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Vedantika
खरीदे गए अलक़ाब से ज़माने में शोहरा हुए। तालीमयाफ्ता लोग इनके हाथ का मोहरा हुए। ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ आज का शब्द है "अलक़ाब" "alqaab" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है उपाधियाँ, प्रशस्ति, संबोधन एवं अंग्
Dr Upama Singh
अलक़ाब हासिल करने ज़िन्दगी भर भागते रहे जिसकी क़ीमत बस रद्दी काग़ज़ जैसी निकली ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ आज का शब्द है "अलक़ाब" "alqaab" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है उपाधियाँ, प्रशस्ति, संबोधन एवं अंग्
Nazar Biswas
एहसास जब जब उमड़े अलक़ाब-ए-ताज़ पहना दिए, वज़न न लहज़ों में मिला न फ़ितरत में न हरकत में।— % & ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ आज का शब्द है "अलक़ाब" "alqaab" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है उपाधियाँ, प्रशस्ति, संबोधन एवं अंग्
Shaayar Bhaiyya
Abeer Saifi
ग़ज़ल लिख कर बहाने से मैं तुमको याद करता हूँ, कभी फ़रियाद करता हूँ कभी इरशाद करता हूँ اا ज़ुल्म मुझ पर हक़ीक़त है मैं तुमको पा नहीं सकता, ख़ुदी को खुद के हाथों से मैं खुद बरबाद करता हूँ اا नहीं हो अंजुमन में तुम न कोई राग बुलबुल का, न शीरीं उन लबों की है न वो फ़राग़ सुम्बुल का اا हाँ कुछ कर नहीं सकते करे ये क्या आज़ुर्दा दिल, ग़ुंचा-ए-गुल को नहीं करते सवाल तवक्कुल का اا तुमको ये गिला है के मैं सब कुछ भूल नहीं जाता, चलो हर बंधन से तुमको मैं पुर आज़ाद करता हूँ اا अब ये ज़ख्म मेरे हैं सभी यादें भी मेरी हैं, मैं अपना दिल जला कर के तुम्हें आबाद करता हूँ اا अंजुमन - महफ़िल, शीरीं - मीठी, फ़राग़ - आराम, सुम्बुल - महबूब के ज़ुल्फ़, आज़ुर्दा - दर्द से भरा, ग़ुंचा-ए-गुल - कली तवक्कुल - भरोसा
Abeer Saifi
ग़ज़ल लिख कर बहाने से मैं तुमको याद करता हूँ, कभी फ़रियाद करता हूँ कभी इरशाद करता हूँ اا ज़ुल्म मुझ पर हक़ीक़त है मैं तुमको पा नहीं सकता, ख़ुदी को खुद के हाथों से मैं खुद बरबाद करता हूँ اا नहीं हो अंजुमन में तुम न कोई राग बुलबुल का, न शीरीं उन लबों की है न वो फ़राग़ सुम्बुल का اا हाँ कुछ कर नहीं सकते करे ये क्या आज़ुर्दा दिल, ग़ुंचा-ए-गुल को नहीं करते सवाल तवक्कुल का اا तुमको ये गिला है के मैं सब कुछ भूल नहीं जाता, चलो हर बंधन से तुमको मैं पुर आज़ाद करता हूँ اا अब ये ज़ख्म मेरे हैं सभी यादें भी मेरी हैं, मैं अपना दिल जला कर के तुम्हें आबाद करता हूँ اا अंजुमन - महफ़िल, शीरीं - मीठी, फ़राग़ - आराम, सुम्बुल - महबूब के ज़ुल्फ़, आज़ुर्दा - दर्द से भरा, ग़ुंचा-ए-गुल - कली तवक्कुल - भरोसा
Nasamajh
न कोई ज़ख़्म लगा है न कोई दाग़ पड़ा हैं , न कोई ज़ख़्म लगा है न कोई दाग़ पड़ा हैं , यें घर बहार की रातों में बे-चराग़ पड़ा हैं..!! अजब नहीं यहीं कैफ़-आफ़रीं हो शाम-ए-अबद तक..... जो