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sk chodhry

अपने बड़े बुजुर्गों का मान सम्मान रखो

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जिन्होंने मुझे उंगली पकड़कर रास्ता दिखाया आज उनके बुढ़ापे की लाठी ना बनू तो मुझसे बड़ा बेवकूफ और कोई नहीं

©sk sahil अपने बड़े बुजुर्गों का मान सम्मान रखो

Madhu Maurya

एक सम्मान बुजुर्गों का और उनके तजुर्बे को।

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कभी घर के उस कोने को देखा है? जो अक्सर एक कोने में ही बैठा मिलेगा,
उन्हें जीवन के हर उस वक्त का हिसाब पता होता है,जबकि वो कभी स्कूल गये भी नहीं होते हैं,
उन्हें भविष्य का "भ" भी पता नहीं होता था,फिर भी वो उसके लिए साथ होने का वादा करते थे,
आज के समय में अक्सर लोग खुद को उनसे बेहतर कहते हो, पर ये बात अब लोग भुलते जा रहे हैं कि  'वो है तो हम हैं'। एक सम्मान बुजुर्गों का और उनके तजुर्बे को।

Parveen kabis shikha

कविता-"बहू का सम्मान"

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Dishant self

बुजुर्गों का सम्मान करें, उन्हें प्यार करें- #Love #nojotohindi

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राजकुमार गाजीपुरी

कविता- बुजुर्गों की कद्र #राजकुमार_गाजीपुरी

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Arpita Roy

हिन्दी का सम्मान करो कविता

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KISHAN VERMA

हिंदी दिवस पर कविताहिंदी मेरा सम्मान

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Ratn Sheel

यात्री गढ़ जरा ध्यान दे. अपने बुजुर्गों को सम्मान दे..।। यात्री गढ़ जरा ध्यान दे. अपने बुजुर्गों को सम्मान दे..।।

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यात्री गढ़ जरा ध्यान दे.
   अपने बुजुर्गों को सम्मान दे..।। यात्री गढ़ जरा ध्यान दे.
   अपने बुजुर्गों को सम्मान दे..।। यात्री गढ़ जरा ध्यान दे.
   अपने बुजुर्गों को सम्मान दे..।।

Ravi Kumar Nath

बुजुर्गों का आशीर्वाद #StoryOfSuspense #Life

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Aastha Kukreja

#Stoprape कविता: नारी का सम्मान: एक सवाल.. !!

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कविता:-नारी का सम्मान: एक सवाल..!!
जिसके कपडे तूने यूँ सरेआम !
बेरहमी से उतार के फेंक दिए !
ए ज़ालिम बेख़ौफ़ दरिंदे तू !
क्यों उसके बाद तूने ज़िंदा !
ये सारे दिन गुजार दिए !
जिस माँ ने तुझको जन्म दिया !
उसकी ममता को भी रौंद दिया !
अपनी बेटी और बहन की !
इज़्ज़त को झकझोर दिया !
अरे! जानवर भी अच्छा तुझसे !
तूने तो उसको पीछे छोड़ दिया !
क्यों तूने उसके बदन पे !
अपने गंदे हाथ फेर दिए !
ए हैवान, ए शैतान !
क्यों उसके  कपडे तूने यूँ सरेआम !
बेरहमी से उतार के फेंक दिए !
जा कालिख तू पुतवा के आ !
अपने हाथ कटा के आ !
जिन आँखों से देखा उसको !
उन आँखों को नोचवा के आ !
जा कब्र अपनी खुदवा के आ !
और खुद को सूली पर लकटा !
क्यों तूने उस नारी के !
तन पे यूँ सौ आघात किये !
ओ हवस के काफर सुन !
क्यों उसके  कपडे तूने यूँ सरेआम !
बेरहमी से उतार के फेंक दिए !
रचयिता: आस्था कुकरेजा #Stoprape कविता: नारी का सम्मान: एक सवाल.. !!
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