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Neel
heart मिटा देती बहाकर आँसुओं को, दर्द दिल से मैं, तू कहकर बेवफ़ा मुझको, चला जाता तो अच्छा था। तू रख देता अगर माथे पर मेरे, हाथ अपना तो, बहानों से ही मुझको यूँ , न बहलाता तो अच्छा था। नहीं भाता ये ज़ालिम हिचकियों का, शोर मुझको अब, तू अपने दिल से मुझको ही, मिटा जाता तो अच्छा था। शिकायत है नहीं तुझसे, शिकायत मुझको.. मुझसे है, तू हासिल है नहीं मुझको, बता जाता तो अच्छा था। तकती हूँ आज भी मैं रास्तों को, आस में तेरी, तू आने का कोई रस्ता, दिखा जाता तो अच्छा था। न खोया कुछ, बहुत पाया, बना "माणिक" गया मुझको, मेरी सुनकर तू जाता न.. "निभा जाता" तो अच्छा था। 🍁🍁🍁 ©Neel माणिक 🍁
Bhaskar भास्कर
वो पत्थर का टुकडा जो आज माणिक बन बैठा है । जेवरो कि शान और आकर्षण मे जुडा है । हर टुकडा देख जल रहा और कहे क्या किस्मत पाई है तुने ! पर इस किस्मत की किमत उसने कहाँ–कहाँ और किस-किस से पिस कर पाई है , ये ब्यान तो शायद वो खुद भी ना कर पाएगा । @भास्कर #अंतरव्यथा माणिक
writer anil lodhi
घर के आंगन के दो अनमोल रत्न... बहन त्याग की परिभाषा है तो, भाई संघर्ष की मूरत है। ©writer anil foujdar #अनमोल रत्न #संघर्ष की मूरत
(Musafir)
रौशनी की कीमत दर्द मुसाफ़िर का, रस्ते का हाहाकार, एक सहारा सुराही का, एक सहारा प्यार l माया मंज़िल कर रही, अदृष्य चीख हज़ार बेचने हैं खिलौने, खेल खिलाये संसार l पोंछ पसीना बढ़ा कहीं जो, लगे पैर अंगार, रुतबे से छाया मिली, न्याय से प्रहार l रौशनी की कीमत , बिजली के नंगे तार l कोमलता मन की वस्तु, सपने पहाड़ प्रकार l ©Hemant Soni(Musafir) # रौशनी की कीमत
बागी विनय
जिसने खाये है अपनो से धोखे उससे पूछो विश्वास की कीमत !! विश्वास की कीमत !!
Amit chauhan
क़ीमत काश्मीर की इस खूबसूरत काश्मीर की कीमत क्या बताएं इसके लिए अपने लालों को खो देतीं हैं माएँ बड़ा ही महंगा कीमत है इस सुंदर से काश्मीर की वीरों के लहू से सींची जातीं हैं इसकी सीमाएँ दर्द तो उन वीर सपूतों को भी होता होगा कई जो अमर हो जातें हैं अपने सर को उठाये इस खूबसूरत काश्मीर की कीमत क्या बताएं इसके लिए अपने लालों को खो देतीं हैं माएँ #NojotoQuote कीमत काश्मीर की...
Rafik
कीमत तो खूब बढ़ गई दिल्ली में धान की, पर विदा ना हो सकी बेटी किसान की. वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे, कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख. हमारी रहनुमाओ में भला इतना गुमां कैसे, हमारे जागने से, नींद में उनकी खलल कैसे. इस नदी की धार में ठंडी हवा तो आती हैं, नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो हैं. आत्महत्या की चिता पर देखकर किसान को नींद कैसे आ रही हैं देश के प्रधान को. सियासत इस कदर अवाम पे अहसान करती है, पहले आँखे छीन लेती है फिर चश्में दान करती है. जज़्बात की कीमत