नैना कर काजल...प्रियम तुझको सुकूंन लोचन.... भर लूँ क्या ? हिम हिमालय....हसीन वादियां तुझमे सबको.... हर लूँ क्या ? अनकही सी....सहस्त्र बाते तुझ संग...अब मैं कर लूं क्या ? तुझमे जीवन सब ढूंढे.... तुझ पर खुद से.... मर लूँ क्या ? तू कदम्ब का दरख़्त जानम.... पत्ते पत्ते... विचर लूँ क्या ? ©Raj choudhary "कुलरिया" #कदम्ब Amita Tiwari vks Siyag Roshani Thakur deepti Pushpvritiya Harlal Mahato Sandip rohilla
अनिता कुमावत
संगीत है कृष्ण और गीत है राधे मुरली की धुन पर गोपियाँ सारी नाचें कदम्ब तले जमुना तीरे शरद की रात सुहानी फैली पूनम की चाँदनी प्रेम मिलन की आस में लीन कान्हा संग रास में मीरा भी इस परम लीला की साक्षी रही होगी न ..... संगीत है कृष्ण और गीत है राधे मुरली की धुन पर गोपियाँ सारी नाचें कदम्ब तले जमुना तीरे शरद की रात सुहानी फैली पूनम की चाँदनी
Pnkj Dixit
💝 कदम्ब तरु की छाँव से , शीतल यमुना कूल। प्रीति पथ पर कमल चला ,लेकर हिय का फूल।। मयंक की चाँदनी से ,निखरा गोरी रूप। कमल प्रेम से सींचता, प्रेम की खिली धूप।। २१/०२/२०२२ 🌷👰💓💝 ...✍️ कमल शर्मा‘बेधड़क’ ©Pnkj Dixit 💝 कदम्ब तरु की छाँव से , शीतल यमुना कूल। प्रीति पथ पर कमल चला ,लेकर हिय का फूल।। मयंक की चाँदनी से ,निखरा गोरी रूप। कमल प्रेम से सी
Pnkj Dixit
👰 प्रीत का गीत 🌷 आँख खोजती है परछाइयों का रूप। सजीव हो उठता है निष्प्राण शरीर। अधर काँपते हैं,फूटते हैं प्रीत के बोल दो आत्माएँ मिलती हैं। सर्वत्र फैलता है ;स्वर्गिक कोहरा। अदृश्य होकर ;एकीकार आत्मा गुनगुनाने लगती है प्रीत का गीत - ओ मन बावरे !ओ स्याम साँवरे! घुल-मिल जाओ हवा और सुगन्ध की तरह। पुकारती हूँ - प्रीत की रीत निभाने आ जाओ मिलने यमुना तट पर कदम्ब वृक्ष के नीचे मैं भी गगरी लेकर सरपट आ~~ती हूँ ... “जीवनराग” से २८/०९/२०१९ 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' ©Pnkj Dixit 👰 प्रीत का गीत 🌷 आँख खोजती है परछाइयों का रूप। सजीव हो उठता है निष्प्राण शरीर। अधर काँपते हैं,फूटते हैं प्रीत के बोल दो आत्माएँ मिलती हैं।
Sagar vm Jangid
अगर मैं रावण होता तो जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् #dashhara #ravan जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकार चण्डताण
manoj kumar jha"Manu"
वो कौन थी? क्रमशः ....(1) का शेषांश कैप्शन में पढ़ें। #yostowrimo में आज कहानी कच्चे आम की। क्रमशः(1) - का शेषांश ..................... उसके बाद मानव आम के बाग में दिखाई देने वाली उस
sukoon
जो राज दफन दिल में खुलकर कहा करो यूँ बैठ अकेला तन्हा तुम चुप न रहा करो मीरा सी राधिका सी इस कृष्ण पे ओ साथी चाहत कदम्ब तले की अब तुम तो महा
Deepak Kanoujia
कृष्ण गमन... सभी प्रकार के विरह फीके मैया यशोदा के कृष्ण विरह के आगे... माता कहां सज्ज हो पाती है पुत्रों से कभी भी बिछोह सहने के, पर सज्ज करती है
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} सुंदर कांड:- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े हो गये। कपिश्रेष्ठ ने वहाँ सरल (चीड़), कनेर, खिले हुए खजूर, प्रियाल (चिरौंजी), मुचुलिन्द (जम्बीरी नीबू), कुटज, केतक (केवड़े), सुगन्धपूर्ण प्रियंगु (पिप्पली), नीप (कदम्ब या अशोक), छितवन, असन, कोविदार तथा खिले हुए करवीर भी देखे। फूलों के भार से लदे हुए तथा मुकुलित (अधखिले), बहुत से वृक्ष भी उन्हें दृष्टिगोचर हुए जिनकी डालियाँ झूम रही थीं और जिन पर नाना प्रकार के पक्षी कलरव कर रहे थे। हनुमान जी धीरे धीरे अद्भुत शोभा से सम्पन्न रावणपालित लंकापुरी के पास पहुँचे। उन्होंने देखा, लंका के चारों ओर कमलों से सुशोभित जलपूरित खाई खुदी हुई है। वह महापुरी सोने की चहारदीवारी से घिरी हुई हैं। श्वेत रंग की ऊँची ऊँची सड़कें उस पुरी को सब ओर से घेरे हुए थीं। सैकड़ों गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ ध्वजा-पताका फहराती हुई उस नगरी की शोभा बढ़ा रही हैं। उस पुरी के उत्तर द्वार पर पहुँच कर वानरवीर हुनमान जी चिन्ता में पड़ गये। लंकापुरी भयानक राक्षसों से उसी प्रकार भरी हुई थी जैसे कि पाताल की भोगवतीपुरी नागों से भरी रहती है। हाथों में शूल और पट्टिश लिये बड़ी बड़ी दाढ़ों वाले बहुत से शूरवीर घोर राक्षस लंकापुरी की रक्षा कर रहे थे। नगर की इस भारी सुरक्षा, उसके चारों ओर समुद्र की खाई और रावण जैसे भयंकर शत्रु को देखकर हनुमान जी विचार करने लगे कि यदि वानर वहाँ तक आ जायें तो भी वे व्यर्थ ही सिद्ध होंगे क्योंकि युद्ध द्वारा देवता भी लंका पर विजय नहीं पा सकते। रावणपालित इस दुर्गम और विषम (संकटपूर्ण) लंका में महाबाहु रामचन्द्र आ भी जायें तो क्या कर पायेंगे? राक्षसों पर साम, दान और भेद की नीति का प्रयोग असम्भव दृष्टिगत हो रहा है। यहाँ तो केवल चार वेगशाली वानरों अर्थात् बालिपुत्र अंगद, नील, मेरी और बुद्धिमान राजा सुग्रीव की ही पहुँच हो सकती है। अच्छा पहले यह तो पता लगाऊँ कि विदेहकुमारी सीता जीवित भी है या नहीं? जनककिशोरी का दर्शन करने के पश्चात् ही मैँ इस विषय में कोई विचार करूँगा। उन्होंने सोचा कि मैं इस रूप से राक्षसों की इस नगरी में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि बहुत से क्रूर और बलवान राक्षस इसकी रक्षा कर रहे हैं। जानकी की खोज करते समय मुझे स्वयं को इन महातेजस्वी, महापराक्रमी और बलवान राक्षसों से गुप्त रखना होगा। अतः मुझे रात्रि के समय ही नगर में प्रवेश करना चाहिये और सीता का अन्वेषण का यह समयोचित कार्य करने के लिये ऐसे रूप का आश्रय लेना चाहिये जो आँख से देखा न जा सके, मात्र कार्य से ही यह अनुमान हो कि कोई आया था। देवताओं और असुरों के लिये भी दुर्जय लंकापुरी को देखकर हनुमान जी बारम्बार लम्बी साँस खींचते हुये विचार करने लगे कि किस उपाय से काम लूँ जिसमें दुरात्मा राक्षसराज रावण की दृष्टि से ओझल रहकर मैं मिथिलेशनन्दिनी जनककिशोरी सीता का दर्शन प्राप्त कर सकूँ। अविवेकपूर्ण कार्य करनेवाले दूत के कारण बने बनाये काम भी बिगड़ जाते हैं। यदि राक्षसों ने मुझे देख लिया तो रावण का अनर्थ चाहने वाले श्री राम का यह कार्य सफल न हो सकेगा। अतः अपने कार्य की सिद्धि के लिये रात में अपने इसी रूप में छोटा सा शरीर धारण करके लंका में प्रवेश करूँगा और घरों में घुसकर जानकी जी की खोज करूँगा। ऐसा निश्चय करके वीर वानर हनुमान सूर्यास्त की प्रतीक्षा करने लगे। सूर्यास्त हो जाने पर रात के समय उन्होंने अपने शरीर को छोटा बना लिया और उछलकर उस रमणीय लंकापुरी में प्रवेश कर गये। ©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey} सुंदर कांड:- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े