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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मुक्तक  :- चंचल मन मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता । फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता । शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुं #कविता

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मुक्तक  :- 

मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता ।
फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता ।
शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुंदर है -
यूँ मानों अब देख उसे मुझको मिलती शीतलता ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुक्तक  :- चंचल मन


मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता ।

फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता ।

शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुं

Amit Seth

आज के ही दिन नरेंद्र मोदी जी पहली बार प्रधानमंत्री पद का चुनाव जीते थे nojoto

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Poet Kuldeep Singh Ruhela

#darkness #कोई चेहरे पर फिल्टर लगा के खूबसूरत बन जाती हैं नई नई विडियो बनाके वो फिर सबको रिझाती है #शायरी

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Bhanu Priya

कुछ छांव सा कुछ धूप सा कुछ चंचल सा कुछ शांत सा #Poetry

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INDIA CORE NEWS

लोकसभा चुनाव का दूसरा फेस करीब आते आते उत्तर प्रदेश में हिंदू मुसलमान को लेकर राजनीति तेज हो गई है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपीए सरकार #News #Video #post #viral #Videos #viralpost #trnding #viral_video

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INDIA CORE NEWS

कानपुर में बजरंग दल पूर्व राष्ट्रीय संयोजक प्रकाश शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई खा दिखाएं। खाकी माध्यम चाहिए मां की है लगातार बारि #News #kanpur #Videos #Trading #vrial #vrialvideo

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Mahadev Son

ये चंचल मन ले चल तू आज मुझे उस बस्ती में जहाँ जगदम्बे माँ का डेरा है आज दिल बेताब मेरा मिलने को तड़पता है बस ले चल तू ये चंचल मन जहाँ मेरी म #Bhakti

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ये चंचल मन ले चल तू आज मुझे
उस बस्ती में जहाँ जगदम्बे माँ का डेरा है

आज दिल बेताब मेरा मिलने को तड़पता है
बस ले चल तू ये चंचल मन जहाँ मेरी माँ का

डेरा वैसे तो रोज भटकाता है आज मेरा भी
ज़ी करता तुझे भटकाने को बस अब ले चल

सपनों में सही बस तू ले चल अब 
उस बस्ती में जहाँ माँ का डेरा है

©Mahadev Son ये चंचल मन ले चल तू आज मुझे
उस बस्ती में जहाँ जगदम्बे माँ का डेरा है

आज दिल बेताब मेरा मिलने को तड़पता है
बस ले चल तू ये चंचल मन जहाँ मेरी म

Mahadev Son

आत्मा थी अज़र है अमर रहेगी जन्म मन का, मरण तन का हुआ सृजन हुआ जिसका नष्ट होना तय उसका सफर यही तक का यही तेरी ही भूल थी त्याग देगा भर जायेग #Life

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आत्मा थी अज़र है अमर रहेगी
जन्म "मन" का, मरण " तन" का हुआ

सृजन हुआ जिसका नष्ट होना तय उसका 
सफर यही तक का यही तेरी ही भूल थी

त्याग देगा भर जायेगा "मन", इस तन से 
"मन" चंचल पर अज़र बस निर्भर कर्मों पर 

कर्म होंगें जैसे "मन" जन्म का "तन" पायेगा वैसे 
जैसे जेब में पैसे होते वैसे वस्त्र खरीदता तू 

हिसाब किताब सब यहाँ होता पैसों से 
वैसे मन का होता वहाँ सब कर्मों से 

पायेगा क्या भोगेगा क्या फिर से चंचल
"मन" को भी न मालूम वर्ना छोड़ता न

कभी इस "तन" को ...!

©Mahadev Son आत्मा थी अज़र है अमर रहेगी
जन्म मन का, मरण तन का हुआ

सृजन हुआ जिसका नष्ट होना तय उसका 
सफर यही तक का यही तेरी ही भूल थी

त्याग देगा भर जायेग

बादल सिंह 'कलमगार'

चंचल चकोर चाँदनी.. #badalsinghkalamgar Poetry Love #Hindi pramodini mohapatra Suraj Maurya NEHA SHARMA Aradhana Mishra Jugal Kisओर #कविता

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- चंचल चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार । दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।। #कविता

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दोहा :- चंचल

चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार ।
दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।।
च़चल मन की वो खुशी , देख सके क्या आप ।
मन ही मन खिलता रहा , सुनकर ये पदचाप ।।
चंचल मन ने बाँध ली , आज प्रेम की डोर ।
कैसे निकलेंगे सजन , नैना है चितचोर ।।
चंचल दिखती है पवन ,  छेड़े मन के तार ।
आने वाले हैं सजन , लायी खत इस बार ।।
चंचल मन वैरी हुआ , करके उनसे प्रीति ।
सुधि भी वह लेता नहीं , निभा रही मैं रीति ।।

२७/०२/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- चंचल


चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार ।

दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।।
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