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अधम रिश्तो को त्याग कर भव से दूर चले चलो हम सब परम पद की ओर चले...... उमंग में मगन हूं भव की मुधा बातों को दान सील कर बैठा हूं सब को पुलीन कर चले चलो हम सब परम पद की ओर चले..... इस निहार से भव सागर को गृहमणी नैया से पार कर चले चलो हम सब परम पद की ओर चले..... इस विप्र में परमपद के पद पर हçजारों उदम होगे इन सब को अपनी हल्का मे रंगते चले चलो हम सब परम पद की ओर चले.....। :-its_str_official चलो हम सब परम पद की ओर चले..... #life
लेखक ओझा
आप ईश्वर से है ईश्वर आपसे नही इसलिए इतने उच्छृंखल न बने की ईश्वर को ही चुनौती देने लगे।। ©लेखक ओझा परम स्वरूप है
Vipin Dilwarya
मृत्यु का रहस्य कोई नहीं समझ पाया है मृत्यु क्या है इसे कौन बतलाएगा मृत्यु परम सत्य है इसे कौन जुठलाएगा... __ विपिन दिलवारिया मृत्यु परम सत्य है ।
Upendra Sharma
सेवा परमो धर्मा ©Upendra Sharma सेवा ही परम धर्म है
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Raviraaj
प्रेम ,पद का मोहताज नहीं। तुम खानदानी रईस हो,तुम्हारे घर हो।। ©Raviraaj #पद
Ravikesh Kumar Singh
"क्रिया और प्रतिक्रिया परम सत्य है " कुछ लोगों का मानना है की औलाद बड़े होकर नालायक होते हैं, किंतु यह भूल जाते हैं की बच्चे तो बच्चे होते हैं, उसे लायक या फिर नालायक हम माता-पिता ही बनाते हैं, जिस घर में बच्चे को बचपन काल से बच्चों - बच्चों में भिन्नता देखने को मिली हो बचपन से ही बच्चे माता पिता के प्यार से वंचित रहे हो, या फिर यूं कह सकते हैं जिन माता पिता को अपने बच्चे के प्रति समय का अभाव रहा हो, और किसी कारण बस से बच्चे को नजर अंदाज किया गया हो वह बच्चे बड़े होकर उसी चीज को दोहराते हैं, क्योंकि बचपन का दिया हुआ संस्कार बच्चों को बड़े तक याद रहता है और बच्चे भी माता-पिता को कुछ नजर अंदाज करके चलने लगते हैं, इसका अहम कारण आप यह मान सकते हैं जिस बच्चे को माता पिता के प्यार का एहसास हुआ ही ना हो, या फिर हुआ भी हो और बच्चों बच्चों में भिन्नता देखने को मिली हो सामान्यता नसीब ना हो वह बच्चे बड़े होकर भला क्या आपने माता पिता की कद्र करेंगे, बच्चे का मन कोरा कागज होता है ,इसलिए माता-पिता को चाहिए कि खुद वह सू संस्कारी बने और बच्चों के लिए समय निकालें क्योंकि उन्हें पता नहीं कि बच्चे उन्हें फॉलो कर रहे होते हैं बच्चे सबसे ज्यादा नकल अपने माता-पिता के ही करते हैं क्योंकि वह माता पिता के बीच रहते हैं, तो माता-पिता को चाहिए अपने से बड़ों की आदर करें और अपने से बड़ों के लिए समय निकालें और वह अपने माता पिता का सम्मान करें और अपने माता-पिता के लिए समय निकालें तभी उनके बच्चे उनके लिए समय निकाल पाएंगे, क्योंकि बच्चे जो देखते हैं वही सीखते हैं बच्चे की आदत होती है नकल करने की घर के बड़ों को चाहिए बच्चे के लिए भी समय निकालें और बच्चे की हर एक मनोदशा को समझने का प्रयास करें और बचपन काल से ही सू संस्कारी बनाने में अपनी भागीदारी निभाएं तब कहीं जाकर आप इस चीज की अपेक्षा कर सकते हैं कि आपके बच्चे आपके लिए समय निकाल पाएंगे और आपके लिए आप का दिया हुआ प्यार शायद शुध समेत वापस कर पाएंगे और इन सब चीजों को ना करने पर यह कयास लगाना मूर्खता है कि बच्चे बड़े होकर हमारे लिए समय निकालेंगे और बिना हमारे इन सब कर्मों को किए हुए वह हमें इतना प्यार करेंगे इस चीज की अपेक्षा रखना गलत होगा कहा गया है हम सुधरेंगे जग सुधरेगा हम अच्छे होंगे हमारे बच्चे अच्छे होंगे पहले खुद को अच्छे बनके अपने बच्चे को दिखाना होगा फिर उनसे आशाएं अभिलाषाएं लगाना जायज करार दिया जाए अन्यथा कहावतओं में भी है जो हम बोते हैं वही हमें काटना पड़ता है या फिर न्यूटन के सिद्धांतों को भी आप ले सकते हैं प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है और आप यह भी कह सकते हैं रोपे पेड़ बबूल के तो आम कहां से खाए ©Ravikesh Kumar Singh #क्रिया #और #प्रतिक्रिया #परम #सत्य #है
Sanjay Sharma Saras
मना किया था कि मान जाओ दो-चार बूंदों की ही कमी है, भरा घड़ा है जो पाप करके , नियम है कि फूटकर रहेगा। ©® संजय शर्मा 'सरस' पद
SK Poetic
मेरे पिताजी हमेशा मुझसे कहते हैं कि बेटा इंसान के लिए सबसे प्रमुख है उसका कर्तव्य। जीवन में पवित्रता व प्रमाणिकता से बढ़कर कुछ भी नहीं है।अगर कोई मनुष्य किसी पद को ग्रहण करता है तो उसे पद ग्रहण करने से पूर्व यह सोच लेना चाहिए कि मैं उसे सफलतापूर्वक निभा सकूंगा या नहीं या मैं जिस संस्था में पद ग्रहण कर रहा हूं उस संस्था की अनियमितताएं देखकर भी प्रतिष्ठावश या लोभवश उस पद पर जमा रहूंगा। मैं जब भी इस बात पर अमल करता हूं तो मुझे भगवान बुद्ध के वह वचन याद आते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि : - बुद्धम शरणम गच्छामि धर्मं शरणं गच्छामि संघम शरणम गच्छामि अर्थात भगवान बुद्ध कहते हैं कि सबसे पहले मेरी शरण में आओ,फिर धर्म की शरण में आओ,और अंत में संघ की शरण में आओ । बुद्ध का ये मानना था कि अगर आपने ये तीनों कार्य कर लिए तो जीवन में कभी भी आपको मेरी जरूरत नहीं पड़ेगी । मैं भी अपने मन में यही चाहता हूं कि मैं नियम की शरण में पहुंचकर धीरे-धीरे हर चीज करके उसे सौंप दूं जो मेरे बाद उसे सही ढंग से संभालने वह सवारने में सक्षम हो। यह समय मेरे लिए आत्ममंथन का समय है, इसलिए हर कार्य का आत्ममंथन और अपने अनुभव की कसौटी पर खड़ा होकर रहा हूं और अपने पूर्वजों तथा परम पिता परमेश्वर से अंतरमन की गहराइयों से सोच कर कुछ दिन, माह या वर्ष में निष्ठा पूर्वक सब कुछ सौप देने की पवित्र भावना रखता हूं। मैं धर्म के प्रति दृढ़ रहूं,कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहूं । मुझे यह कहने में काफी गौरवान्वित होता है कि मैं अपने पिता के अनुरूप बनना चाहता हूं। परम पिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि वह मुझे शक्ति प्रदान करें। ©S Talks with Shubham Kumar पद से ज्यादा प्रमुख है कर्तव्य #Butterfly