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प्रभाकर अजय शिवा सेन
अपने आपको परिभाषित कीजिए? ©प्रभाकर अजय शिवा सेन अपने आपको परिभाषित कीजिए? #fullmoon
प्रभाकर अजय शिवा सेन
अब हमको परिभाषित कीजिए? ©प्रभाकर अजय शिवा सेन अब हमको परिभाषित कीजिए #melting
Ramjaane Solanki
हमारे दरमियान जो फासले है कभी महफ़िल मै है कभी तन्हाई से गुजर रहे हैं ,कम्बख्त ईश्क़ का सिला जो मिला है कि अपनी ख़ुदाई भी कब्जे मै है ख़ुदाई कब्जे मै है
Ajay Daanav
हृदय से उपजे विचार हो तुम शब्दों का मेरे श्रृंगार हो तुम करती हुई झंकृत मन-वीणा सातों सुरों की झनकार हो तुम हूं मैं कविता छंदों में गढ़ी कविता का मेरी सार हो तुम हृदय से उपजे विचार हो तुम प्यार को परिभाषित नहीं किया जा सकता।
Akash Chaudhary
प्रेम को परिभाषित नहीं करते पात गन्दी रेत से लथपथ वो पत्ते जो कभी वृक्ष के वक्ष से कलाएं करते थे, कितनी ही चिड़िया तुमको छूकर गुजरी, मैं तुम पर आज ढूंढने बैठ गया उनके पैरों के निशान, क्या मन नहीं है तुम्हारा तुम उनको परिभाषित करो, क्या नहीं बताना चाहते मुझे अपने प्रेम के विषय में, तुम्हारी व्यथा और प्रेम से परिचित हूं मैं समझ रहा हूं पात तुम्हे मैं, तुम्हे पुरानी चिड़िया की याद आयी होगी, चलो मैं अपने दरवाजे से इंतजार में हूं जब चाहना तब दास्तां सुनाना......, तुम्हारा मौन समझता हूं मैं, तुम बता रहे हो शायद मुझे प्रेम कभी शब्दों से नहीं किया जाता वो होता है बस ,बस होता है।। ©Akash Chaudhary प्रेम को परिभाषित नही किया जाता।।❤️
Shashank मणि Yadava "सनम"
भले बड़े बन जाओ यारों, लेकिन माँ को याद रखो।। मंदिर जाने से बेहतर है, माँ को अपने पास रखो।। माँ के प्यार, दुआ से बढ़कर, न कोई भगवान है।। जिसने माँ को मान दिया, वो सबसे सुखी इंसान है।। प्रभु पूजा की ख्वाहिश यारों, जब भी मन में लाता हूँ।। सच कहता हूँ यारों तब, मंदिर मस्जिद न जाता हूँ।। अपनी माँ की ममता के, आँचल में मैं सो जाता हूँ।। ©Shashank मणि Yadava "सनम" #Mother's love,,,,, माँ को परिभाषित करती हुई पंक्तियाँ
Ek villain
स्वतंत्र एवं सर्कुलर भारत की एक अनसुलझी पहेली यह भी है कि आखिर हिंदू धार्मिक स्थलों के प्रबंध में सरकार का भैरव का टोंक हस्तक्षेप क्यों जा रही है यह मुद्दा दशकों से उबल रहा है लेकिन नेहरू वादी और मार्क्सवादी इसे दबा रहे हैं कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज मेमोरी की एक व्यवहारिक कदम से यह मुद्दा फिर से केंद्र में आ गया है 2 महीने हिंदू मंदिर को राज्य सरकार के नियंत्रण से स्वतंत्र करने संबंधी पहल की है जवाहरलाल नेहरू के दौर से ही कांग्रेस देश में पंथ निरपेक्षता की सादगी स्वरूप की सोच रही है नेहरू ने विभिन्न नियमों और व्यवस्थाओं के माध्यम से देश के हिंदू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण सुनिश्चित किया है जबकि यह संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध इसी वर्ग मूल संविधान के प्रस्तावना में समाजवाद का उल्लेख नहीं था जैसे इंदिरा गांधी सरकार द्वारा आपातकाल के दौरान 1 संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया प्रस्तावना में इधर संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में भी परम तक निरपेक्ष आदेश की झलक देखी जा सकती है अनुच्छेद 25 अंत करण और धर्म को अवैध रूप से माना आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्र प्रदान करता है अनुच्छेद 26 हार्मिक कार्य के प्रबंध की स्वतंत्रता सुनिश्चित कर आता है इसी का असर लेकर मुस्लिम ईसाई और सिख अन्य धार्मिक समुदायों ने अपने धार्मिक स्थानों के प्रबंध में इस संवैधानिक गारंटी का भरपूर इस्तेमाल किया यह संस्था सरकारी नियंत्रण के दायरे से बाहर है हालांकि हिंदू के मामले में ऐसा नहीं रहा स्वतंत्र के बाद से हिंदुओं के धार्मिक मामले में हस्तक्षेप सरकारी कोशिशें होती रही ©Ek villain # सरकारी कब्जे से मुक्त होते मंदिर #soulmate