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Divya Thakur
कैसे एक घटना पूरे घटनाक्रम को जन्म देती है और कई घटनाक्रमों के समूह एक पूरे जीवन को इच्छा और कर्म कैसे सारा खेल रच देते हैं! ©Divya Thakur #विस्मय #प्रारब्ध #जीवन
Juhi Grover
मैं कभी अर्द्ध विराम या फिर कभी अल्प विराम ही बन पाई थी, तेरे आने के बाद पूर्ण विराम हो गई, और..... और..... ..... ..... तेरे जाने के बाद प्रश्न चिन्ह बन कर रह गई, अब न ही अर्द्ध विराम या फिर अल्प विराम ही बन सकती हूँ, और..... और..... ..... ..... पूर्ण विराम बन कर फिर से प्रश्न चिन्ह नहीं बनना है, प्रायः विस्मयादिबोधक चिन्ह बन कर उद्धरण चिन्ह में आने का भी शायद अवसर मिल ही जाए, मग़र..... ..... ..... निर्देशक चिन्ह बन कर किसी के संवाद का विषय बनना नहीं चाहती मैं। 13.09.2021 #विराम #अर्द्धविराम #अल्पविराम #पूर्णविराम #विस्मयादिबोधक #उद्धरण
Umrain Ahmed (Akhtar)
हर जगह हासिल मुझे रुसवाईयाँ हुई... शायद मेरे एजाज़ का क़ायल नहीं कोई एजाज़ = चमत्कार , विस्मय क़ायल= स्वीकारना , मानना
Deepak Mubarakpuri
छाती चौड़ी हुई कंधे ऊंचे हुए , पैर जब पड़े जिम्मेदारी तले । विस्मय हुआ पुरानी बातों का , हर किसी की अपेक्षा हम धीरे चले ।। ©Deepak Mubarakpuri #Shadow छाती चौड़ी हुई कंधे ऊंचे हुए , पैर जब पड़े जिम्मेदारी तले । विस्मय हुआ पुरानी बातों का , हर किसी की अपेक्षा हम धीरे चले ।।
Moin Khan
विस्मयादिबोधक सी आवाज में प्रश्नवाचक सी कही गई बात सिर्फ पल्ला झाड़ने जैसा प्रतीत होता है , जैसे हमने तो कहा था 🙀 ताकि आगे कोई बात न बने। ©Moin Khan विस्मयादिबोधक सी आवाज में प्रश्नवाचक सी कही गई बात सिर्फ पल्ला झाड़ने जैसा प्रतीत होता है , जैसे हमने तो कहा था 🙀 ताकि आगे कोई बात न बने।
Abhay Bhadouriya
मेरे लिए प्रेम कभी भी नहीं बन पाया वर्णमाला का कोई अक्षर या व्यंजन वो तो रहा जीवन भर मात्र एक विस्मयादिबोधक चिन्ह ! -अभय भदौरिया
Shalini Sahu
कभी-कभी दिल करता है इन हवाओं से गुफ़्तगू का, ज़िन्दगी जीने का अंदाज कुछ उनसे भी सीखने का.. वो तो मेरे और आप की तरह हिन्दू-मुस्लिम नहीं करती, अमीर-गरीब के हिसाब का भेदभाव भी नहीं रखती .. कितना पाक है ना उन का मन, सब बराबर है उन के लिए, हम मनुज ही नादान है ऊंच-नीच, अमीर-गरीब की बातें लिए.. सब से मिलती है वो ख़ुशी से सुकूँ को ख़ुद में घोल कर, "मिटा दो सब भेदभाव" चली जाती है ऐसा बोल कर.. ईश्वर हर पल सन्देश देता है प्रकृति को बना कर जरिया, हम स्वार्थी समझ ही नहीं पाते उसका निःस्वार्थ नजरिया.. पेड़-पौधे भी हर पल बिना किसी स्वार्थ के हमें सब कुछ प्रदान करते हैं.. ये खूबसूरत अदृश्य हवाएं बिन भेदभाव के हम सब को स्पर्श कर सुकून देती है