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gaTTubaba
अश्रू भिजल्या पावसाचे पुन्हा नेहमीसारखे दिसेनासे होतील पाणी वाहून जाणार खरे पण दुःख कसे जाणारं ? राहिलेले मनात साचून प्रेमापोटी हवेच्या, देणाऱ्या झाडांना स्पर्श करून वाळलेल्या प्रत्येक पानांमध्ये येईल श्वास भरून .... न लिहिलेली कहाणी कोण जाईल वाचून अर्धी तिच्या सवे अर्धी तिच्या वाचून ....! ©gaTTubaba जेव्हा मिळाली पावसाला वादळी हवा त्याच्यासाठी जीवघेणा नजरेचा खेळ नाही नवा क्षणार्धाची साथ जेव्हा जाईल ती सोडून
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय
Ankur tiwari
तुमको लाया हूं ब्याह कर मैं ना मोल में तुझे खरीदा हैं तुम हो लक्ष्मी मेरे आंगन तुमसे ही घर की मर्यादा हैं तो बात गांठ यह बांध लो तुम सबको संग लेकर चलना हैं थोड़ा सा मैं ढल जाऊंगा थोड़ा तुमको भी ढलना हैं हर बात पर गुस्सा मत करना ना पहुंचाना तुम ठेस प्रिये अक्सर मत कंपेयर करना मेरा घर और परिवेश प्रियें मेरे घर को दोष तुम मत देना चाहें कोई भी कमी रहे थोड़ी बातों को भी सह लेना गर कोई रुड़ली बिहैब करे माना नाजों से पली हो तुम पर बिटिया थी उनकी बहु नही तो वैसा ही सब यहां रहे यह सोच तुम्हारी सही नही बिटिया एक घर की मर्यादा हैं पर बहु से घर मान बढ़े जिम्मेदारी बढ़ जाती हैं जब पिता उसका कन्यादान करें तो उन बढ़ती जिम्मेदारियों का मान तुम्हें रखना होगा मायके और ससुराल का सम्मान तुम्हें रखना होगा मैं वादा करता हूं तुमसे तेरा दामन सारी खुशियां भर दूंगा गर दे दो जो तुम साथ मेरा हर मंजिल फतह मैं कर लूंगा एक बात हमारी तुम सुन लो सौ बात तुम्हारी सुन लूंगा तुम हिम्मत से बस धीर धरो हर सपना पूरा कर दूंगा मैं यकीं दिलाता हूं तुमको कभी बिगड़ेगा ये माहौल नही परिवार के संग जो पल गुजरते है उनका कोई मोल नहीं ©Ankur tiwari तुमको लाया हूं ब्याह कर मैं ना मोल में तुझे खरीदा हैं तुम हो लक्ष्मी मेरे आंगन तुमसे ही घर की मर्यादा हैं तो बात गांठ यह बांध लो तुम सबको
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
चौपाई छन्द :- पीर पराई बनी बिवाई । हमको आज कहाँ ले आयी ।। मन के अपनी बात छुपाऊँ । मन ही मन अब रोता जाऊँ ।। चंचल नैनो की थी माया । जो कंचन तन हमको भाया ।। नागिन बन रजनी है डसती । सखी सहेली हँसती तकती ।। कौन जगत में है अब अपना । यह जग तो है झूठा सपना ।। आस दिखाए राह न पाये । सच को बोल बहुत पछताये ।। यह जग है झूठों की नगरी । बहु तय चमके खाली गगरी ।। देख-देख हमहूँ ललचाये । भागे पीछे हाथ न आये ।। खाया वह मार उसूलो से । औ जग के बड़े रसूलों से ।। पाठ पढ़ाया उतना बोलो । पहले तोलो फिर मुँह खोलो ।। आज न कोई उनसे पूछे । जिनकी लम्बी काली मूछे । स्वेत रंग का पहने कुर्ता । बना रहे पब्लिक का भुर्ता ।। बन नीरज रवि रहा अकाशा । देता जग को नित्य दिलाशा । दो रोटी की मन को आशा । जीवन की इतनी परिभाषा ।। लोभ मोह सुख साधन ढूढ़े । खोजे पथ फिर टेढे़ मेंढ़े । बहुत तीव्र है मन की इच्छा । भरे नहीं यह पाकर भिच्छा ।। राधे-राधे रटते-रटते । कट जायेंगे ये भी रस्ते । अपनी करता राधे रानी । जिनकी है हर बात बखानी । प्रेम अटल है तेरा मेरा । क्या लेना अग्नी का फेरा । जब चाहूँ मैं कर लूँ दर्शन । कहता हर पल यह मेरा मन ।। २४/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चौपाई छन्द :- पीर पराई बनी बिवाई । हमको आज कहाँ ले आयी ।। मन के अपनी बात छुपाऊँ । मन ही मन अब रोता जाऊँ ।। चंचल नैनो की थी माया । जो कंच
Rajesh Arora
.. ......... ©Rajesh Arora इंटेलिजेंट बहु #Nojoto #nojotohindi #Shayari #Comedy