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Ashutosh Mishra
गुरु ही ब्रह्मा, गुरु ही विष्णु, गुरू ही गंगा जमुना है। बिना गरू जीवन जड़ है, गुरु की महिमा अपरम्पार। गरू ज्ञान दे सरल करें जीवन,करें,,,, भगवान से मिलने की राह आसान। संसार रूपी सागर में ज्ञान का दीप जला कर, सदमार्ग, परमार्थ,का ज्ञान दे, वैकुंठ की राह करें आसान। आज शिक्षक दिवस के अवसर पर आप सभी को शुभकामनाएं और बधाई। अल्फ़ाज़ मेरे ✍️🙏🏻🙏🏻 ©Ashutosh Mishra #शिक्षकदिवस हम सब जीवन भर किसी ना किसी से अक्सर कुछ ना कुछ सीखते हैं। फिर चाहे वो हमारी पहली गुरु माता पिता हो या हमें शिक्षा प्रदान करने व
Divyanshu Pathak
इसके बाद मां- बाप जो कुछ भी सिखाते हैं उसको पहले अपने अनुभवों से काम लेने या नाप-तोलने का आधार बना लेते हैं। जब तक एक पक्षीय जीवन दिशा रहती है वही कन्या काल है। लड़कियां संवेदनाओं में अधिक गहरी होती हैं। अत: प्रकृति उनको जल्दी जीवन-संग्राम में उतार देती है। लड़कों को परिपक्व होने में अधिक समय लगता है एक लड़की- एक लड़के की तुलना में अधिक संकल्पवान होती है जब कि लड़का विकल्पों में अधिक भटकता है। कभी भी माया के झपट्टे में आ सकता है। जैसे-जैसे लड़कियों में पौरूष बढ़ रहा है वे भी झपट्टों का शिकार होने लगी हैं। 💕💞🐇शुभरात्री🐇🐇💕💞💞 ☕ घर के बदलते वातावरण,स्वतंत्रता की जगह स्वच्छन्दता की मां- बाप के मन की छटपटाहट,झूठ के अनेक मुखौटे भी अपना प्रभाव जमाते ह
Mahima Jain
•| स्कूल के "वो" दिन फिर वापस नहीं मिलते |• ( कविता कैप्शन में।) \\ स्कूल के वो दिन फिर वापस नहीं मिलते // जब मौका था तब जेल समझा, आज़ाद हुए तब दुनिया का खेल समझा, जिस तरह मुरझाए फूल फिर नहीं खिलते, उसी त
Vishw Shanti Sanatan Seva Trust
महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के विचार और संक्षिप्त जीवन परिचय महामना मदन मोहन मालवीय भारतीय इतिहास के महान प्रणेता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, हिंदू महासभा के अध्यक्ष, हिंदू समाज के महान सुधारक थे। वो शिक्षा के क्षेत्र में किये गए अपने योगदान के लिए भारतीय इतिहास में अमर हैं। इन्होंने सनातन धर्म और संस्कृति के संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रेसिडेंट भी रहे थे,और उनका महत्वपूर्ण कार्य बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की स्थापना करना था। भारत में स्काउटिंग की शुरुआत उन्होंने ही की थी। मालवीय जी का जन्म 25 दिसंबर 1861 ईo को ब्रिटिश भारत के प्रयाग में हुआ था। इनके पूर्वज मध्य भारत के मालवा से आकर यहाँ बसे थे इसीलिए ये मालवीय कहलाते थे। इनके पिता का नाम ब्रजनाथ था जो कि अपने समय के संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और और कथा सुना कर अपनी आजीविका चलाया करते थे। इनकी माता का नाम मूनदेवी था। ये अपने माता-पिता की सात सन्तानों में से 5 वें थे। उन्होंने पांच साल की उम्र में अपनी शिक्षा संस्कृत में शुरू की थी, वो अपनी प्राथमिक शिक्षा को पूरा करने के लिए पंडित हरदेव के धर्म ज्ञानोपदेश पथशाला में गए, उसके बाद विधान वर्धिनी सभा द्वारा चलाए जाने वाले स्कूल में दाखिला लिया। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद जिला स्कूल में दाखिला लिया जो कि अंग्रेजी माध्यम का स्कूल था जहां उन्होंने कविताए लिखना शुरू किया, यही कविताएँ बाद में कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई। उन्होंने एक उपनाम ‘मकरंद’ के साथ कविताएँ लिखी थी, जिन्हें बाद में ‘हरिश्चंद्र चंद्रिका’ पत्रिका में 1883-84 के दौरान प्रकाशित किया गया था। इसके अलावा उनके समकालीन और धार्मिक विषयों पर उनके लेख ‘हिंदी प्रदीपा’ में प्रकाशित हुए थे। उनके पिता संस्कृत में विद्वान और कथावचक थे, वो ‘श्रीमद् भागवत’ की कहानियों को पढ़ा करते थे, यही कारण था कि मदनमोहन भी उनकी तरह कथावचक बनना चाहते थे। वर्ष 1879 में, उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय (मुइर सेंट्रल कॉलेज) से अपना मैट्रिकुलेट का एक्जाम पास किया और इसके बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय से 1884 ईo में इन्होंने स्नातक ( बीo एo ) की उपाधि प्राप्त की। उनका परिवार आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं था, जिसे देखकर ही हैरिसन कॉलेज’ के प्रधानाचार्य ने उन्हें मासिक छात्रवृत्ति के साथ मदद की थी। अपनी स्नातक की परीक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने शिक्षक की नौकरी करना प्रारम्भ किया। ये स्नातक के बाद स्नातकोत्तर की पढ़ाई करना चाहते थे, परन्तु इनके घर की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी इसलिए ऐसा नहीं कर पाए। वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने पहले जिला न्यायालय और बाद में उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस शुरू की। औरस्वतंत्रता संघर्ष के दौरान इन्होने ही उदारवादियों और राष्ट्रवादियों के बीच सेतु का काम किया। रौलेट बिल के विरोध में लगातार साढ़े चार घंटे और अपराध निर्मोचन के बिल पर लगातार 5 घंटे तक दिए गए अपने भाषण के लिए वे आज भी विख्यात हैं। 50 वर्षों तक कांग्रेस में सक्रिय रहने वाले मालवीय जी ने राजा रामपाल सिंह के हिन्दी अंग्रेजी समाचार पत्र हिंदुस्तान का 1887 ईo से संपादन भी किया था। इसके बाद इंडियन ओपीनियन के संपादन में भी सहयोग किया। 1909 ईo में सरकार समर्थक समाचार पत्र पॉयनियर के समकक्ष दैनिक पत्र लीडर निकाला। 1924 ईo में दिल्ली आये और हिंदुस्तान टाइम्स को सुव्यवस्थित किया। वे चार बार कांग्रेस के सभापति भी निर्वाचित हुए। 1930 ईo के सविनय अवज्ञा आंदोलन में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 1931 ईo के द्वितीय गोलमेज सम्मलेन में भाग लिया। देश के लिए इनका सबसे बड़ा योगदान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ( B.H.U. ) के रूप में जाना जाता है। 1937 ईo में राजनीति से संन्यास ले लिया और पूर्ण रूप से सामाजिक मुद्दों की ओर ध्यान केंद्रित कर लिया। सनातन धर्म में अपार श्रद्धा रखने वाले भारत के महान सपूत मालवीय जी ने दलितों के मंदिर में प्रवेश निषेध का पुरजोर विरोध किया और देश भर में इस बुराई के खिलाफ आंदोलन चलाया। इन्होंने महिलाओं की शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह का समर्थन और बाल विवाह तथा छुआ-छूत जैसी सामाजिक बुराइयों का विरोध किया। देश की आजादी मिलने के एक वर्ष पूर्व ही 12 नवम्बर 1946 ईo को 85 वर्ष की अवस्था में इनका स्वर्गवास हो गया। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य : मदन मोहन मालवीय जातिवादी विचारधारा की घोर विरोधी थे, इस कारण ही उन्हें ब्राह्मिण जाति से निष्कासित भी कर दिया गया था। हरिद्वार के हर की पौड़ी में गंगा आरती की शुरुआत इन्होंने ही की। उन्होंने मंदिरों में होने वाले सामजिक भेदभाव का ना केवल विरोध किया बल्कि रथ यात्रा के दिन कालाराम मंदिर में हिन्दू दलितों का प्रवेश, और गोदावरी में मन्त्रों के जाप के साथ पवित्र स्नान भी करवाया। इन्हे महात्मा गांधी ने महामना की उपाधि से सम्मानित किया था, वो पंडितजी को अपने बड़े भाई के जैसा सम्मान देते थे। गांधीजी ने उन्हें “मेकर्स ऑफ़ इंडिया” भी कहा था। भारत के दुसरे राष्ट्रपति डॉक्टर राधकृष्णन ने उनके निस्वार्थ काम के लिए करम योगी का टाईटल भी दिया था। पंडित जवाहर लाल नेहरु का कहना था कि वो एक महान आत्मा हैं, जिन्होंने नवीन भारत के राष्ट्रवाद की नींव रखी हैं। उन्होंने ब्रिटिश सरकार को इस बात के लिए भी मनाया था कि न्यायालय में देवनागरी लिपि का उपयोग किया जाए, जिसे उनकी बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता हैं। मालवीय जी कट्टर हिन्दू थे, और गौ-हत्या के विरोधी थे। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए मालवीयजी ने फंड की व्यवस्था के लिए निजाम के दरबार में भी गये जहां निजाम ने उनका अपमान करते हुए उन पर जुता फैंक दिया, मालवीयजी शांत रहे और उन्होंने उस जुते को बाहर ले जाकर नीलामी में लगा दिया। 1918 में कुंभ मेले, बाढ़, भूकंप, और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के लिए अखिल भारतीय सेवा समिति ने कई जगह अपने केंद्र स्थापित किए। इसी वर्ष इसका सब यूनिट मॉडल जैसा बॉय स्काउट शुरू हुआ, इसकी महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि इसमें ब्रिटिश नेशनल एंथम की जगह वन्दे मातरम गाया जाता था। मालवीय जी ने गांधीजी को कहा था कि देश की विभाजन को स्वीकार ना करे, लेकिन उन्होंने मालवीयजी की बात को सुना नहीं। 1918 में जब वो इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रेसिडेंट थे तब उन्होंने सत्यमेव जयते का नारा दिया था। सम्मान एवं पुरस्कार : इनके जन्म दिवस से एक दिन पूर्व 24 दिसंबर 2014 ईo को इन्हे देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से मरणोपरांत सम्मानित किया गया। ©Vishw Shanti Sanatan Seva Trust महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के विचार और संक्षिप्त जीवन परिचय महामना मदन मोहन मालवीय भारतीय इतिहास के महान प्रणेता, स्वतंत्रता संग्राम सेनान
Shikha Mishra
*जवाहर नवोदय विद्यालय* मेरा स्कूल (संस्मरण) Read in caption 👇 #yqbaba #yqdidi #smquote #मेरा_स्कूल #संस्मरण #hostellife #schoolmemories मुझे याद है वो दिसम्बर 2012 की सर्द शाम, जब पापा मुझसे मिलने मेरे
Sumit Kumar
सभी "आचार्य जी"और "आचार्या जी" को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.. ©Sumit Kumar S.V.M. स्कूल वाले समझ सकते है..
Shrashti Raghu
आज भी याद है मुझे वो स्कूल वाली मस्ती हम लेक्चर के टाइम मै लांच किया करते थे और टीचर के देखने पर बहने बनाया करते थे आज भी याद है मुझे वो स्कूल वाले दिन ©shayari ki safari # आज भी याद है मुझे वो स्कूल वाले दिन
Kavi Shivraj Singh
Chagan Prajapat
याद स्कूल कि सबको आती हैं पर कुछ बाते दिल मै रह जाती है कौन याद नही करता अपने बचपन को पर कुछ यादे है जो बस सिमट के रह जाती हैं 😟😟 Insta. @Chhagan Prajapat #स्कूल