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- Arun Aarya
तू ग़ैर की जान महसूस होती है , मुझें तू अनजान महसूस होती है ! पहले तेरे पहलू में आराम आता था ,, अब तो हर बार थकान महसूस होती है..!! - अरुन आर्या ©- Arun Aarya #Hum #थकान
Parasram Arora
White मेरा वो गमगीन दिन बह गया आंसुओ क़ी बाड़ मे और ज़ब रात हुई तों मै सोचने लगा आज का दिन इतना लम्बा कैसे हुआ? जो काटे नही क्तट रहा था ©Parasram Arora गमगीन दिन
गमगीन दिन
read moreNurul Shabd
White तेरा होना ही मेरी दुआओं का सबब था, अब तेरे बिना ये जिंदगी सिर्फ एक वजह थी। ©Nurul Shabd #love_shayari #तेरा #होना
हिमांशु Kulshreshtha
म़ै.... तुमसे प्रेम करना छोड़ दूँगा उस दिन, जिस दिन, सूर्य परिक्रमा शुरु करेगा पृथ्वी की, जिस दिन, आग लग उठेगी बर्फ़ में, जिस दिन कवियों के बिना लिखी जायेंगी कवितायें बस, उसी दिन तुम्हारे प्रति मेरी भावनायें शून्य हो जायेंगी और मैं, विलीन हो जाऊँगा शून्य में उस दिन....!!!! ©हिमांशु Kulshreshtha उस दिन...
उस दिन...
read moreranjit Kumar rathour
अब नहीं आओगी न फिर कभी बस इतना ही बोल पाया था जाओ खुश रहना अपना ख्याल रखना अटकी सी थी आवाज मेरी इतना कह कर उसे भर लिया था अपनी बांहों मे ये सब कुछ अचानक से हुआ आवाज रुआसी थी सीने से लगकर बोली आउंगी न मानो ढाडस दे रही थी उस वक्त मै कितना छोटा हो गया था वो छोटी होकर भी बड़ी भींच लिया था इस कदर बांहों मे जैसे ये अखिरी हो पता है अब तो तमाम उम्र यादो संग गुजारनी है उसके लेकिन हा जाते जाते कहा था भूलाना मेरी गलतियों को लेकिन भूलना गलतियों को सिर्फ हमें नहीं खुश रहना अपना ख्याल रखना ©ranjit Kumar rathour आखिरी दिन
आखिरी दिन
read moreविजय कुमार सुतेड़ी
White द्वंद लिए सौ मन मंदिर में मुग्ध हंसी भावों को लेकर जो चलते निष्काम जगत में चैतन्य खोज ही लाते हैं। मिथ्या और कल्पित इस जग में वो ही अभय कहलाते हैं। संशय और बंधन से उठकर काम, लोभ और मोह कुचलकर कलि के क्लिष्ट कालचक्र में भी जो धरम ध्वजा लहराते हैं। मिथ्या और कल्पित इस जग में वो ही अभय कहलाते हैं। घोर दंश और प्रतिकारों में जो वैरागी बने सहज मन इंद्रजीत सी आभा लेकर चिरंजीव बन जाते है। मिथ्या और कल्पित इस जग में वो ही अभय कहलाते हैं। लौकिक आडम्बर की जड़ता भाव शून्य में अर्पण करते जो श्लाघा की क्षुधा भुलाकर परहित मंगल गाते है। मिथ्या और कल्पित इस जग में वो ही अभय कहलाते हैं। जीव तत्व का दर्शन शिव में जिन्हें मिला है अंतर्मन में जगत बोध और अनुभव पाकर जो तारतम्य तर जाते है। मिथ्या और कल्पित इस जग में वो ही अभय कहलाते हैं।। ©विजय कुमार सुतेड़ी अभय होना
अभय होना
read moreranjit Kumar rathour
और आज़ आखिरी दिन है कॉलेज का फिर शायद ही कोई मौका मिले कॉलेज आने का वैसे भी कौन आना चाहता है यहाँ सारे खड़ूस है सिवाय आपके सो आता रहा अब नहीं आना ये शब्द पता नहीं डरावने थे मगर पहली दफा एक आवाज़ निकली आना किसी बहाने बोल नहीं पाया वो समझती बहुत थी बोली आऊंगा न मन रखने के लिए बस इतने ही दिनों का साथ था शुक्रिया तुम्हारा तुमने जीवन मे एक नया पन्ना जोड़ा ©ranjit Kumar rathour आखिरी दिन
आखिरी दिन
read moreRajendrakumar Jagannath Bhosale
प्रबोधन गीत स्त्री दास्यत्व झुगारून ज्ञान दीप चेतवून शिक्षणाची दोरी ओढली शाळा मुलींची काढली ll धृ ll वंचित बहुजनांसाठी घेतले ज्ञान महिला शिक्षिका प्रथम बहुमान मुलींसाठी शाळा काढली महात्मा फुल्यांची सावली ll १ll बावनकशी काव्यलेखन दीनदलितांसाठी वेचले कण विधवासाठी माय साऊ धावली सत्यधर्म तत्वे आचरलीll २ll विसरू नका तिच्या त्यागाला सामाजिक कार्य कर्तृत्वाला स्वाभिमानी ज्ञानज्योती दिली स्त्रीमुक्तीची ठिणगी सुलगली ll ३ll ©Rajendrakumar Jagannath Bhosale बालक दिन
बालक दिन
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