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sk chodhry
जिन्होंने मुझे उंगली पकड़कर रास्ता दिखाया आज उनके बुढ़ापे की लाठी ना बनू तो मुझसे बड़ा बेवकूफ और कोई नहीं ©sk sahil अपने बड़े बुजुर्गों का मान सम्मान रखो
Madhu Maurya
कभी घर के उस कोने को देखा है? जो अक्सर एक कोने में ही बैठा मिलेगा, उन्हें जीवन के हर उस वक्त का हिसाब पता होता है,जबकि वो कभी स्कूल गये भी नहीं होते हैं, उन्हें भविष्य का "भ" भी पता नहीं होता था,फिर भी वो उसके लिए साथ होने का वादा करते थे, आज के समय में अक्सर लोग खुद को उनसे बेहतर कहते हो, पर ये बात अब लोग भुलते जा रहे हैं कि 'वो है तो हम हैं'। एक सम्मान बुजुर्गों का और उनके तजुर्बे को।
Arpita Roy
हिंदी भाषा ©Arpita Roy हिन्दी का सम्मान करो #कविता #Nojoto
Ratn Sheel
यात्री गढ़ जरा ध्यान दे. अपने बुजुर्गों को सम्मान दे..।। यात्री गढ़ जरा ध्यान दे. अपने बुजुर्गों को सम्मान दे..।। यात्री गढ़ जरा ध्यान दे. अपने बुजुर्गों को सम्मान दे..।।
Aastha Kukreja
कविता:-नारी का सम्मान: एक सवाल..!! जिसके कपडे तूने यूँ सरेआम ! बेरहमी से उतार के फेंक दिए ! ए ज़ालिम बेख़ौफ़ दरिंदे तू ! क्यों उसके बाद तूने ज़िंदा ! ये सारे दिन गुजार दिए ! जिस माँ ने तुझको जन्म दिया ! उसकी ममता को भी रौंद दिया ! अपनी बेटी और बहन की ! इज़्ज़त को झकझोर दिया ! अरे! जानवर भी अच्छा तुझसे ! तूने तो उसको पीछे छोड़ दिया ! क्यों तूने उसके बदन पे ! अपने गंदे हाथ फेर दिए ! ए हैवान, ए शैतान ! क्यों उसके कपडे तूने यूँ सरेआम ! बेरहमी से उतार के फेंक दिए ! जा कालिख तू पुतवा के आ ! अपने हाथ कटा के आ ! जिन आँखों से देखा उसको ! उन आँखों को नोचवा के आ ! जा कब्र अपनी खुदवा के आ ! और खुद को सूली पर लकटा ! क्यों तूने उस नारी के ! तन पे यूँ सौ आघात किये ! ओ हवस के काफर सुन ! क्यों उसके कपडे तूने यूँ सरेआम ! बेरहमी से उतार के फेंक दिए ! रचयिता: आस्था कुकरेजा #Stoprape कविता: नारी का सम्मान: एक सवाल.. !!