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नवनीत ठाकुर
खुदा ने दी है ये सांसें तो बस जी लो, क्या पता ये पल आखिरी सलाम हो। ख्वाहिशें कम कर, दिल को थोड़ा आराम दे, हर चाहत का पूरा होना न कोई इनाम हो। बस सच और मोहब्बत का दामन थाम ले, सफर का यही असली अंजाम हो। ग़म और खुशियों को बराबर समझ लो, हर लम्हा जीने का मुकम्मल मुकाम हो। जो है आज, वही सब कुछ है यार, किसे पता, कल का क्या इंतज़ाम हो। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर खुदा ने दी है ये सांसें तो बस जी लो, क्या पता ये पल आखिरी सलाम हो। ख्वाहिशें कम कर, दिल को थोड़ा आराम दे, हर चाहत का पूरा होना
#नवनीतठाकुर खुदा ने दी है ये सांसें तो बस जी लो, क्या पता ये पल आखिरी सलाम हो। ख्वाहिशें कम कर, दिल को थोड़ा आराम दे, हर चाहत का पूरा होना
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दिल में जो राज़ हैं, वो सब कहना चाहते हैं, लेकिन डरते हैं कहीं वो हमारी बातों को बुरा न मान जाएं। उन्हें अपना दर्द बताए बिना जीना मुश्किल है, पर ये डर भी है कि कहीं वो हमारी हालत को समझ न पाएं। सोचते हैं कि बताएं अपने दिल की दुआ, लेकिन क्या पता, कहीं वो हमारी सच्चाई को न देख पाएं। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर दिल में जो राज़ हैं, वो सब कहना चाहते हैं, लेकिन डरते हैं कहीं वो हमारी बातों को बुरा न मान जाएं। उन्हें अपना दर्द बताए बिना ज
#नवनीतठाकुर दिल में जो राज़ हैं, वो सब कहना चाहते हैं, लेकिन डरते हैं कहीं वो हमारी बातों को बुरा न मान जाएं। उन्हें अपना दर्द बताए बिना ज
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कभी खो जाने का डर था, फिर भी ढूंढते रहे, जब रौशनी मिली, तो फिर अंधेरों की सजा क्या है। हम नहीं चाहते थे कोई इनाम या शोर, पर जब खुद को समझ लिया, तो फिर ताल्लुुक़ में क्या है। ज़िंदगी के मोड़ों पे, ग़म और खुशी की छाँव मिली, मगर जब हकीकत सामने आई, तो फिर ख्वाबों में क्या है। तोड़ने चले थे हर तारा, अपने आसमान से, मगर जब खुदा मिला, तो फिर इस तलाश में क्या है। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर कभी खो जाने का डर था, फिर भी ढूंढते रहे, जब रौशनी मिली, तो फिर अंधेरों की सजा क्या है। हम नहीं चाहते थे कोई इनाम या शोर, पर जब
#नवनीतठाकुर कभी खो जाने का डर था, फिर भी ढूंढते रहे, जब रौशनी मिली, तो फिर अंधेरों की सजा क्या है। हम नहीं चाहते थे कोई इनाम या शोर, पर जब
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White षड्यंत्रों की छाया हर दिल पर भारी, भ्रष्टाचार की चादर ने लूट ली जिम्मेदारी। शोषण के जख्म चीखते हैं बेआवाज़, जुर्म के मंजर बन गए रोज़ का आगाज़। अपहरण के धंधे अब आम हो गए, अपराधी खुलेआम इनाम हो गए। छेड़छाड़ के ज़ख्म लहू-लुहान हैं, इंसाफ के मंदिर खुद बदगुमान हैं। यह कैसी सभ्यता, यह कैसी रवायत? जहां जुर्म को मिलती है हर इक सहायत। ©नवनीत ठाकुर #षड्यंत्रों की छाया हर दिल पर भारी, भ्रष्टाचार की चादर ने लूट ली जिम्मेदारी। शोषण के जख्म चीखते हैं बेआवाज़, जुर्म के मंजर बन गए रोज़ का आगा
#षड्यंत्रों की छाया हर दिल पर भारी, भ्रष्टाचार की चादर ने लूट ली जिम्मेदारी। शोषण के जख्म चीखते हैं बेआवाज़, जुर्म के मंजर बन गए रोज़ का आगा
read moreParasram Arora
White ताउम्रl खुदा की इबादत की पांच वक़्त की नमाज़ भी पढ़ी बदले मे मुझे न खुदा मिला न मुझे किसी . ख़ुदाई इनाम से नवाजा गया ©Parasram Arora इनाम
इनाम
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