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Ram
Pushpvritiya
अश्रु सुनियो धीरज धरना, प्रेम कठिन पर पार उतरना | पग-पग काँटें हैं यह माना, मेल विरह का ताना-बाना || हर ले मन की दुविधा सारी, आशा ज्योत जलाकर न्यारी | बाँधी है जब नेहा ऐसी , भय शंका तब बोलो कैसी || @पुष्पवृतियाँ . . ©Pushpvritiya #चौपाई अश्रु सुनियो धीरज धरना, प्रेम कठिन पर पार उतरना | पग-पग काँटें हैं यह माना, मेल विरह का ताना-बाना ||
Er. Guddu Nishad Gk
Shivkumar
मां का सप्तम रूप है मां कालरात्रि का, क्षण में करती नाश दुष्ट,दैत्य, दानव का। स्मरणमात्र से भाग जाते भूत, प्रेत, निशाचर, उज्जैन से दूर हो जाते हैं पल में ग्रह-बाधा हर। उपवासकों को नहीं भय अग्नि, जल, जंतु का, नहीं होता है भय कभी भी रात्रि या शत्रु का। नाम की तरह रुप भी है अंधकार-सा काला, त्रिनेत्रधारी है माताजी सवारी है गर्दभ का। दाहिना हाथ ऊपर उठा रहता है वरमुद्रा में, बाया हाथ नीचे की ओर है अभय मुद्रा में। तीसरे हाथ में मां के है खड्ग, चौथे में लौहशस्त्र, विशेष पूजा रात्रि में मां की करते हैं तंत्र साधक। शुभकारी है दूसरा नाम मां कालरात्रि का, शुभ करने वाली है मां, है सबकी मान्यता। गुड़हल का पुष्प है प्रिय, गुड़ का भोग लगाते हैं, कपूर या दीपक जलाकर मां की आरती करते हैं। ©Shivkumar #navratri #navaratri2024 #navratri2025 #navratri2026 #navaratri #नवरात्रि मां का सप्तम रूप है मां #कालरात्रि का, क्षण में करती #नाश दु
AJAY NAYAK
White सांस को भी एक सांस मिला होगा मन अनोखे भय से कांप गया होगा बड़ा ही, खूबसूरत भरा वो मंजर रहा होगा मौत टक से छूकर बगल से निकल गया होगा –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #Free #Life सांस को भी एक सांस मिला होगा मन अनोखे भय से कांप गया होगा बड़ा ही, खूबसूरत भरा वो मंजर रहा होगा मौत टक से छूकर बगल से निकल
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा जब भी तुम आहार लो , ले लो राधा नाम । रोम-रोम फिर धन्य हो , पाकर राधेश्याम ।। कभी रसोई में नहीं ,करना गलत विचार । भोजन दूषित बन पके , उपजे हृदय विकार ।। प्रभु का चिंतन जो करे , सुखी रखे परिवार । आपस में सदभाव हो , सदा बढ़े मनुहार ।। प्रभु चिंतन में व्याधि जो , बनते सदा कपूत । त्याग उसे आगे बढ़े , वह है रावण दूत ।। प्रभु की महिमा देखिए , हर जीव विद्यमान् । मानव की मति है मरी , चखता उसे जुबान ।। पारण करना छोडिए , विषमय मान पदार्थ । उससे बस उत्पन्न हो , मन में अनुचित अर्थ ।। २९/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा जब भी तुम आहार लो , ले लो राधा नाम । रोम-रोम फिर धन्य हो , पाकर राधेश्याम ।। कभी रसोई में नहीं ,करना गलत विचार । भोजन दूषित बन पके ,
Yogi Sonu
इस जगत में मृत्यु के सिवा कुछ भी सत्य नही।। हम लड़ते भी है तो खुद से हर जगह आप ही का दर्पण झलक रहा है आप ही हर जगह मौजूद है अपने ही प्रतिबिंब से भय ।। खुद को अलग मानने की भूल मूर्खता है क्योंकि जो हम है वही सब है ।। एक बार की बात है एक बार एक कुत्ता महल में चला गया और खुद के ही दर्पण से ही लड़ने लगा वही हमारा हाल है ।। योग परमात्मा तक ले जाने वाली एक सीढ़ी है।। ©Yogi Sonu इस जगत में मृत्यु के सिवा कुछ भी सत्य नही।। हम लड़ते भी है तो खुद से हर जगह आप ही का दर्पण झलक रहा है आप ही हर जगह मौजूद है अपने ही प्रतिबि